संपत्ति प्राप्ति के सरल उपाय पं. सुनील जोशी जुन्नकर गतवयसामपि पुंसां येषामर्थाः भविन्त ते तरुणाः। अर्थेन तु ये हीनां वृद्धास्ते यौवनेऽपिस्युः।। पंचतंत्र के अनुसार, वृद्ध पुरुषों में भी जिनके पास धन है, वे युवा हैं। जो धनहीन हैं, वे युवावस्था में ही वृद्ध हो जाते हैं। वस्तुतः सामाजिक और भौतिक जीवन में धन स्थान अति महत्वपूर्ण है। इसके महत्व को हमारे ऋषियों ने स्वीकार करके इसे चतुर्वर्ग (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) पुरुषार्थ में शामिल किया। भारत के संन्यासी, वैरागी पुरुष मोक्षमार्ग में धन को बाधक मानकर इसका विरोध करते हैं तथा इसे त्याज्य मानते हैं। नीतिशास्त्र कहता है कि न्यायपूर्वक धन उपार्जित करना चाहिए। न्यायपूर्वक अर्जित किए हुए धन से जातक का अपना और दूसरों का कल्याण होता है। धन के दान को श्रीकृष्ण ने सात्विक दान की संज्ञा दी है। धर्म और काम ‘अथर्’ पर ही आधारित हंै। वास्तव मंे चारों पुरुषार्थ एक-दूसरे के विरोधी नहीं, पूरक हैं। पुरुषार्थ चतुष्टय में क्रमानुसार पहले वाले की प्राप्ति होने पर दूसरे की प्राप्ति सहज ही हो जाती है। अर्थ से काम के पूरा (पूर्णकाम) होने पर मोक्ष का द्वार प्रशस्त होता है। अतः प्रयत्नपूर्वक तथा उचित मार्ग से अर्थ का उपार्जन करना चाहिए। अर्थ का उपार्जन निर्विघ्न रूप से, सरलता व शीघ्रता से हो और ऋण आदि से शीघ्र मुक्ति मिले, इस हेतु कुछ उपाय यहां प्रस्तुत हैं। Û प्रतिदिन ‘ब्रह्ममुहूर्त में श्री हरि विष्णु जी का पूजन कर गजेंद्रमोक्ष स्तोत्र का पाठ (तुलसीदल भी अर्पित करते हुए) करें, ऋण से मुक्ति मिलेगी। इस स्तवन का प्रारंभ दीपावली से करें। ‘गजेन्द्रमोक्ष’ का पाठ पापनाशक तथा धन और यशदायक है। इसका जीवनपर्यंत पाठ करने से मृत्यु के समय निर्मल मति की प्राप्ति होती है जिससे जीव परम गति (मोक्ष) को प्राप्त होता है। आशय यह है कि गजेन्द्रमोक्ष भुक्ति (भोग) और मुक्ति दोनों देने वाला है। Û लक्ष्मी के आगमन अर्थात् धन प्राप्ति के लिए ऋग्वेदोक्त ‘श्रीसूक्त’ का पाठ घी आहुतियां देकर करना चाहिए। जप हेतु कमलगट्टे की माला का प्रयोग करंे। ज्ञान, धन और ऐश्वर्य से संपन्न लक्ष्मी को शास्त्रों में ‘श्री’ की संज्ञा दी गई है। श्रीसूक्त श्री लक्ष्मी जी की स्तुति और प्रार्थना है। आद्य गुरु शंकराचार्य ने श्रीसूक्त की प्रसंशा करते हुए इसे लक्ष्मी जी का प्राण तथा श्रीयंत्र को लक्ष्मी जी का शरीर विग्रह कहा है। श्रीयंत्र साक्षात् लक्ष्मी का प्रतीक है। यह भौतिक एवं आर्थिक उन्नति में सर्वाधिक सहायक होता है। यह 272 प्रकार का होता है। इनमें स्फटिक से निर्मित सुमेरु पर्वत के समान मेरुपृष्ठीय श्रीयंत्र सर्वश्रेष्ठ है। जिस घर में स्फटिक श्रीयंत्र स्थापित होता है उसमें विद्यमान वास्तुदोषों का निवारण स्वतः ही हो जाता है और परिवार में समृद्धि आती है। दीपावली पर श्रीयंत्र की स्थापना एवं पूजा करनी चाहिए। स्फटिक के अतिरिक्त चांदी अथवा तांबे के पत्र पर उभरे हुए श्रीयंत्र की स्थापना कर पूजन किया जा सकता है। ऊपर वर्णित रत्न तथा धातुओं के अभाव में भोजपत्र पर अष्टगंध से (या घी मिश्रित सिंदूर से) श्रीयंत्र की रचना करें। फिर उस पर चंदन, अक्षत एवं पुष्प चढ़ाकर महालक्ष्मी की मूर्ति स्थापित करें और ¬ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद, श्रीं ह्रीं श्रीं ¬ महालक्ष्म्यै नमः मंत्र से यंत्र और मूर्ति दोनों का पूजन करें। इस मंत्र से श्री यंत्र सिद्ध हो जाता है। इस मंत्र का कमलगट्टे की माला से 108 बार जप भी करें। दीपावली पर्व के बाद भोजपत्र पर अंकित श्रीयंत्र को तावीज में भरकर गले या भुजा में धारण करें। स्नान के बाद प्रतिदिन इसे धूप दिखाएं, लक्ष्मी की प्राप्ति होगी। कर्जों से छुटकारा, भूमि और धन के लाभ हेतु स्कंदपुराण में वर्णित ऋणमोचक मंगल स्तोत्र का 40 दिन पाठ करें। जीवन में उच्च स्तरीय सफलता की प्राप्ति हेतु अपने व्यवसाय के अनुकूल रुद्राक्ष धारण करें। रुद्राक्ष शिव प्रदोष (20 अक्तूबर) को सूर्यास्त के बाद धारण करें। प्रति शुक्रवार को महालक्ष्मी के मंदिर में गुलाब के 5 फूल अर्पित करें। इससे लक्ष्मी पस्र न्न रहती हं।