दीपावली पर तंत्र एवं तांत्रिक वस्तुओं का महत्व पं. विजय कुमार शर्मा दीपावली की विशेष रात्रि को तांत्रिक विधि द्वारा सिद्धि प्राप्त करने की विशेष परंपरा रही है। यदि दीपावली पर आप भी कोई तांत्रिक अनुष्ठान करना चाहते हैं तो इस आलेख में दी गई जानकारियां आपके लिए बहुमूल्य हैं। दीपावली का पर्व विशेष रूप से शाक्तों का पर्व है। शाक्त अथवा तंात्रिक वे होते हैं जो विभिन्न दस महाविद्याओं या महाशक्तियों में से किसी एक की उपासना करते हैं। दीपावली की रात को शाक्त शक्ति का विशेष रूप से आवाहन करते हैं ताकि पूजा करके अपनी शक्तियों को बढ़ा सकंे। दस महाविद्याएं अथवा महाशक्तियां निम्नलिखित हैं- त्र महाकाली त्र मां तारा त्र मां षोडशी त्र मां भुवनेश्वरी त्र मां छिन्नमस्तिका त्र मां त्रिपुर भैरवी त्र मां धूमावती त्र माता श्री बगलामुखी त्र मां मातंगी त्र मां कमला महाविद्याओं की नियमानुसार साधना करने से सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती हैं। आत्म-ज्ञान बढ़ता है, अलौकिकता आती है। तंत्र वास्तव में एक शुद्ध विज्ञान है। सच्चाई तो यह है कि यह कोई ईश्वरीय वरदान, अलौकिक शक्ति या रहस्मयी विद्या नहीं है, वरन् सिद्धांतों, नियमों तथा साधना पर आधारित एक विशिष्ट क्रियाविधि है। तंत्र साधना एक वैज्ञानिक साधना है। यह बात चैंका देने वाली हो सकती है, पर वास्तविकता यही है। जिस प्रकार किसी आविष्कार के लिए नाना प्रकार के उपकरणों की आवश्यकता पड़ती है, ठीक उसी प्रकार तंत्र साधना में भी कुछ उपकरण आवश्यक होते हैं। तंत्र-साधना की क्रियाएं और उसमें प्रयोग की जाने वाली वस्तुओं को सदा गुप्त रखने की परंपरा रही है। तंत्र साधना में प्रयोग में आने वाली विभिन्न वस्तुओं का विवरण यहां प्रस्तुत है। आसनः तांत्रिक क्रियाओं में चर्म-आसन का विधान है। सात्विक तंत्र साधना के लिए मृगचर्म और अघोर-साधना के लिए सिंह चर्म के आसन की आवश्यकता पड़ती है। सिंह चर्म से तेजस्विता और मृगचर्म से सौम्यता आती है। इसी कारण तंत्र साधना में आसन के रूप में चर्म का प्रयोग अनिवार्य माना गया है। Û खप्परः प्रायः साधुओं के हाथ में मटमैले या काले रंग का खप्पर होता है। साधु इसी में दान लेते हंै, खाना खाते हंै, जल पीते हंै। आम साधुओं के लिए ये खप्पर सूखे कद्दू या लौकी का बना होता है। लेकिन तांत्रिक इसके लिए मानव खोपड़ी का प्रयोग करते हैं। खोपड़ी के खप्पर में ही वे पानी पीते हंै, भोजन करते हंै और उसी में तंत्र साधना के क्रम में श्मशान की चिता में चावल बनाकर खाते हैं। यह मानव खोपड़ी वाला खप्पर तांत्रिक के अदृश्य शक्तियों से संपर्क करने में एक प्रकार से एंटीना का काम करता है। तंत्र में भिन्न-भिन्न खोपड़ियों का महत्व अलग-अलग है, पर उद्देश्य एक ही होता है- सिद्धि प्राप्त करना। हड्डियांः तांत्रिक कुछ हड्डियां भी रखते हैं। ये हड्डियां उनकी रक्षा करती हैं। पारद शिवलिंगः पारा पृथ्वी के गर्भ से वैसे ही प्राप्त होता है, जिस प्रकार पेट्रोल। यह पकड़ में न आने वाला, किसी से मेल न खाने वाला, कहीं न चिपकने या न रुकने वाला तत्व है। इसे जमाने, रोकने या चिपकाने के उपाय आज तक विज्ञान नहीं खोज पाया है, लेकिन तंत्र द्वारा यह जमा दिया जाता है अर्थात् इसको पिंडाकार बना दिया जाता है। यही पिंडाकार पारद शिवलिंग कहलाता है। रुद्राक्षः रुद्राक्ष मुख्यतः दो रूपों में मिलते हैं- मटर और बेर के आकार के। मकर के आकार वाले रुद्राक्ष इंडोनेशिया तथा मलेशिया के जंगलों में और बेर के आकार वाले हिमालय की तराई में, विशेष रूप से नेपाल में प्राप्त होते हैं। रुद्राक्ष की उत्पŸिा शिव के आसुओं से मानी गई है। इसमें धारियां होती हैं, जिन्हें मुख कहा जाता है। एक से चैदह मुख तक के होते हैं। एक मुखी अत्यंत