पूजा के लिए कैसे हों आसन, माला एवं दीप पं. विपिन कुमार पाराशर भगवान की पूजा किसी भी तरह से की जा सकती है। लेकिन सार्थक पूजा के लिए शास्त्र सम्मत विधान की जानकारी होनी आवश्यक है।
पूजा के लिए माला, आसन, दीप आदि का आकार-प्रकार कैसा हो, हमारे महर्षियों के अनुसार जिस स्थान पर प्रभु को बैठाया जाता है, उसे दर्भासन कहते हैं और जिस पर स्वयं साधक बैठता है, उसे आसन कहते हैं। योगियों की भाषा में यह शरीर भी आसन है और प्रभु के भजन में इसे समर्पित करना सबसे बड़ी पूजा है। जैसा देव वैसा भेष वाली बात भक्त को अपने इष्ट के समीप पहु ंचा दे ती है ।
कभी जमीन पर बै ठकर पूजा नहीं करनी चाहिए, ऐसा करने से पूजा का पुण्य भूमि को चला जाता है। नंगे पैर पूजा करना भी उचित नहीं है। हो सके तो पूजा का आसन व वस्त्र अलग रखने चाहिए जो शुद्ध रहे। लकड़ी की चैकी, घास फूस से बनी चट्ाई, पत्तों से बने आसन पर बैठकर भक्त को मानसिक अस्थिरता, बुद्धि विक्षेप, चित्त विभ्रम, उच्चाटन, रोग शोक आदि उत्पन्न करते हैं। अपना आसन, माला आदि किसी को नहीं देने चाहिए, इससे पुण्य क्षय हो जाता है। निम्न आसनों का विशेष महत्व है।
कंबल का आसन: कंबल के आसन पर बैठकर पूजा करना सर्वश्रेष्ठ कहा गया है। लाल रंग का कंबल मां भगवती, लक्ष्मी, हनुमानजी आदि की पूजा के लिए तो सर्वोत्तम माना जाता है। आसन हमेशा चैकोर होना चाहिए, कंबल के आसन के अभाव में कपड़े का या रेशमी आसन चल सकता है।
कुश का आसन: योगियों के लिए यह आसन सर्वश्रेष्ठ है। यह कुश नामक घास से बनाया जाता है, जो भगवान के शरीर से उत्पन्न हुई है। इस पर बैठकर पूजा करने से सर्व सिद्धि मिलती है। विशेषतः पिंड श्राद्ध इत्यादि के कार्यों में कुश का आसन सर्वश्रेष्ठ माना गया है, स्त्रियों को कुश का आसन प्रयोग में नहीं लाना चाहिए, इससे अनिष्ट हो सकता है। किसी भी मंत्र को सिद्ध करने में कुश का आसन सबसे अधिक प्रभावी है।
मृगचर्म आसन: यह ब्रह्मचर्य, ज्ञान, वैराग्य, सिद्धि, शांति एवं मोक्ष प्रदान करने वाला सर्वश्रेष्ठ आसन है। इस पर बैठकर पूजा करने से सारी इंद्रियां संयमित रहती हैं। कीड़े मकोड़ों, रक्त विकार, वायु-पित्त विकार आदि से साधक की रक्षा करता है। यह शारीरिक ऊर्जा भी प्रदान करता है।
व्याघ्र चर्म आसन: इस आसन का प्रयोग बड़े-बड़े यति, योगी तथा साधु-महात्मा एवं स्वयं भगवान शंकर करते हैं। यह आसन सात्विक गुण, धन-वैभव, भू-संपदा, पद-प्रतिष्ठा आदि प्रदान करता है। आसन पर बैठने से पूर्व आसन का पूजन करना चाहिए या एक एक चम्मच जल एवं एक फूल आसन के नीचे अवश्य चढ़ाना चाहिए। आसन देवता से यह प्रार्थना करनी चाहिए कि मैं जब तक आपके ऊपर बैठकर पूजा करूं तब तक आप मेरी रक्षा करें तथा मुझे सिद्धि प्रदान करें। (पूजा में आसन विनियोग का विशेष महत्व है)। पूजा के बाद अपने आसन को मोड़कर रख देना चाहिए, किसी को प्रयोग के लिए नहीं देना चाहिए। आसन विनियोग के बाद भक्त को सबसे पहले पूर्व या उत्तर की ओर भगवान के सम्मुख दीपक जलाना चाहिए और दीपक जलाते समय यह मंत्र अवश्य बोलना चाहिए- ¬
अग्नि ज्योतिः परं ब्रह्मा दीपो ज्योतिर्जनार्दनः ।
दीपो हरतु मे पापं, दीप ज्योतिःनमोऽस्तुते।
विभिन्न प्रकार के दीप और उनका महत्व: देवताओं के सम्मुख दीप उनके तत्व के आधार पर जलाए जाते हंै जैसे मां भगवती के लिए तिल के तेल का दीपक तथा मौली की बाती उत्तम मानी गई है। देवताओं को प्रसन्न करने के लिए देशी घी का दीपक जलाना चाहिए। वहीं शत्रु का दमन करने के लिए सरसों व चमेली के तेल सर्वोत्तम माने गए हंै।
देवताओं के अनुकूल बत्तियों को जलाने का भी योग है जैसे सूर्य नारायण की पूजा एक या सात बत्तियों से करने का विशेष महत्व है। वहीं माता भगवती को नौ बत्तियों का दीपक अर्पित करना सर्वोत्तम कहा गया है। हनुमान जी एवं शंकरजी की प्रसन्नता के लिए पांच बत्तियों का दीपक जलाने का विधान है। इससे इन देवताओं की कृपा प्राप्त होती है। अनुष्ठान में पांच दीपक प्रज्वलित करने का महत्व अनूठा है- सोना, चांदी, कांसा, तांबा, लौहा। जीवन के लिए प्राणिमात्र को प्रकाश चाहिए। बिना प्रकाश के वह कोई भी कार्य नहीं कर सकता। सबसे अधिक महत्वपूर्ण प्रकाश सूर्य का है। इसके प्रकाश में अन्य सभी प्रकाश समाए रहते हैं। इसीलिए कहा गया है।
