कार्यों में रुकावट देता है, दक्षिण – पश्चिम का द्वार
कार्यों में रुकावट देता है, दक्षिण – पश्चिम का द्वार

कार्यों में रुकावट देता है, दक्षिण – पश्चिम का द्वार  

व्यूस : 5986 | अकतूबर 2008
कार्यों में रुकावट देता है दक्षिण-पश्चिम का द्वार पं. गोपाल शर्मा कछ दिनों पहले दिल्ली के श्री सुशील कुमार गर्ग के घर का वास्तु निरीक्षण किया गया। श्री गर्ग काफी समय से मानसिक तनाव से गुजर रहे थे। उनका कोई भी कार्य पूरा नहीं हो पाता था और उनके स्वास्थ्य में दिन प्रतिदिन गिरावट आती जा रही थी। अनिद्रा व बैचेनी के कारण उनका स्वभाव चिड़चिड़ा हो गया था। निरीक्षण करने पर श्री गर्ग के घर में निम्न दोष पाए गए- स दक्षिण-पश्चिम में प्रवेश द्वार था। यह कार्यों में रुकावट, परिवार में वैमनस्य, स्वास्थ्य में गिरावट व मान हानि का कारक होता है। सघर के बंद वायव्य कोण तथा उत्तरी वायव्य कोण की स्थिति के कारण आर्थिक कष्ट का सामना करना पड़ता है, धन का अपव्यय होता है तथा उन्नति में रुकावट आती है। सरसोईघर पश्चिम दिशा में था जिसका दरवाजा पीठ के ठीक पीछे था। यह स्थिति खाद्यान्न की बर्बादी तथा गृह स्वामिनी के जोड़ों और कमर में दर्द का कारक होती है। उत्तर-पूर्व में दम्पति का शयन कक्ष था। इस दिशा में शयन कक्ष का होना परिवार की उन्नति में रुकावट एवं सदस्यों में वैमनस्य पैदा करता है। यह दिशा प्रार्थना कक्ष, अध्ययन कक्ष, बच्चों के शयन कक्ष या अतिथि कक्ष के लिए उपयुक्त होती है। पूजा घर की बनावट ऐसी थी कि पूजा करने वाले को दक्षिण की तरफ मुख करके बैठना पड़ता था। इस तरह पूजा करना ठीक नहीं होता। घर के लोग उत्तर की ओर सिर करके सोते थे। इस स्थिति में सोने से रात भर बुरे स्वप्न आते हैं और व्यक्ति अनिद्रा व सिर के दर्द से पीड़ित रहता है। उत्तर-पश्चिम दिशा वाले शयन कक्ष के सम्मुख दर्पण था। ऐसे दर्पण में सोने वाले के शरीर के जो अंग दर्पण में दिखाई देते हंै उनमें दर्द होता है या वे रोगग्रस्त हो जाते हैं। उपर्युक्त बातों को ध्यान में रखकर निम्न सुझाव बताए गए- प्रवेश द्वार की दिशा बदल कर दक्षिण-पूर्व या दक्षिण मंे बनाने की सलाह दी गई। उत्तर पश्चिम भाग के दोष को समाप्त करने के लिए उस भाग से उत्तर पूर्व तक परगोला बनाकर आकार को समचैरस रूप देने की सलाह दी गई। चूल्हे का स्थान परिवर्तित कर उसे पूर्व की ओर दक्षिण पूर्वी कोण में रखने को कहा गया। श्री गर्ग को अपना शयन कक्ष उत्तर-पश्चिम में स्थानांतरित करने की सलाह दी गई। दर्पण की दिशा बदलने को कहा गया ताकि उसमें सोते वक्त शक्ल न दिखाई दे। सिरहाना दक्षिण की ओर रखने को कहा गया। तथा पूजा का स्थान पूर्व की ओर रखने की सलाह दी गई ताकि पूजा करते वक्त मुख पूर्व की ओर हो। श्री गर्ग ने लगभग सभी सुझावों को कार्यान्वित किया जिससे उन्हें परेशानियों से बहुत राहत मिली।



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