क्या है श्री यंत्र? डाॅ. संजय बु(िराजा श्रीयंत्र का उल्लेख तंत्रराज, ललिता सहस्रनाम, क ा म क ल ा िव ल ा स , त्रिपुरोपनिषद आदि विभिन्न प्राचीन भारतीय ग्रंथों में मिलता है। महापुराणों में श्री यंत्र को देवी महालक्ष्मी का प्रतीक कहा गया है। इन्हीं पुराणों में वर्णित महालक्ष्मी स्वयं कहती हैं- ‘श्री यंत्र मेरा प्राण, मेरी शक्ति, मेरी आत्मा तथा मेरा स्वरूप है। श्री यंत्र के प्रभाव से ही मैं पृथ्वी लोक पर वास करती हूं।’’ श्री यंत्र में 2816 देवी देवताओं की सामूहिक अदृश्य शक्ति विद्यमान रहती है। इसीलिए इसे यंत्रराज, यंत्र शिरोमणि, षोडशी यंत्र व देवद्वार भी कहा गया है। ऋषि दत्तात्रेय व दूर्वासा ने श्रीयंत्र को मोक्षदाता माना है। जैन शास्त्रों ने भी इस यंत्र की प्रशंसा की है। जिस तरह शरीर व आत्मा एक दूसरे के पूरक हैं उसी तरह देवता व उनके यंत्र भी एक दूसरे के पूरक हैं। यंत्र को देवता का शरीर और मंत्र को आत्मा कहते हैं। यंत्र और मंत्र दोनों की साधना उपासना मिलकर शीघ्र फलदेती है। जिस तरह मंत्र की शक्ति उसके शब्दों में निहित होती है उसी तरह यंत्र की शक्ति उसकी रेखाओं व बिंदुओं में होती है। मकान, दुकान आदि का निर्माण करते समय यदि उनकी नींव में प्राण प्रतिष्ठत श्री यंत्र को स्थापित करें तो वहां के निवासियों को श्री यंत्र की अदभुत व चमत्कारी शक्तियों की अनुभूति स्वतः होने लगती है। श्री यंत्र की पूजा से लाभ: शास्त्रों में कहा गया है कि श्रीयंत्र की अद्भुत शक्ति के कारण इसके दर्शन मात्र से ही लाभ मिलना शुरू हो जाता है। इस यंत्र को मंदिर या तिजोरी में रखकर प्रतिदिन पूजा करने व प्रतिदिन कमलगट्टे की माला पर श्री सूक्त के 12 पाठ श्री लक्ष्मी मंत्र के जप के साथ करने से लक्ष्मी प्रसन्न रहती है और धनसंकट दूर होता है। जन्मकुंडली में मौजूद जैसे कि केमद्रुम, दरिद्र, शकट, ऋण, निर्भाग्य, काक आदि विभिनन कुयोगों को दूर करने में श्री यंत्र अत्यंत लाभकारी है। यह यंत्र मनुष्य को धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष देने वाला है। इसकी कृपा से मनुष्य को अष्टसिद्धि व नौ निधियों की प्राप्ति हो सकती है। श्री यंत्र के पूजन से सभी रोगों का शमन होता है और शरीर की कांति निर्मल होती है। इसकी पूजा से वीर्य स्तंभन होता है व पंचतत्वों पर विजय प्राप्त होती है। इस यंत्र की कृपा से मनुष्य को धन, समृद्धि, यश, कीर्ति, ऐश्वर्य आदि की प्राप्ति होता है। श्री यंत्र के पूजन से रुके हुए कार्य बनते हैं। श्री यंत्र की श्रद्धापूर्वक नियमित रूप से पूजा करने से दुख दारिद्र्य का नाश होता है। श्री यंत्र की साधना उपासना से साधक की शारीरिक और मानसिक शक्ति पुष्ट होती है। इस यंत्र की पूजा से दस महाविद्याओं कीे कृपा भी प्राप्त हो सकती है। श्री यंत्र की साधना से आर्थिक उन्नति होती है और व्यापार में सफलता मिलती है। श्री