दुर्लभ है। जिसके पास यह होता है, उसके पास सब कुछ होता है। इस रुद्राक्ष से अनेक मंत्र स्वतः ही सिद्ध हो जाते हैं। एक मुखी रुद्राक्ष खरीदन में सावधानी बरतनी चाहिए। पांच मुखी रुद्राक्ष सर्व सुलभ है। तंत्र-मंत्र साधना में पांच मुखी रुद्राक्ष माला का प्रयोग होता है। तंत्र मंे रुद्राक्ष की माला से मंत्र साधनाएं की जाती हैं। जहां एक ओर उच्च रक्तचाप, उदर विकार आदि रोगों का निदान रुद्राक्ष से होता है, वहीं दूसरी ओर यह भूत-प्रेत बाधा के निवारण में भी काम आता है। हत्थाजोड़ीः तंत्र में हत्था जोड़ी का प्रयोग करने से लक्ष्य की प्राप्ति शीघ्र होती है। यह अति दुर्लभ है। यह संकटों, बाधाओं आदि से साधक की रक्षा करती है। रामनामी केले का पŸााः केले और केले के पत्ते का पूजन में अपना एक विशिष्ट स्थान है। केले का थम भी पूजा में प्रयुक्त होता है। केले के सूखे पŸो को ध्यान से देखने पर उस पर यदा-कदा ‘रामनाम’ लिखा सा देखा जा सकता है। तंत्र-मंत्र साधना में तो इसका प्रयोग होता ही है, अगर इसे राम मंदिर में चढ़ा दिया जाए तो मनवांछित फल की प्राप्ति भी होती है। चितावर की लकड़ीः चितावर की लकड़ी पानी में पहुत तेज गति से लहराती है। तंत्र में इस लकड़ी के माध्यम से भूत-प्रेतों, मृतात्माओं से संपर्क किया जाता है। चितावर की लकड़ी पास रखने वाले व्यक्ति को सांप, बिच्छू व अन्य जानवर परेशान नहीं करते। तैरते पत्थरः रामकथा का यह प्रसंग सर्वत्र विदित है कि लंका तक जाने का पुल नल-नील बंदरों ने बनाया था। नल-नील इस प्रकार के पत्थर लाए जो पानी में तैरते थे, डूबते नहीं थे। यह सब उनकी यांत्रिकी का ही प्रभाव था। यांत्रिकी दो प्रकार की होती है- दृश्य और अदृश्य। दोनों ही यांत्रिकी का अपना-अपना अलग-अलग महत्व है। तंत्र विद्या इसी प्रकार की अदृश्य यांत्रिकी है। तैरने वाले पत्थरों पर इष्ट देवता को स्थापित कर तंत्र साधना करने पर लक्ष्मी की प्राप्ति शीघ्र होती है। कि सियार को कोई सींग नहीं होता है। सियार (गीदड़) रात के समय जब जोर-जोर से ‘हुंआ-हुंआ’ करते हुए अपनी गर्दन आगे बढ़ाकर जमीन की ओर झुकता है तो उसकी गर्दन की एक विशेष हड्डी उभर आती है। इसी समय शिकारी उसके शोर करने पर उसे मार देता है तथा तत्काल इस हड्डी विशेष को काट लेता है। इसे ही सियार सींगी कहा जाता है। इस हड्डी में सदैव जान बनी रहती है। यह जिसके पास रहती है उसे चालाक बनाती है। लेकिन, यह केवल सिंदूर में ही जीवित रहती है। उल्लूः तंत्र शास्त्र में उल्लू का बड़ा महत्व है। उल्लू का संपूर्ण शरीर तंत्र में काम आता है। उल्लू को लक्ष्मी का वाहन और तंत्र में वशीकरण का प्रतीक माना गया है। उल्लू को मारकर गांव या शहर के बाहर किसी ऊंचे पेड़ पर लटका दिया जाता है। जब यह पूर्णतः सूख जाता है तो उसका हर अंग निकाल लिया जाता है। फिर इन अंगों को तंत्र-मंत्र द्वारा अभिमंत्रित करके इनसे नाना प्रकार के काम लिये जाते हैं। तांत्रिक उल्लू को वरदान मानते हैं और उसे सिद्ध करते हैं। काली हल्दीः हल्दी आलू की तरह जमीन के अंदर पैदा की जाती है। फिर इसे खोदकर निकाल कर धूप में सुखाया जाता है। सूखने के पश्चात् इसका रंग पीला पड़ जाता है। हल्दी हमारे भोजन में उपयोग में लाई जाती है। इसका रंग आम तौर पर पीला रहता है पर कभी-कभी यह काले रंग की भी पाई जाती है। ऐसी हल्दी प्रायः अमर कंटक (मंडला, मध्य प्रदेश) में मिलती है। काली हल्दी का प्रयोग तंत्र साधना में किया जाता है। यह अर्पण के काम आती है। इसका प्रयोग ज्यादातर मशानिक क्रियाओं में होता है। उक्त वस्तुओं के अलावा कई अन्य प्रकार की वस्तुएं भी तंत्र में प्रयोग में लाई जाती हैं, जैसे नरमुंड, दक्षिणावर्ती शंख, श्वेतार्क गणेश, उपासनी के चावल, मीन, मुक्ता गुज्जाकल्प, वैदूर्यमणि, नागराज आदि।