शुभं करोति कल्याण आरोग्यं सुख संपदम्।
शत्रु बुद्धि विनाशं च दीपज्योतिः नमोस्तुते।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिस व्यक्ति के हाथ में सूर्य रेखा स्पष्ट, निर्दोष तथा बलवान होती है या कुं¬डली में सूर्य की स्थिति कारक, निर्दोष तथा बलवान होती है, वह धनवान, कीर्तिवान, ऐश्वर्यवान होता है और दूसरे के मुकाबले भारी पड़ता है। वह बुराई से दूर रहता है।
इसलिए पूजा पाठ में पहले ज्योति जलाकर प्रार्थना की जाती है कि कार्य समाप्ति तक स्थिर रह कर साक्षी रहें। दीपक जलाते समय उसके नीचे सप्तधान्य (सात अनाज) रखने से सब प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है। यदि दीपक जलाते समय उसके नीचे गेहू रखें तो धन-धान्य की वृद्धि होगी। यदि दीपक जलाते समय उसके नीचे चावल रखें तो महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त होगी। इसी प्रकार यदि उसके नीचे काले तिल या उड़द रखें तो स्वयं मां काली भैरव, शनि, दस दिक्पाल, क्षेत्रपाल हमारी रक्षा करेंगे। इसलिए दीपक के नीचे किसी न किसी अनाज को रखा जाना चाहिए। साथ में जलते दीपक के अंदर अगर गुलाब की पंखुड़ी या लौंग रखें, तो जीवन अनेक प्रकार की सुगंधियों से भर उठेगा।
नीचे विभिन्न धातुओं के दीपकों का उल्लेख किया जा रहा है जिन्हें जलाने से उनसे संबद्ध मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
सोने का दीपक: सोने के दीपक को वेदी के मध्य भाग में गेहूं का आसन देकर और चारों तरफ लाल कमल या गुलाब के फूल की पंखुड़ियां बिखेर कर स्थापित करें। इसमें गाय का शुद्ध घी डालें तथा बत्ती लंबी बनाएं और इसका मुख पूर्व की ओर करें। सोने के दीपक में गाय का शुद्ध घी डालते हंै घर में हर प्रकार की उन्नति तथा विकास होता है। इससे धन तथा बुद्धि में निरंतर वृद्धि होती रहेगी। बुद्धि सचेत बुरी वृत्तियों से सावधान करती रहेगी तथा धन सही स्रोतों से प्राप्त होगा।
चांदी का दीपक: चांदी के दीपक को चावलों का आसन देकर सफेद गुलाब या अन्य सफे दफू ला े ंकी पं खुडिया े ंको चारों तरफ बिखेर कर पूर्व दिशा में स्थापित करें। इसमें शुद्ध देशी घी का प्रयोग करें। चांदी का दीपक जलाने से घर में सात्विक धन की वृद्धि होगी।
तांबे का दीपक: तांबे के दीपक को लाल मसूर की दाल का आसन देकर और चारों तरफ लाल फूलों की पंखुड़ियों को बिखेर कर दक्षिण दिशा में स्थापित करें। इसमें तिल का तेल डालें और बत्ती लंबी जलाएं। तांबे के दीपक में तिल का तेल डालने से मनोबल में वृद्धि होगी तथा अनिष्टों का नाश होगा।
कांसे का दीपक: कांसे के दीपक को चने की दाल का आसन देकर तथा चारों तरफ पीले फूलों की पंखुड़ियां बिखेर कर उत्तर दिशा में स्थापित करें। इसमें तिल का तेल डालें। कांसे का दीपक जलाने से धन की स्थिरता बनी रहती है। अर्थात जीवन पर्यन्त धन बना रहता है।
लोहे का दीपक: लोहे के दीपक को उड़द दाल का आसन देकर चारों तरफ काल े या गहर े नील े रं गक े पुष्पो ंकी पंखुड़ियां बिखेर कर पश्चिम दिशा में स्थापित करें। इसमें सरसों का तेल डालें। लोहे के दीपक में सरसों के तेल की ज्योति जलाने से अनिष्ट तथा दुर्घटनाओं से बचाव हो जाता है।
ग्रहों की पीड़ा निवारण हेतु: जिस प्रकार पूजा में नवग्रहों को अंकित किया जाता है वैसे ही चैकी के मध्य में सोने के दीपक को रखा जाता है। सोने के दीपक में सूर्य का वास होता है। सबसे पहले इसकी चैकी को तांबे में मढ़वाने का अर्थ है शरीर में रंग की शुद्धता तथा प्रचुरता क्योंकि तांबे में मंगल का वास है और शरीर में मंगल खून का नियंत्रक है। इसी तरह दीपकों को चैकी पर रखने का क्रम है।
जिस प्रकार पूजा क्रम में सूर्य मंडल को मध्य में रखकर पूजा की जाती है और माना जाता है कि सूर्य के चारों तरफ आकाश में उससे आकर्षित होकर सभी ग्रह उसकी परिक्रमा करते रहते हैं और उपग्रह अपने ग्रह के साथ सूर्य की परिक्रमा करते रहते हैं। उसी प्रकार अन्य दीपक सोने के दीपक के चारों तरफ स्थापि