लाल किताब के अनुसार विभिन्न भावों में मंगल के फल एवं उपाय
लाल किताब के अनुसार विभिन्न भावों में मंगल के फल एवं उपाय

लाल किताब के अनुसार विभिन्न भावों में मंगल के फल एवं उपाय  

शैलजा गौड़
व्यूस : 15697 | अकतूबर 2006

लग्नस्थ मंगल -

यदि लग्न में मंगल हो तो जातक परिवार में अकेला नहीं होता, छोटा या बड़ा भाई अवश्य होता है, पर कोई बहन नहीं होती। 28 वर्ष की आयु के पश्चात् वह स्वयं की कमाई से धनवान बनता है। वह सच्चाई के रास्ते पर चलने वाला, साहसी, ईमानदार और सौम्य स्वभाव का होता है। उसकी जुबान से निकला शब्द कभी खाली नहीं जाता। जातक बहुत भाग्यशाली होता है। लग्नस्थ अशुभ मंगल जातक को हर तरह से परेशान रखता है। उसे फकीर या साधु का संग हानि पहुंचाता है। वह दूसरों की मुसीबतें अपने गले लेकर स्वयं बर्बाद हो जाता है। उसका दाम्पत्य जीवन सुखमय नहीं होता। माता-पिता के लिए वह अशुभ होता है। उसका पत्नी से मतभेद रहता है।

उपाय

ऐसे में जातक को गुरु का उपाय करना चाहिए। साथ ही शुक्र की वस्तुओं को स्थापित करना चाहिए तथा सौंफ का प्रयोग करना चाहिए। इसके अतिरिक्त सूर्य व चंद्र की चीजों से लाभ प्राप्त करना चाहिए।

द्वितीयस्थ मंगल -

जातक परिवार में सबसे बड़ा होता है। वह सदैव परिवार का मुखिया होता है। परोपकार से उसकी धनदौलत बढ़ती है। वह स्वयं की कमाई से अमीर होता है। उसका जीवन सुख से बीतता है। संतान अच्छी होती है। उसे ससुराल से लाभ मिलता है। धन घटता बढ़ता रहता है। राहु संबंधी कार्यों से लाभ मिलता है। यदि सूर्य व शनि के साथ मंगल द्वितीय भाव में हो और अशुभ हो, तो दूसरों की छाती पर सांप के समान होता है। उसकी मृत्यु लड़ाई-झगड़े में होती है। दूसरों का उपकार न करने पर धन की हानि होती है।

उपाय

Û 200 ग्राम रेवड़ी जल में प्रवाहित करनी चाहिए।

Û हिरण पालना चाहिए तथा भाइयों की मदद करनी चाहिए।

तृतीयस्थ मंगल -

जातक के परिवार में भाई बहन जरूर होते हैं। वह दूसरों पर जान न्योछावर करने को तत्पर रहता है। परिवार व मित्रों का पालन पोषण करने वाला होता है। वह न्यायप्रिय होता है और दूसरों पर अन्याय सहन नहीं करता। मंगल अशुभ हो, तो व्यक्ति बुरे स्वभाव का व चालाक होता है। वह भोगी, ऐयाश व निर्धन होता है। रोग व कर्ज से उसका जीवन बदहाल रहता है। उसकी संतान भी नेक नहीं होती।

उपाय

Û घर में हाथी दांत की चीजों को स्थापित करना चाहिए।

Û ताऊ की सेवा करनी चाहिए।

चतुर्थस्थ मंगल -

चतुर्थस्थ मंगल कभी अशुभ नहीं होता अर्थात मंगल दोष नहीं होता। यदि कोई पापग्रह राहु, केतु या शनि के साथ हो तो भी जातक का कुछ अशुभ नहीं होता।

