श्री यंत्र एवं पंच तंत्र विधान
श्री यंत्र एवं पंच तंत्र विधान

श्री यंत्र एवं पंच तंत्र विधान  

व्यूस : 8048 | मई 2008
श्री यंत्र एवं पंच तंत्र विधान अशोक शर्मा श्रीयंत्र की स्थापना और पूजन का विधान अति प्राचीन है। इसकी रचना आदि शंकराचार्य द्वारा आदि देव महादेव की सहायता से की गई थी। इसकी पूजा आराधाना से साधक को धन, ऐश्वर्य, आरोग्य, वंशवृद्धि और सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। विभिन्न तांत्रिक वस्तुओं के साथ श्री यंत्र की विधिवत स्थापना से साधना में होने वाली त्रुटियों के दुष्प्रभाव स्वतः ही नष्ट हो जाते हैं तथा मनोवांछित कामनाओं की शीघ्रातिशीघ्र पूर्ति होती है। श्री यंत्र के साथ अन्य तांत्रिक प्रभाव वाली वस्तुएं, प्रतिमाएं आदि स्थापित की जाती हैं। तिरुमाला पर्वत पर स्थित तिरुपति बालाजी की प्रतिमा श्री यंत्र को आधार बनाकर स्थापित की गई तथा शंख, चक्र, गदा, पद्म, मुद्रा आदि भी उत्कीर्ण किए गए। फलतः तिरुपति बालाजी का मंदिर आज भी विश्व का सर्वाधिक आय वाला धार्मिक स्थल है। श्री यंत्र की घर में स्थापना करनी हो तो साथ में इन चार तांत्रिक प्रभाव वाली वस्तुओं की स्थापना भी करनी चाहिए- श्वेतार्क गणपति, पारद शिवलिंग, दक्षिणावर्ती शंख और एकाक्षी श्रीफल उक्त चारों वस्तुओं की पूजा का विधान इस प्रकार है। श्वेतार्क गणपति: समस्त प्रकार के विघ्नों के नाश के लिए गणपति का स्मरण एवं पूजन सबसे पहले किया जाता है। श्वेतार्क गणपति की विधिवत स्थापना और पूजन से समस्त कार्य साधानाएं, उत्सव आदि शीघ्र निर्विघ्न संपन्न होते हैं। मंत्र: ।। वक्रतुण्डाय हुम्।। पारद शिवलिंग: तंत्र मार्ग में या अन्य किसी भी पद्धति से की जाने वाली शक्ति की पूजा उपासना में शिव की पूजा अवश्य की जाती है। शिव शक्ति का संयुक्त पूजन ही फलदायी होता है। किसी एक की पूजा करते रहने से मनोवांछित फल प्राप्त नहीं होते। श्री यंत्र की अधिष्ठात्री देवी महाविद्या श्री त्रिपुर सुंदरी तथा अधिष्ठाता देवता शिव त्रिपुरारि हैं। अतः पारद शिवलिंग में त्रिपुरारि का पूजन करें एवं निम्न मंत्र का यथाशक्ति जप करें- रसेन्द्रः पारदः सुतो, हरजः सूतको रसः। सूतराजो मुकुन्दश्च, शिव वीर्यश्च चपलः।। महारसो रसराजः शंभु वीजश्च शंभुजः। रसेन्द्र राजो नाम्नाऽसौ मिश्रकः शिव संभवः।। दक्षिणावर्ती शंख: समुद्र मंथन में चैदह रत्नों की प्राप्ति हुई थी। इनमें एक दक्षिणावर्ती शंख भी है। चूंकि महालक्ष्मी का प्राक्टय भी समुद्र मंथन के समय समुद्र से ही हुआ था इसलिए दक्षिणावर्ती शंख को महालक्ष्मी का सहोदर माना जाता है। अतः लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए की जाने वाली साधनाओं में दक्षिणावर्ती शंख की स्थापना और पूजा अवश्य करनी चाहिए। मंत्र: ।। ¬ ह्रीं दक्षिणावर्ती शंखाय मम सर्व क्लेश हराय संकट मोचनाय हीं नमः।। अथवा ।। ¬ लक्ष्मी सहोदराभ्यां नमः ।। शंख द्वारा श्वेतार्क गणपति एवं श्रीयंत्र के अभिषेक का भी विधान है। एकाक्षी श्रीफल: पौराणिक ग्रंथों के अनुसार अन्न की उत्पत्ति अन्नपूर्णा से, शाक की उत्पत्ति देवी शाकंभरी से और वृक्षों तथा फलों की उत्पत्ति महादेव, ऋषियों और नक्षत्रों से हुई। नारियल, जिसे श्रीफल भी कहा जाता है, की सृष्टि ऋषि विश्वामित्र ने की। नारियल में साधारणतः तीन बिंदु और तीन जटा (रेखाएं) होती हैं किंतु दुलर्भ वनस्पति तंत्र सिद्धांतानुसार जिस नारियल के सिर्फ दो बिंदु हों, उसे एकाक्षी नारियल कहा जाता है। तीन बिंदुओं वाला नारियल दो आंख और एक मुंह का जबकि दो बिंदुओं वाला एक आंख एवं एक मुख का माना जाता है। चिन्तामणीः प्रस्तस्तुल्य भावः सम्मन्यतां धन्यतमः स्वचिते। यश्चैक नेत्रो द्विजटी सुपक्वः स नालिकेरः कृतनोऽस्ति गेहे।। चिंतामणि के समान फलदायी प्रभावशाली धन्यतम एकनेत्र और दो जटाओं से युक्त सुपक्व नारियल परम भाग्यशाली को ही प्राप्त होता है। मंत्र: 1. ¬ श्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं ऐं एकाक्षी श्रीपफल भगवते त्रौलोक्य नाथाय सर्वकाम पफल प्रदाय पफट् स्वाहा।। अथवा ¬ भ्रूं क्रों एकाक्षीनारिकेलाय हीं नमः श्रीयंत्र श्री यंत्र की स्थापना और पूजा विधिवत की जाए और दक्षिणावर्ती शंख से इसका अभिषेक किया जाए तो कोई भी मनोकामना अधूरी नहीं रह सकती। श्रीयंत्र की अधिष्ठात्री देवी त्रिपुर सुंदरी का विधिवत श्रीयंत्र पर आवाहन पूजन करके मंत्र जप करना चाहिए। श्री यंत्र की पूजा के पश्चात त्रिपुरसुंदरी के मंत्र, शतनाम, सहस्रनाम या श्रीसूक्त, कनकधारा स्तोत्र, लक्ष्मीसूक्त आदि का जप, पाठ आदि करने चाहिए।



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