ज्योतिष की दृष्टि में दीपावली का महत्व प्रेमशंकर शर्मा भगवान धन्वंतरि एवं श्री लक्ष्मी जी भी समुद्र मंथन के दौरान निकले चैदह रत्नों में दो रत्न थे। पौराणिक कथा का और ज्योतिषीय ग्रह-गति का अलग-अलग महत्व है। ज्योतिष में सूर्य सभी ग्रहों का राजा है। सूर्य से बारह संक्रांतियां होती हैं। इसके बीच में नाड़ीवृत्त तथा उŸार और दक्षिण की ओर क्रमशः तीन-तीन क्रांतिवृत्त होते हैं। सूर्य 6 माह उŸारी गोलार्द्ध (देवलोक) में तथा 6 माह दक्षिणी गोलार्द्ध (यम या राक्षस लोक) में रहता है। मेष तथा तुला संक्रांतियों पर सूर्य नाड़ी वृत्त पर रहता है। मंदराचल पर्वत नाड़ी वृत्त और वासुकि नाग क्रांतिवृत्त हैं जिनके उत्तरी भाग में मेष से कन्या तक तथा दक्षिणी भाग में तुला से मीन तक राशियां हैं। ज्योतिष में सूर्य को भगवान विष्णु भी कहा गया है जिनकी समुद्र मंथन में भूमिका अहम रही थी। ब्रह्मा एवं शिव ने अपने हाथों से विष्णु महिमा को बनाए रखने हेतु नाड़ी वृत्त की सीमा बनाए रखी थी और उसी से चैदह रत्न निकले थे। शिव कल्याण के तथा ब्रह्मा अलौकिक शक्तियों के प्रतीक के रूप में जाने जाते हैं। चंद्र ही शिव है। आज भी सूर्य और चंद्र पूर्णिमा एवं अमावस्या को समुद्र मंथन करते रहते हैं जिसके कारण बादल बनते हैं, ऋतुएं आती-जाती हैं। जिनसे औषधियां, धन्य-धान्य व समृद्धि प्राप्त होती है। पुराणों के अनुसार धन-तेरस के दिन भगवान धन्वंतरि अमृत कलश के साथ समुद्र से निकले थे। उनके दो दिन बाद समुद्र से लक्ष्मी जी का प्रादुर्भाव हुआ। भगवान धन्वंतरि ने अमृत कलश से पृथ्वी पर छींटे किए जिससे औषधियांे की उत्पŸिा हुई। इन औषधियों की रक्षा बुध एवं शुभ ग्रह ने की। बुध देवता का तथा शुक्र राक्षसों का प्रतिनिधित्व करता है। कहा जाता है- ‘‘यस्य देशस्य वो जंतुस्तज्जं तस्योषधं हितम्।’’ अर्थात् जो व्यक्ति जिस देश मंे उत्पन्न होता है, उस देश में उत्पन्न जड़ी बूटियां, औषधियां आदि उसके लिए लाभकारी होती हैं। इस तरह ये ग्रह सूर्य, चंद्र, बुध और शुक्र आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि सदृश ही हैं। यही कारण है कि औषधियों का रोपण, निर्माण आदि ग्रहांे नक्षत्रों के अनुसार किया जाता है। कोई राष्ट्र तभी समृद्ध व उन्नतिशील हो सकता है जब उसके लोग व समाज स्वस्थ हों। यही कारण है कि पहले भगवान धन्वंतरि के प्रकट होने के बाद कार्तिक बदी अमावस्या को लक्ष्मी जी प्रकट हुईं जिनका भगवान विष्णु से विवाह हुआ। लक्ष्मी एवं विष्णु वास्तव में चंद्र एवं सूर्य हैं। इन दोनों से ही शक्ति प्राप्त कर ग्रह व नक्षत्र अपनी-अपनी शक्ति के अनुसार प्राणियों का पालन करते हैं, उन्हें संपन्नता देते हैं। सूर्य, चंद्र एवं अग्नि ईश्वर प्रदŸा तीन प्रकार के तेज हैं जो अपनी-अपनी स्थिति के अनुसार सभी प्राणियों का कल्याण करते हैं। सूर्य इनमें मुख्य हैं। ज्योतिषशास्त्रानुसार मेष राशि का सूर्य उच्च का एवं तुला राशि का नीच का होता है। नीच का होने के कारण तुला राशि का सूर्य विकृत रूप का होता है। अमावस्या के दिन सूर्य एवं चंद्र एक साथ होते हैं जिससे चंद्र तेजहीन हो जाता है। अतः ऐसी स्थिति में तीसरा तेज अर्थात् अग्नि ही प्रकाश का आधार रह जाता है। इसी महŸाा के कारण दीपावली के दिन महालक्ष्मी देवी की प्रसन्नता के लिए उनकी उपासना में अग्नि की प्रमुखता रखी गई है। अतः दीपावली के दिन पंक्तियों में अनेक दीपों को प्रज्वलित कर पूजा करने की परंपरा है। समुद्र मंथन में मात्र चैदह रत्न निकले थे, परंतु नवग्रहों द्वारा तो असंख्य रत्न-उपरत्न प्रदान किए जा रहे हैं। अतः सूर्य, चंद्र एवं अन्य ग्रहों और ज्योतिष शास्त्र को तो सर्वाधिक सम्मान मिलना ही चाहिए।