उपाय

Û चंद्र का उपाय करने चाहिए।

Û फिटकरी से दांत साफ करने चाहिए।

Û दूध में शक्कर डालकर बरगद पर चढ़ाना चाहिए।

Û गीली मिट्टी का तिलक लगाना चाहिए।

Û मिट्टी के बरतन में 400 ग्राम शहद भर कर श्मशान में दबाना चाहिए।

Û चांदी का चैकोर टुकड़ा अपने पास रखना चाहिए।

Û चिड़ियांे को मीठा चुगा डालना चाहिए।

Û हाथी दांत अपने पास रखना चाहिए।

Û तीन घातुओं सोने, चांदी व तांबे की अंगूठी धारण करनी चाहिए।

पंचमस्थ मंगल -

जातक को सभी ग्रह कम फल देते हैं। केवल चंद्र व शुक्र सदा शुभ फल देते हैं। शेष ग्रह -शत्रु या मित्र- नियमानुसार प्रभाव डालते हैं। ऐसा जातक चंद्र व शुक्र से संबंधित जिस काम में हाथ डालता है, उसका प्रभाव पांच गुणा बढ़ जाता है। वह विद्वान डाक्टर या वैद्य बनता है। माता-पिता की सेवा से उन्नति होती है। संतान नेक होती है। वह न्यायप्रिय, समाजसेवी व धनवान होकर मान-सम्मान तथा यश प्राप्त करता है। अशुभ मंगल आग व चोरी का खतरा उत्पन्न करता है। साथ ही भाई-बंधु, माता-पिता, संतान में से किसी की मृत्यु का कारक होता है। जातक अपने घर से दूर बेसहारा रहता है।

उपाय

Û रात को सिरहाने में पलंग के नीचे पानी का लोटा भर कर रखना चाहिए।

Û श्राद्ध पर दूध और चावल का दान करना चाहिए।

Û कन्याओं को दूध पिलाना चाहिए।

Û चावल व चांदी का दान करना चाहिए।

Û बहनोई की सेवा करनी चाहिए।

षष्ठस्थ मंगल -

जातक भाग्यशाली न भी हो, पर कर्मवीर अवश्य होता है। उसमें साहस कूट-कूट कर भरा होता है। वह पानी में आग लगा देने वाला होता है। वह अपने परिवार का रक्षक व मुखिया होता है। वह साधु-संन्यासी की तरह जीवन व्यतीत करने वाला श्रेष्ठ पुरुष होता है। उसके परिवार में धनधान्य की कमी नहीं होती। मंगल अशुभ हो, तो केतु, बुध, शुक्र व चंद्र रिश्तेदारी के लिए हानिकारक होते हैं। ऐसा मंगल माता के लिए घातक सिद्ध होता है। जातक का परिवार सुखी नहीं रहता।

उपाय

Û बच्चों के जन्मदिन पर मिठाई की जगह नमकीन बांटना चाहिए। जातक के भाई शगुन के नाम पर कुछ न कुछ अवश्य दें।

Û गृहस्थी के लिए शनि का उपाय करना चाहिए।

Û संतान के लिए चंद्र व बुध का उपाय करना चाहिए।

सप्तमस्थ मंगल -

जातक अत्यंत परोपकारी तथा मर्यादा का रक्षक होता है। वह यश कमाता है। गणित विद्या में पारंगत होता है और वकील या सी.ए. बन कर नाम कमाता है। उसकी किसी भी इच्छा की पूर्ति एक बार अवश्य होती है। अशुभ मंगल जातक की पत्नी, बहन, बुआ, बेटी, भतीजी या पोती को विधवा बना देता है। ऐसे जातक को घर में सूखी लकड़ी, बांस, घास आदि रखने से अशुभ फल मिलते हैं। शराब, मांस, ढोलक व तबले की गूंज से भी अशुभ फल मिलते हैं।

उपाय

Û बहन और बुआ को लाल वस्त्र देने चाहिए।

Û शनि के उपाय हेतु मकान की दीवार बनानी चाहिए।

Û चांदी की ठोस गोली अपने पास रखनी चाहिए।

Û तांबे के बरतन को चावल से भर कर उस पर लाल चंदन का लेप लगा कर हनुमान मंदिर में दान करना चाहिए।

अष्टमस्थ मंगल -

जातक कठिन श्रम करने वाला व जुबान का पक्का होता है। वह अपनी बात पर अटल रहता है। उसका स्वास्थ्य अच्छा रहता है। किंतु किसी विधवा का श्राप जातक को तबाह कर देता है। उसके छोटे भाई की दशा खराब रहती है। अष्टम भावस्थ मंगल यदि अकेला व अशुभ हो, तो फांसी का फंदा साबित होता है।

उपाय

Û काले कुत्ते को 43 दिन तक 8 मीठी रोटियां, जो तंदूर में एक तरफ सिकी हों, देनी चाहिए।

