यंत्रों का चमत्कार पं. सीतेश कुमार पंचैली प्राचीन काल से ही पूजा व उपासना में यंत्र व मंत्रों का प्रयोग होता रहा है। किसी विशिष्ट उद्देश्य की पूर्ति हेतु विशिष्ट यंत्र का उपयोग किया जाता है। प्रस्तुत आलेख में यंत्रों के चमत्कारिक प्रभावों का वर्णन किया जा रहा है...
दीपावली की रात्रि, ग्रहण् ाकाल एवं तंत्र-मंत्र से संबंधित अन्य विशिष्ट मुहूर्तों के अवसर के लिए यहां कुछ यंत्र निर्माण की विधि दी जा रही है। जिनके माध्यम से मनोवांछित लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
ऐश्वर्य प्राप्ति हेतु प्रयोग: यह प्रयोग दो प्रकार से किया जा सकता है। प्रथम लघु प्रयोग 15 दिन का होता है तथा द्वितीय वृहद् प्रयोग 54 दिन का। इस प्रयोग को दीपावली के दिन से प्रारंभ करना चाहिए। दी इस प्रयोग को संपन्न करने हेतु स्फटिक श्री यंत्र, नौमुखी रुद्राक्ष, कमलगट्टे की माला की जरूरत पड़ती है। इसके लिए सर्वप्रथम स्न¬ ानादि से निवृत होकर ईशान कोण की ओर मुख करके अष्टगंध की स्याही से भोजपत्र पर निम्नलिखित यंत्र बनाना चाहिए। यंत्र रचना के पश्चात स्फटिक श्री यंत्र, नौमुखी रुद्राक्ष एवं उक्त निर्मित यंत्र को एक चैकी पर स्थापित कर यथाविधि धूप दीपादि से पूजन करना चाहिए। इसके उपरांत कमलगट्टे की माला से निम्नलिखित मंत्र के 7 माला जप प्रतिदिन करें। (15 या 24 दिन तक) अविद्यानामन्तस्तिमिर मिहिर द्वीपनगरी जडानां चैन्यस्तबक मकरन्दस्त्रुतिझरी। दरिद्राणां चिन्तामणिगुणानिका जन्मजलधौ निमग्नानां दंष्ट्रा मुररिपुवराहस्य भवती।। प्रयोग के अंतिम दिन पूजादि से निवृत्त होकर नौमुखी रुद्राक्ष गले में धारण कर लें तथा स्फटिक श्री यंत्र एवं भोजपत्र पर अंकित यंत्र को पूजा स्थान में स्थापित कर नित्य धूपादि से पूजन करते रहें। जो व्यक्ति इस मंत्र की प्रतिदिन पूजा करता है, वह समस्त ऐश्वर्य एवं सुखों का भोग करता है।
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उच्चपद प्राप्ति हेतु प्रयोग: यह प्रयोग राजकीय नौकरी के अभिलाषी व्यक्तियों या उच्च पद पर उन्नति के अभिलाषी व्यक्तियों के लिए उपयोगी है। इस प्रयोग को दीपावली क दिन से प्रारंभ करके 45 दिन तक नियमित रूप से करना चाहिए। इस प्रयोग को संपन्न करने हेतु तेरहमुखी रुद्राक्ष एवं लाल हकीक की माला की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त साधक को उत्तराभिमुख होकर सिंदूर से भोजपत्र पर निम्नलिखित यंत्र का निर्माण करना चहिए। यंत्र निर्माण के पश्चात प्रयोग को संपन्न करना चाहिए। दीपावली के दिन महालक्ष्मी पूजन के उपरांत उक्त यंत्र एवं तेरहमुखी रुद्राक्ष को अपने पूजा स्थल में रखकर लाल हकीक की माला से निम्नलिखित मंत्र के पांच माला जप नियमित रूप से करने चाहिए। त्रयाणां देवानां त्रिगुणजनितानां तव शिवे भवेत पूजा पूजा तवचरण योर्यां विरचिता। तथाहि त्वत्पादो द्वहनमणि