प्लूटो अब केवल लघु ग्रहों की श्रेणी में अगस्त 2006 को प्राग अंतर्राष्ट्रीय खगोल संघ ;प्दजमतदंजपवदंस ।ेजतवदवउपबंस न्दपवदद्ध के 2500 से अधिक खगोलविदों के पुनर्विचार एवं पुनर्परिभाषा के कारण प्लूटो को अब केवल लघु ग्रहों की श्रेणी में स्थापित कर दिया गया है।
पहले भी 1801 में सेरेस नामक लघु ग्रह ;।ेजमतवपकद्ध की खोज हुई थी और उस समय इसे आठवें ग्रह के रूप में स्थापित किया गया था। बीस वर्ष पश्चात यूरेनस की खोज हुई और उसके बाद अन्य अनेक नए ग्रहों की। लगभग 1850 में सेरेस को भी ग्रह की श्रेणी से हटाकर उल्का पिंड की श्रेणी में डाल दिया गया था। जेना को भी ग्रह का स्थान दिया जाना चाहिए था जो नहीं दिया गया है जबकि वह भी अन्य ग्रहों की भांति सूर्य की परिक्रमा करता है। प्लूटो को नयी लघु ग्रह की श्रेणी में डालने के निम्नलिखित कारण थे:-
जैसे-जैसे टेलिस्कोप की शक्ति बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे सूक्ष्म ग्रहों का पता चलता जा रहा है। सेडना आदि इसी प्रकार के ग्रह हैं। सभी खगोलीय पिंडों को ग्रह की मान्यता देने से उनका महत्व क्षीण हो जाता है। मंगल एवं गुरु के बीच में हजारों उल्का पिंड ;।ेजमतवपकेद्ध हैं। वे भी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते रहते हैं। सूक्ष्म आकार होने के कारण उन्हें भी ग्रहों की श्रेणी से बाहर रखा गया है। प्लूटो अति दूरस्थ एवं अति सूक्ष्म ग्रह है। इसका व्यास चंद्रमा से भी छोटा है।
इसका परिक्रमा चक्र वृत्ताकार न होकर एक वृत्त में टेढ़ा मेढ़ा है। प्लूटो पृथ्वी की सतह पर भ्रमण न कर के उसके एक कोण पर भ्रमण करता है। प्लूटो का परिक्रमा पथ इतना दीर्घ वृत्ताकार है कि वह नेप्च्यून के परिक्रमा पथ को भी पार कर पुच्छल तारे का स्वरूप प्राप्त कर लेता है। ये ही कुछ मुख्य कारण हैं कि प्लूटो को लघु ग्रह ;क्ूंत िच्संदमजद्ध का दर्जा दिया गया है।
इस निर्णय से आम जनता के मन में प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या अब ज्योतिष के नियमों को भी बदलना पड़ेगा और प्लूटो को अब किस प्रकार से ज्योतिष में समायोजित किया जाएगा? यहां पर यह बताना आवश्यक है कि ज्योतिष में ग्रह की परिभाषा एवं खगोल शास्त्र में ग्रह ;च्संदमजद्ध की परिभाषा में अंतर है।
ज्योतिष के अनुसार ग्रह ब्रह्मांड में वह बिंदु है, जिसका असर पृथ्वी मंडल पर एवं मनुष्य जीवन पर देखा या महसूस किया जा सकता है जबकि खगोल शास्त्र में ग्रह ;च्संदमजद्ध सौरमंडल का वह पिंड है, जो सूर्य की परिक्रमा करता रहता है एवं अपनी गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण गोल होता है।
ग्रह की ज्योतिषीय परिभाषा खगोल शास्त्र के ग्रह ;च्संदमजद्ध से भिन्न है। राहु-केतु, सूर्य एवं चंद्र को ज्योतिष में ग्रह का दर्जा दिया गया है जबकि खगोलशास्त्र में इन्हें क्रमानुसार छाया ग्रह ;छवकमद्धए तारा ;ैजंतद्ध एवं उपग्रह ;ैंजमससपजमद्ध का स्थान दिया गया है। ज्योतिष खगोल पर आधारित होते हुए भी खगोल की ग्रह की परिभाषा से विमुक्त है। ज्योतिष को इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि कितने और नए ग्रह खोज लिए गए हैं। क्योंकि ये सभी ग्रह तो सदा से ही मौजूद हैं।
खोज के द्वारा केवल जानकारी ही प्राप्त की गई है। ज्योतिष में असर केवल तब पड़ सकता है जब कोई ग्रह नष्ट हो जाए या कोई नया उत्पन्न हो जाए। समुद्र जब मीठा हो गया: 18 अगस्त की रात को अचानक ही माहिम खाड़ी में समुद्र का मीठा हो जाना किसी आश्चर्य से कम नहीं था। हजारों श्रद्धालु उमड़ पड़े और मन्नतें मांगने लगे। वैज्ञानिक जांच में भी पानी को मीठा पाया गया।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ऐसा तब होता है जब बहुत वर्षा हो और समुद्र में भाटा हो जिसके कारण स्वच्छ जल समुद्र की ओर एकत्रित हो जाए। उस दिन भी कुछ ऐसा ही हुआ। मीठी नदी ने, जो वर्षा के कारण लबालब भरी थी, समुद्री भाटा के कारण समुद्र का खारापन कम कर दिया या कुछ समय के लिए बिलकुल खत्म कर दिया।
ज्योतिष के परिपेक्ष में अधिक वर्षा का योग तब बनता है जब मंगल कर्क या सिंह राशि में हो एवं सूर्य उसके साथ हो। ज्वार का योग चंद्रमा के चैथे एवं दशम भाव में स्थित होने से बनता है। यदि सूर्य भी चंद्रमा के साथ हो या सम्मुख हो अर्थात अमावस्या या पूर्णिमा के दिन मध्य रात्रि को या दोपहर को जब सूर्य और चंद्र दोनों ही चैथे या दशम भाव में होते हैं, तो वे समुद्री जल को अपनी ओर खींचते हैं जिससे अधिकतम ज्वार उत्पन्न होता है।
इसी प्रकार जब लग्न या सप्तम में चंद्र स्थित होता है, तो भाटा उत्पन्न होता है। लेकिन उस दिन यह परिस्थिति अधिक फलदायी थी क्योंकि सूर्य एवं मंगल दोनों सिंह राशि में स्थित थे एवं शनि और गुरु सूर्य के दोनों ओर स्थित थे। इस कारण वर्षा अधिक हुई और मध्यरात्रि को जब चंद्र लग्न भाव में आया तो समुद्र में भाटा उत्पन्न हुआ एवं नदी का जल समुद्र में जा मिला। ऐसी स्थिति अनेक वर्षों में एक बार उत्पन्न होती है लेकिन ज्योतिष द्वारा इसका पूर्वानुमान अवश्य ही संभव है।
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