दीपावली में बनाएं महालक्ष्मी यंत्र गोपाल राजू वी माहात्म्य’, ‘लक्ष्मी सहस्र’, ‘लक्ष्मी तंत्रादि’ में महालक्ष्मी शक्ति स्वरूपा लक्ष्मी जी को देवी-देवताओं में सर्वश्रेष्ठ बताया गया है। परब्रह्म अवतरित लीलाओं में उनकी उत्पŸिा का मूल महालक्ष्मी को ही माना गया है। नारायण का अस्तित्व भी लक्ष्मी सहित नारायण अर्थात् लक्ष्मी-नारायण युगल में ही समाहित है। ‘मार्कण्डेय पुराण’, ‘देवी भागवत’, ‘श्रीमद् भागवत’ तथा ‘ब्रह्म वैवर्त पुराण’ आदि में अनेक प्रसंगों में महालक्ष्मी जी अवतरित होने और उनके विभिन्न लीला चरित्र प्रत्यक्ष दिखाने का उल्लेख है। चमत्कारी महालक्ष्मी यंत्र लक्ष्मी जी की कृपा पाने के लिए आप भी निम्न प्रयोग करके देखें। दीपावली की महानिशा में अथवा रोहिणी नक्षत्र में चंद्र की होरा में निम्न यंत्र शुद्ध चांदी पर उभरे हुए अक्षरों में सुंदरता से बनवा लें। फिर लक्ष्मी जी के बीज मंत्र से विनियोग, न्यास, ध्यान आदि स्वयं कर लें अथवा किसी योग्य पंडित से करवा लें। यंत्र को पूजा स्थल पर स्थापित करके नित्य लक्ष्मी मंत्र का जप करें। यदि न्यास, ध्यान आदि संभव न हो तो यंत्र को प्राण-प्रतिष्ठा के बाद पूजा स्थल पर ऐसे स्थापित कर लें कि उसका शीर्ष भाग उŸार दिशा में रहे ताकि जब आप यंत्र के सम्मुख बैठें तो आपका मुंह उŸार दिशा में हो। मंत्र को सिद्ध करने के लिए अपने दाएं हाथ की तरफ जल से भरा पात्र रख लें। उसके ठीक नीचे चावल के आसन पर एक दीपक चैतन्य करके रख लें। बीज मंत्र का यथासमय जप करें। कुछ समय तक नित्य एक समय एक स्थानादि का व्रत लेकर महालक्ष्मी यंत्र के सामने इसी प्रकार दीप तथा जल रखकर जप करते रहें। जब जप के प्रभाव से आपका अंतर प्रतिध्वनित होने लगे तब दीप-जल का त्याग कर यंत्र के सामने बस मंत्र का जप किया करें। यंत्र को स्थायी रूप से अपने अथवा कार्य अथवा पूजा स्थल में स्थापित कर दें। यंत्र का शीर्ष भाग उŸार दिशा में ही रखना है, यह ध्यान रखें। तदनंतर वर्ष में दो बार होली तथा दीपावली के अवसर पर यंत्र की पूर्व की भांति विनियोग, न्यास, ध्यान आदि से पूजा अवश्य करें। इस प्रकार, इस सिद्ध मंत्र के प्रभाव में आपका वर्ष आनंद से बीतेगा और मां लक्ष्मी की कृपा मिलेगी। यदि यह यंत्र ऐसे ही बना कर अपने भवन की उŸार दिशा वाली किसी भी दीवार पर टांग दें तो भी अल्प समय में ही इसका शुभ फल प्राप्त होगा।