ै शनिवार या चतुर्दशी को एक नारियल पर सिंदूर चढ़ाएं और कलावे से उसे लपेट कर हनुमानजी के मंदिर में चढ़ाएं। यह उपाय भी अत्यंत धनदायक है। पुष्य नक्षत्र युक्त रविवार को बहेड़े की जड़ और पŸो लाकर उनका पूजन करें। पूजन के पश्चात् उन्हें लाल कपड़े में बांधकर गल्ले (तिजोरी) में रखें। आय में वृद्धि होगी। दीपावली के दिन काली हल्दी पर सिंदूर लगाकर उस गुग्गुल की धूप दें। चांदी एक का सिक्का लाल वस्त्र में लपेटकर तिजोरी में रखें अथवा घर के द्वार पर टांग दें। यह टोटका धन वृद्धि में सहायक होता है। श्री महालक्ष्मी की कृपा और प्रसन्न्ाता के लिए दीपावली का व्रत करें। नमक न खाएं। ‘श्रीं ह्रीं ¬ महालक्ष्म्यै नमः मंत्र’ का 108 माला जप करें। रात भर अखंड दीपक जलाएं और सुबह व्रत खोलें। शाम को सूर्यास्त के पश्चात् घी में झाडू न लगाएं। रात में खाना खाने के बाद बर्तन जठू े न छोडं़े, उन्हें उसी समय साफ करके रखें। ऐसा करने से लक्ष्मी घर में निवास करती हैं और दरिद्रता दूर होती है। जरूरतमंदों, गरीबों, ब्राह्मणों या संन्यासियों को भोजन, वस्त्र और रुपये दान करें। अहंकार का त्याग करें। दान से धन की वृद्धि और शुद्धि होती है। ‘¬ घृणिः सूर्याय नमः श्री सूर्य नारायणाय इति अघ्र्यं समर्पयामि। दतन्नमम्।’ मंत्र से सूर्य को नित्य अघ्र्य दें। इसस े सभी दाष्े ा दरू हांगे े और धन-धान्य की प्राप्ति होगी। सात रŸाी का माणिक्य रत्न सूर्य यंत्र में जड़वाकर सूर्य के सम्मुख रखें और ‘आदित्य हृदय स्तोत्र’ का नियमित रूप से पाठ करें। इससे अतुलित धन की प्राप्ति होती है, रोग और शत्रुओं का शमन होता है तथा जीवन के हर क्षेत्र में विजय प्राप्त होती है। जो व्यक्ति सूर्योदय से पूर्व (ब्रह्म मुहूर्त) में उठकर, स्नान करके भगवान की पूजा करता है, लक्ष्मी उस पर प्रसन्न रहती हैं। जो व्यक्ति दिन में उŸार और रात्रि में दक्षिण की ओर मुंह करके मल-मूत्र का त्याग करता है, लक्ष्मी उस पर प्रसन्न रहती हंै। जिस परिवार में पति-पत्नी में एक-दूसरे के प्रति प्रेम और सम्मान बना रहता है, जिस घर में कलह नहीं होता, उसमें लक्ष्मी का वास होता है। जो घर स्वच्छ और वास्तुदोष रहित होता है, वहां लक्ष्मी स्थिर रहती हैं। जो लोग मेहनती, बुद्धिमान और साहसी (उद्यमी) होते हैं, लक्ष्मी उन पर सदैव प्रसन्न रहती हंै। जो गृहिणी बार-बार भोजन करने वाली, भोजन पकाते समय ही खाने वाली तथा अशुद्ध परोसने वाली होती है, लक्ष्मी उससे दूर चली जाती हैं। आलसी, दिन में सोने वाले, प्रातः या संध्या काल में संभोग करने वाले लोगों से लक्ष्मी रूठ जाती हैं। जो व्यक्ति माता-पिता और गुरु का अनादर करता है, उनकी सेवा-सुश्रूषा नहीं करता - उससे भी लक्ष्मी अप्रसन्न रहती हंै। जो व्यक्ति मूर्ख, अनपढ़ व अकर्मण्य होकर अर्थ प्राप्ति के लिए पुरुषार्थ (प्रयत्न) नहीं करता, लक्ष्मी उससे नाराज रहती हैं। जो व्यक्ति दूसरे की स्त्री और धन को हड़प लेता है, चोरी अथवा घूसखोरी करता है, उसे लक्ष्मी दोष लग जाता है। इस दोष के कारण कुछ काल बाद या अगले जन्म में व्यक्ति दरिद्र हो जाता है।