श्री यंत्र: स्वरूप और साधना पं. निर्मल कुमार झा श्रीयंत्र जैसा कि नाम है श्री अर्थात् लक्ष्मी जी का यंत्र है जिसकी साधना से साधकों को भुक्ति, मुक्ति, ऐश्वर्य सभी प्रकार के वैभवों तथा लक्ष्मी की कृपा की प्राप्ति होती है। इसकी स्थापना, उपासना से निर्धनों के घर में भी लक्ष्मी का आगमन होता है। श्री विद्या के यंत्र को श्री यंत्र कहा जाता है। इसमें श्री शब्द का प्रयोग हुआ है जो श्री विद्या का सूचक है। यंत्र का तात्पर्य चक्र से है। यह चक्र ब्रह्मांड का प्रतीक है। इस यंत्र पर ब्रह्मस्वरूपिणी आदि प्रकृति स्वरूपा श्री विद्या वाचक त्रिपुर सुंदरी का गृह यंत्र है। श्री यंत्र का रूप मनोहारी और चित्ताकर्षक है। इसके मध्य में ‘बिंदु’ और सबसे बाहर भूपुर है। भूपुर के चारांे ओर चार द्वार होते हैं। इसकी रचना दो-दो त्रिकोणों के परस्पर मिलन से होती है। अतः नौ त्रिकोण होते हैं। अधोमुखी त्रिकोण को शक्ति यंत्र और ऊध्र्वमुखी त्रिकोण को शिव यंत्र कहते हैं। पांच अधोमुखी त्रिकोण, जो शक्ति यंत्र हैं, इस प्रकार हैं- शक्ति त्रिकोण, अष्टार, अंतर्दशार, बहिर्दशार और चर्तुदशात। ऊध्र्वमुखी त्रिकोण, जो शिव यंत्र हैं, वे इस प्रकार 4 त्रिकोण हैं बिंदु, अष्टदल, षोडशदल और भूपुर (चतुस)। ये तेजत्रयात्मक रूप हैं। बिंदु नाद और कला रूप से भी त्रिपुर हैं। इच्छा (वामा), ज्येष्ठा (ज्ञान) और क्रिया रौद्र रूप से भी त्रयात्मक हैं। श्री चक्र और शरीर चक्रों का समन्वय है। ब्रह्मरंध्र में स्थित महाबिंदु सहस्रार है। इस प्रकार श्रीचक्र और शरीर के कुंडलिनी चक्र में समानता पूर्णतया परिलक्षित होती है। यह चक्र निखिल ब्रह्मांड का भी सूचक है। श्री यंत्र का बीज मंत्र है ¬ श्रीं ह्रीं क्लीं ह्रीं श्री महालक्ष्म्यै नमः। इस मंत्र का एक लाख अठारह हजार बार जप करने पर श्री यंत्र सिद्ध हो जाता है। इसके बाद जब कभी यंत्र को उपयोग में लाया जाता है तो उक्त मंत्र का 1008 बार जप, 1008 बार हवन और 11 बार तर्पण तथा मार्जन किया जाता है। ध्यान रखने की बात है कि सारी क्रियाएं एक बैठक में होनी चाहिए। तदुपरांत ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए। यह यंत्र सोना या चांदी की प्लेट पर बनाया जाता है। इसे गर्दन में लाॅकेट बनाकर तथा अंगूठी में लिख कर पहना जाता है। ध्यान रहे कि इस यंत्र की सभी रेखाएं एक समान हों। यह यंत्र रात्रि में कदापि न पहनें। पूजा तथा नित्य उपयोग के लिए कुंकुम या सिंदूर से इसकी रचना करनी चाहिए। यदि किसी रत्न पर इस यंत्र को बनाना हो तो रत्न एक से चार तोले के बीच होना चाहिए। पूजा के समय भूमि पर भी सिंदूर या कुंकुम से श्री यंत्र बनाया जा सकता है। यदि किसी कारण श्री यंत्र घिस जाए या गुम हो जाए या चोरी हो जाए तो बीज मंत्र का दस हजार बार जप करना चाहिए। यदि यंत्र की रेखाएं काल क्रम में धूमिल हो जाएं तो इस यंत्र को जल में प्रवाहित कर देना चाहिए। इस यंत्र की स्थापना सूर्याेदय के पूर्व पूजा स्थल या मंदिर में की जाती है। यंत्र धातु या स्फटिक का होना चाहिए और वह ऊध्र्व हो। यंत्र पर केसर तथा सुगंधित लाल पुष्प (कमल, गुलाब आदि) अर्पित करने चाहिए और पूर्वाेŸार कोण में घी का दीपक जलाना चाहिए। इसे पहनने या स्थापित करने से पहले निम्नोक्त मंत्र से प्राण प्रतिष्ठित अवश्य कर लेना चाहिए। मंत्र- ¬ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ह्रीं श्रीं ¬ महालक्ष्म्यै नमः। इसके बाद श्री सूक्त का पाठ नित्य करना चाहिए। इससे धन, ऐश्वर्य, वैभव, सुख-समृद्धि, स्वास्थ्य आदि की प्राप्ति होती है। राशि के अनुसार श्री यंत्र धारण करने की विधि मेष तथा वृश्चिक राशि में जन्म लेने वाले लोगों को यह यंत्र गंगाजल, दूध तथा मसूर दाल तीनों को मिश्रण से ऊपर वर्णित विधि से अभिमंत्रित कर धारण करना चाहिए। वृष तथा तुला राशि वाले लोग अक्षत (चावल) को दूध में रखकर यंत्र को अभिमंत्रित करें तथा अपने इष्ट देवता का ध्यान करें। मिथुन तथा कन्या राशि वाले लोग दूध में शक्कर तथा मूंग मिलाकर इस यंत्र को अभिमंत्रित करें। कर्क राशि वाले जातक दूध, चीनी तथा चावल को मिलाकर इसे अभिमंत्रित करें। सिंह राशि वाले लोग दूध, चने की दाल तथा कमल के फूल मिलाकर इस यंत्र को अभिमंत्रित करें। धनु तथा मीन राशि वाले जातक दूध में पीत पुष्प मिलाकर इस यंत्र को अभिमंत्रित करें। मकर तथा कंुभ राशि वाले लोग दूध में उड़द तथा नील पुष्प अपराजिता डालकर इसे अभिमंत्रित करें। इस यंत्र की साधना से भौतिक आवश्यकताएं पूरी होती हैं। साथ ही इसके घर में रहने से शत्रुओं द्वारा किए गए अभिचारिक तंत्र-मंत्र निष्फल हो जाते हंै। आज इस यंत्र को सभी धर्म के लोग अपना रहे हैं। इस यंत्र की नियमित पूजा से जातक को ऋण से मुक्ति मिलती है तथा उसी सभी कामनाएं पूरी होती हैं।