यंत्र का निर्माण: श्री यंत्र का निर्माण स्वर्ण, रजत या, ताम्र पत्र अथवा स्फटिक या मणि पर किया जाता है। त्रिधातु अर्थात सोना, चांदी व ताम्र को मिला कर भी श्री यंत्र का निर्माण किया जा सकता है। पारद श्री यंत्र को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। भोजपत्र पर बना श्री यंत्र साधारण फलदायी, ताम्रपत्र पर श्रेष्ठ, रजत पर श्रेष्ठतर व स्वर्ण पत्र पर बना श्रेष्ठतम फलदायी होता है। स्फटिक व मणि पर निर्मित श्री यंत्र भी दीवाली पर अत्यंत शुभ फलदायी होते हंै। शत्रुशमन के लिए सोने का और कल्याण व लक्ष्मी प्राप्ति के लिए चांदी का श्रीयंत्र उपयोगी है। व्यवसाय स्थल में अष्टधातु का श्रीयंत्र स्थापित करना चाहिए। श्री यंत्र का निर्माण गुरुपुष्य योग, रविपुष्य योग, नवरात्रि दीवाली या शिवरात्रि के अवसर पर किया जाता है। शुद्ध स्फटिक से बना श्री यंत्र अनंतकाल तक, स्वर्ण का 100 वर्ष, रजत का 25 वर्ष, ताम्र का 12 वर्ष तथा भोजपत्र का श्रीयंत्र 6 वर्ष तक शुभफलदायी रहता है। श्री यंत्र की संरचना: श्री यंत्र का रूप ज्यामितीय होता है। इसकी संरचना में बिंदु, त्रिकोण या त्रिभुज, वृत्त, अष्टकमल का प्रयोग होता है। तंत्र के अनुसार श्री यंत्र का निर्माण दो प्रकार से किया जाता है- एक अंदर के बिंदु से शुरू कर बाहर की ओर जो ‘सृष्टि-क्रिया निर्माण’ कहलाता है और दूसरा बाहर के वृत्त से शुरू कर अंदर की ओर जो ‘संहार-क्रिया निर्माण’ कहलाता है। श्री यंत्र में 9 त्रिकोण या त्रिभुज होते हैं जो निराकार शिव की 9 मूल प्रकृतियों के द्योतक हैं। मुख्यतः दो प्रकार के श्रीयंत्र बनाये जाते हैं - सृष्टि क्रम और संहार क्रम। सृष्टि क्रम के अनुसार बने श्रीयंत्र में 5 ऊध्र्वमुखी त्रिकोण होते हैं जिन्हें शिव त्रिकोण कहते हैं। ये 5 ज्ञानेंद्रियों के प्रतीक हैं। 4 अधोमुखी त्रिकोण होते हैं जिन्हें शक्ति त्रिकोण कहा जाता है। ये प्राण, मज्जा, शुक्र व जीवन के द्योतक हैं। संहार क्रम के अनुसार बने श्रीयंत्र में 4 ऊध्र्वमुखी त्रिकोण शिव त्रिकोण होते हैं और 5 अधोमुखी त्रिकोण शक्ति त्रिकोण होते हैं। यह श्रीयंत्र कश्मीर संप्रदाय में कौल मत के अनुयायी उपयोग में लाते हैं। श्री यंत्र में 9 त्रिभुजों का निर्माण इस प्रकार से किया जाता है कि उनसे मिलकर 43 छोटे त्रिभुज बन जाते हैं जो 43 विभिन्न देवताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। मध्य के सबसे छोटे त्रिभुज के बीच एक बिंदु होता है जो समाधि का सूचक है अर्थात यह शिव व शक्ति का संयुक्त रूप है। इसके चारों ओर जो 43 त्रिकोण बनते हैं वे योग मार्ग के अनुसार यम 10, नियम 10, आसन 8, प्रत्याहार 5, धारण 5, प्राणायाम 3, ध्यान 2 होते हैं। इन त्रिभुजों के बाहर की तरफ 8 कमल दल का समूह होता है जिसके चारों ओर 16 दल वाला कमल समूह होता है। इन सबके बाहर भूपुर है। मनुष्य शरीर की