पीठस्य निकटे स्थिता ह्येते शश्वनमुकुलित करोत्तंसमुकुटा।। मंत्र जप करने के उपरांत यंत्र को प्र¬तिदिन शहद का भोग लगाना चाहिए। इस प्रयोग को 45 दिन तक नियमित रूप से करने के पश्चात अंतिम दिन तेरहमुखी रुद्राक्ष को तथा भोजपत्र पर अंकित यंत्र को सोने के ताबीज में भरकर गले में धारण करना चाहिए। इस प्रयोग के फलस्वरूप उच्चपद के रास्ते में आ रही सभी बाधाएं नष्ट हो जाएंगी।
ज्ञान प्राप्ति हेतु प्रयोग: यह प्रयोग दीपावली के दिन से प्रारंभ कर 41 दिन तक नियमित रूप से करना चाहिए। प्रयोग को संपन्न करने हेतु चारमुखी रुद्राक्ष, सरस्वती यंत्र एवं स्फटिक माला की आवश्यकता हा¬ पूर्वाभिमुख होकर भोजपत्र पर अष्टगंध की स्याही से यह यंत्र बनाना चाहिए। यंत्र का निर्माण करने के पश्चात सरस्वती यंत्र तथा भोजपत्र पर अंकित यंत्र को अपने पूजा स्थान में स्थापित करके यथाविधि पूजन करना चाहिए। इसके उपरांत स्फटिक की माला से निम्न मंत्र का प्रतिदिन 1000 बार जप करना चाहिए। कवीन्द्राणां चेतः कमलवनबालातपरुचिं भजन्ते ये सन्तः कतिचिदरूणामेव भवतीम्। विरंचिप्रेयस्यास्तरूणतरश्रृंङ्गारलहरी गभीराभ्¬िार्वाग्मिर्विदधति सतां रज्जनममी।। मंत्र जप के पश्चात प्रतिदिन यंत्र को शहद का भोग लगाना चाहिए तथा चारमुखी रुद्राक्ष को गले में धारण कर लेना चाहिए। इस प्रकार प्रयोग संपन्न करने से साधक को अध्ययन एवं ज्ञान के क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है।
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विवाद विजय प्रयोग: इस प्रयोग को दीपावली के दिन प्रारंभ करके नित्य 51 दिन तक करना चाहिए। प्रयोग को संपन्न करने हेतु शत्रुंजय यंत्र, बारहमुखी रुद्राक्ष एवं टाइगर माला की आवश्यकता होती है। दीपावली की रात्रि में माता लक्ष्मी की पूजा के उपरांत स्नानादि करके रात्रि 12 बजे के पश्चात किसी एकांत कक्ष में उत्तर की ओर मुख करके बैठें तथा अष्ठगंध की स्याही से उक्त यंत्र को भोजपत्र या ताम्रपत्र पर बनाएं ।फिर उस े चै की पर लाल वस्त्र बिछाकर स्थापित करें और चैकी के सामने आटे की पिंडी बनाकर गोघृत का दीपक प्रज्वलित करें। यंत्र का पूजन करें टाइगर माला से निम्नलिखित मंत्र के 11 माला का जप प्रतिदिन करें। मंत्र: तनीयांसं पांशुं तव चरणपङ्केरुहभवं, विरान्चिः संचिन्वन विरचयति लोकान विकलान। वहत्येनं शौरिः कथमापि सहस्त्रेण शिरसां, हरः संक्षुम्यैनं भजति भसितोद् धूलनविधिम्।। मंत्र जप के पश्चात यंत्र को प्रतिदिन दूध एवं खीर का भोग लगाना चाहिए। यह प्रयोग अचूक एवं प्रभावशाली है। जो व्यक्ति इस प्रकार से यंत्र की नियमित रूप से पूजा करता है, उसका व्यक्तित्व आकर्षक एवं प्रभावशाली बन जाता है तथा उसमें वशीकरण की अद्भुत क्षमता उत्पन्न हो जाती है, जिसके प्रभाव से वह समस्त जग को मोह लेता है।
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