श्री यंत्र सिद्धि के सरल उपाय प्रेम प्रकाश विद्रोही श्रीराजा कहते हैं। इसकी साधना उपासना से लक्ष्मी की प्राप्ति, शत्रुओं का शमन और मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। इस की देवी त्रिपुरसुंदरी है। श्री यंत्र रचना: इसमें कई वृत्त होते हैं। इसके केंद्र में बिंदु होता है। इसके चारों ओर नौ त्रिकोण होते हैं। इनमें 5 की नोंकें ऊपर व चार की नोंकें नीचे की ओर होती हंै। इसमें एक अष्ट दल व दूसरा षोडश दस वाला कमल होता है। आनंद लहरी में श्री शंकराचार्य इस संबंध में कहते हैं ‘‘चतुर्भीः श्रीकण्ठेः शिव युवतीभिः पंचभिरपि मूल प्रकृतिभिः त्रयश्च त्वारिशद्वसुदल कलाब्जत्रिबलय त्रिरेखाभिः सार्घः तव भवन कोणः परिणताः। यह अनेक तरह के होते हैं। इस यंत्र में पांच शक्ति त्रिकोण ऊध्र्वमुखी व चार शिव त्रिकोण अधोमुखी होते हैं। यह यंत्र सर्व सिद्धिदायक है और इसी से इसे यंत्र राज कहते हैं। यह भोजपत्र, त्रिलोह, ताम्रपत्र, रजत व स्वर्ण पत्र पर बनाया जा सकता है। यह स्फटिक का भी होता है। स्फटिक या स्वर्ण के शास्त्रोक्त मुहूर्त में बने ऊध्र्वमुखी यंत्र की पूजा कर कमलगट्टे की माला से जप करने से लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। अधोमुखी श्रीयंत्र के मंत्र की रुद्राक्ष माला से जप करने से शत्रु व रोगों का शमन होता है। श्री यंत्र सिद्धि: शुभ मुहूर्त में शुद्ध एवं एकांत स्थान पर चैकी पर शास्त्रोक्त विधि से श्री गणेश, गुरु, इष्ट देव व यंत्र की स्थापना कर विनियोग, ऋष्यादिन्यास, करन्यास, हृदयदिन्यास और ध्यान करें। फिर षोडशोपचार विधि से पूजन कर ¬ श्री सि( त्रिपुर सुन्दरियाय नमः। मंत्र का सवा लाख जप करें। फिर दशांश क्रम से होम, तर्पण और मार्जन करें तथा गुरु कन्या व ब्राह्मण को भोजन कराकर यंत्र को पूजा स्थल या तिजोरी में रखें। फिर नित्य नियमपूर्वक यंत्र को धूप बत्ती दिखाकर मनोकामना निवेदित करते हुए एक माला जप करें, लाभ होगा। यह यंत्र विभिन्न विधियों व मंत्रों से सिद्ध किया जाता है। यंत्र को सिद्ध व धारण करने की विस्तृत विधि मंत्र महार्णव, मंत्र महोदधि, शाक्त प्रमोद, शारदतिलक आदि विभिन्न ग्रंथों में उल्लिखित है। भोज पत्र पर अष्टगंध से यंत्र अंकित करें अथवा किसी विश्वसनीय स्थान पर बने धातु या स्फटिक के यंत्र का प्रयोग करें। यंत्र भैरव सिद्धि के सरल सिद्धांतः गौरी यामल में कूर्म पृष्ठ, पद्म पृष्ठ, भूपृष्ठ और मेरु पृष्ठ यंत्रों का भी उल्लेख है। यंत्र चल या अचल हो सकता है। चल यंत्र धारण भी किया जाता है। धातु यंत्रों की शुद्ध विशेष तोल का ध्यान रखना चाहिए जैसे अंगूठियों में विशेष नग की विशेष तोल का ध्यान रखा जाता है। यंत्र लेखन में मन की शुद्धि व आस्था परमावश्यक है। साथ ही साधना काल में हलका, सुपाच्य भोजन और सात्विक जीवनचर्या का पालन करना चाहिए। साधना जल पूर्ण कलश स्थापित कर करनी चाहिए और धूप दीप जलते रखने चाहिए। श्री यंत्र साधना की तांत्रिक विधि और मंत्र भी हंै। किंतु तंत्र क्रिया का अनुष्ठान योग्य और विद्वान पंडित का परामर्श लेकर और उनके समक्ष ही करना चाहिए। यंत्र साधना के समय शुभ नेत्र या भुजा का फड़कना या शुभ वाद्य यंत्रों का घोष होना या शुभ स्वप्न का आना साधना की सफलता का सूचक होता है। साधना के पश्चात भी मंत्र का एक माला जप नित्य करने से यंत्र व मंत्र जाग्रत रहकर उत्तम फल देते हैं। यंत्र को देवता का शरीर व मंत्र को देवता का मन कहते हैं। कुलार्णव तंत्र के अनुसार- यमभूतादि सर्वेभ्योऽपि कुलेश्वरि। त्रायते सत्त×चैव तस्माद यन्त्रमितिरितम्।।’’ यंत्र सब प्रकार के भयों से मुक्त करता है। अतः संपूर्ण श्री यंत्र को सिद्ध कर लाभ उठाना चाहिए। यंत्र की साधना उपासना से दैहिक, दैविक व भौतिक सभी सुखों की प्राप्ति होती है। यंत्रों में बनी रेखाएं, त्रिभुज, बिंदु, आयत आदि मात्र ज्यामितीय रेखा चित्र नहीं बल्कि ग्रह, नक्षत्र और देवताओं के प्रतीक होते हैं। अतः यंत्र की पूजा से वांछित फल की प्राप्ति होती है। यंत्र साधना का एक प्रभावशाली मंत्र यह भी है। गं गणपतये नमः