भांति ही श्री यंत्र की संरचना में भी 9 चक्र होते हैं जिनका क्रम अंदर से बाहर की ओर इस प्रकार है- केंद्रस्थ रक्त बिंदु फिर पीला त्रिकोण जो सर्वसिद्धिप्रद कहलाता है। फिर हरे रंग के 8 त्रिकोण सर्वरक्षाकारी हैं। उसके बाहर काले रंग के 10 त्रिकोण सर्वरोगनाशक हैं। फिर लाल रंग के 10 त्रिकोण सर्वार्थ सिद्धि के प्रतीक हैं। उसके बाहर नीले 14 त्रिकोण सौभाग्यदायक हैं। फिर गुलाबी 8 कमलदल का समूह दुख, क्षोभ आदि के निवारण का प्रतीक है। उसके बाहर पीले रंग के 16 कमलदल का समूह इच्छापूर्ति कारक है। अंत में सबसे बाहर हरे रंग का भूपुर त्रैलोक्य मोहन के नाम से जाना जाता है। इन 9 चक्रों की अष्ठिात्री 9 देवियों के नाम इस प्रकार हैं। 1. त्रिपुरा 2. त्रिपुरेशी 3. त्रिपुरसुंदरी 4. त्रिपुरवासिनी, 5. त्रिपुरात्रि, 6. त्रिपुरामालिनी, 7. त्रिपुरसिद्धा, 8. त्रिपुरांबा और 9. महात्रिपुरसुंदरी। श्री यंत्र के प्रकार: विभिन्न प्रकार के श्रीयंत्रों व उनके फलों का वर्णन इस प्रकार है। मेरुपृष्ठ-पारद: ऋद्धि सिद्धि व लक्ष्मी प्राप्ति हेतु मेरुपृष्ठ- अष्टधातु: परिवार सुख व धनप्राप्ति हेतु मेरुपृष्ठ-स्फटिक: शांति, विद्या, समृद्धि व एकाग्रता हेतु कूर्मपृष्ठ-अष्टधातु: आयु, समृद्धि, शांति और शक्ति हेतु मुद्रिका-स्वर्ण: व्यवसाय में लाभ व धन के निर्बाध आगमन हेतु पिरामिड- अष्टधातु: धन, ध्यान, ज्ञान और स्वास्थ्य हेतु रजत पत्र: धन, सुख व ज्ञान हेतु ताम्र पत्र: धन व समृद्धि की प्राप्ति और लक्ष्मीदोष निवारण हेतु लाॅकेट-चांदी: धन लाभ व इच्छापूर्ति हेतु श्री यंत्र की पूजा में प्रयुक्त होने वाले मंत्र: विभिन्न श्रीयंत्रों की पूजा में प्रयोग किये जाने वाले विभिन्न मंत्र इस प्रकार हैं। श्री ¬ महालक्ष्म्यै नमः ¬ श्री ह्रीं क्लीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः ¬ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः तीर्थ स्थल और श्री यंत्र: भारत वर्ष में विभिन्न तीर्थ स्थलों में भी श्री यंत्र स्थापित हैं जिनका संक्षिप्त विवरण यहां प्रस्तुत है। इन यंत्रों की महत्ता के कारण ही इन तीर्थस्थलों में अपार संपत्ति है। आबू के दिलवाड़ा मंदिर में ओसिमा देवी के द्वार व खंभों पर श्री यंत्र अंकित है। महर्षि रमण के आश्रम व जगतगुरु शंकराचार्य के मठों में श्री यंत्र स्थापित हैं। दक्षिण भारत के तिरुपति बाला जी के मंदिर में नींव स्थापना के समय विधिवत सिद्ध श्रीयंत्र नींव में स्थापित किए गए थे। मंदिर मुख्य विग्रह की पीठ पर भी श्री यंत्र (षोडशी यंत्र) उत्कीर्ण हैं। बांसवाड़ा में श्री त्रिपुर सुंदरी देवी के मंदिर में भी श्री यंत्र के दर्शन होते हैं। जगन्नाथ जी के मंदिर में भैरवी चक्र व श्रीनाथ मंदिर में सुदर्शन चक्र के रूप में श्री यंत्र स्थापित है। सौराष्ट्र के सोमनाथ मंदिर के भूगर्भ में स्वर्ण शिलाओं पर श्रीयंत्र उत्कीर्ण थे।