Û गले में चांदी धारण करनी चाहिए।

Û तीन घातुओं की अंगूठी पहननी चाहिए।

Û रेवड़ी, बतासे, मसूर की दाल, अजवाइन आदि जल में बहाने चाहिए।

Û दादी से चांदी लेकर अपने गले में धारण करनी चाहिए।

नवमस्थ मंगल -

जातक न्यायप्रिय व व्यावहारिक होता है। भाभी उसके भाग्य का निर्माण करती है। सूर्य उसे सदैव शुभ फल प्रदान करता है। आयु के 28वें वर्ष पश्चात उसकी स्थिति राजा के समान हो जाती है। वह भाग्य का धनी व प्रभावशाली होता है। मंगल अशुभ हो, तो जातक नास्तिक व बुरा होता है। उसे माता-पिता से कोई मदद नहीं मिलती।

उपाय

Û लाल रुमाल पास रखना चाहिए। भाभी को प्रसन्न रखना चाहिए।

Û मंगलवार को हनुमान मंदिर में सिंदूर चढ़ा कर भोग लगाना चाहिए।

Û सोने में मूंगा धारण करना चाहिए।

Û बुध की चीजें कुएं में डालनी चाहिए।

Û मंगल की शुभ चीजें जमीन में दबानी चाहिए।

Û मंगल की चीजें मंदिर में दान देनी चाहिए।

दशमस्थ मंगल -

जातक का जन्म होते ही लक्ष्मी का आगमन शुरू हो जाता है तथा वह युवावस्था तक बहुत अमीर व्यक्ति हो जाता है। शनि के उत्तम प्रभाव से जातक शेर जैसा निडर होता है। घर का सोना बेचने पर उसका संतान व परिवार पर अशुभ प्रभाव पड़ता है।

उपाय

हनुमान जी की पूजा करनी चाहिए। मीठा भोजन करना चाहिए और हिरण पालना चाहिए। साथ ही चाचा व ताऊ की सेवा करनी चाहिए।

एकादशस्थ मंगल -

जातक न्यायप्रिय, साहसी व धैर्यवान होता है। उसका जन्म मध्यम वर्गीय परिवार में होता है। व्यापार में विशेष सफलता प्राप्त होती है। 25 वर्ष की आयु के बाद वह अतुल धन संपत्ति का स्वामी होता है। वह विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत करता है। उसके परिवार में सुख शांति बनी रहती है। वह इंजीनियर, खिलाड़ी या गणितज्ञ होता है। ऐसा व्यक्ति अनुचित मार्ग पर चलकर भी यश प्राप्त करता है। वह कर्तव्यपरायण, जुबान का पक्का, दृढ़निश्चयी तथा आत्मविश्वासी होता है। उसमें वाकपटुता एवं अनायास ही दूसरों को चमत्कृत करने की क्षमता होती है। मंगल अशुभ हो, तो जातक को ऋणी बना देता है। वह पैतृक धन को बर्बाद कर देता है।

उपाय

Û काला-सफेद कुत्ता पालना चाहिए।

Û हनुमान जी पर सिंदूर चढ़ाना चाहिए।

द्वादशस्थ मंगल -

जातक भाग्यशाली होता है। ऐसी कुंडली के अष्टम लग्न में बैठा बुध, केतु या राहु भी अपना अशुभ फल नहीं दे सकता है। जातक हर प्रकार से निर्भीक व शक्तिशाली होता है। उसके शत्रु कारागार में अपना जीवन गुजारते हैं या अकाल मृत्यु को प्राप्त होते हैं। जातक आध्यात्मिक प्रवृत्ति का सज्जन पुरुष होता है। उसका परिवार हमेशा धन से भरा रहता है। मंगल तलवार की धार के समान होता है जरा चूक होने पर गर्दन काट कर रख देता है। जातक क्रोधी, स्वतंत्रताप्रेमी व शत्रुजित होता है।

उपाय

Û माता से चावल और चांदी लेकर अपने पास रखने चाहिए।

Û किसी को मीठा खाना खिलाना धन व आयु के लिए शुभ सिद्ध होगा।

Û पानी में गुड़ डालकर सूर्य को अघ्र्य देना चाहिए।

Û कुत्तों को मीठी रोटी खिलानी चाहिए।

Û दूध में शहद मिला कर दूसरों को दान देना चाहिए।

Û अतिथियों को पानी की जगह दूध पिलाना चाहिए।

Û खाकी रंग की टोपी पहननी चाहिए, चोटी रखनी चाहिए।



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