महात्मा गांधी : सत्य और अहिंसा के पुजारी
महात्मा गांधी : सत्य और अहिंसा के पुजारी

महात्मा गांधी : सत्य और अहिंसा के पुजारी  

व्यूस : 26271 | अकतूबर 2008
महात्मा गांधी सत्य और अहिंसा के पुजारी पं. शरद त्रिपाठी ‘जीवन की कहानी ग्रहों की जुबानी’ शीर्षक के अंतर्गत हम भारत वर्ष के विभिन्न ख्यातनाम व्यक्तियों के अतिरिक्त अन्य देशों के विभिन्न व्यक्तियों के बारे में ज्योतिषीय विश्लेषण प्रस्तुत कर चुके हैं। इस अक्तूबर अंक में देश के महान सपूत अहिंसा के पुजारी मोहनदास करमचंद गांधी (बापू) की जयंती पर उनके जीवन का ज्योतिषीय विश्लेषण प्रस्तुत है। प्रस्तुत जन्मांग राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का है। देश-विदेश के अनेक विद्वान ज्योतिषियों ने ज्योतिष के नियमों का तर्क देते हुए इस जन्मांग का विश्लेषण कई प्रकार से किया और अपने ज्ञान का परिचय देते हुए बापू के बारे में कई अच्छी-बुरी बातें बता चुके हैं। अहिंसा के पुजारी बापू को संपूर्ण विश्व में कई ऐसे गौरव प्राप्त हैं जो आज तक विश्व का कोई अन्य नेता नहीं प्राप्त कर सका है, जैसे विश्व के कई देशों में बापू के नाम से कोई न कोई मार्ग है। बापू की कई देशों में मूर्ति लगी है। कई देशों की संसद या सदन में बापू की फोटो लगी है। यह एक ऐसी उपलब्धि है जो अन्य किसी नेता को न तो आज तक मिली है, न ही आगे मिलने मिलने वाली है। हमारे देश में बापू का विशेष महत्व है, क्योंकि अपना सर्वस्व न्योछावर कर उन्होंने सैकड़ों वर्षों से गुलामी की जंजीर में जकड़े देश को अहिंसा के बल पर अंग्रेजों से आजाद कराया। महात्मा गांधी जी का जन्मांग तुला लग्न का है जिसमें लग्नेश शुक्र लग्न में ही नवमेश व व्ययेश बुध और सप्तमेश तथा धनेश मंगल के साथ स्थित है। लग्नेश का लग्न में पूर्ण बली होना तथा साथ में द्वादशेश बुध का होना और द्वादश भाव में लाभेश सूर्य का स्थित होना एक ऐसा योग है जो जातक को अति ज्ञानवान, बुद्धिमान व विवेकी बनाता है। व्ययेश का संबंध लग्नेश से होने और द्वादश भाव में बैठे सूर्य के कारण बापू ने विदेशों में ख्याति व नाम अर्जित किया। इसी ज्योतिषीय योग के कारण राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी को हमारे देशवासी प्यार से ‘बापू’ नाम से भी पुकारते हैं। गांधी जी ने अपने देश के साथ ही विदेशों में भी अहिंसा को प्रतिष्ठित किया। रंगभेदी नीति के खिलाफ आंदोलनों मंे दक्षिण अफ्रीका में भी सक्रिय रहे और नस्लवाद व रंगभेद के खिलाफ जमकर संघर्ष किया। बापू ने दक्षिण अफ्रीकी समुदाय के साथ-साथ अन्य काले लोगों की भी इस भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाने में मदद की अर्थात् उनकी प्रारंभिक ख्याति विदेशों में हुई और ऐसा लग्न में बैठे व्ययेश बुध के कारण हुआ। आज भी बापू को पूरी दुनिया में विशेष सम्मान के साथ याद किया जाता है। बापू ने अपने सत्य व अहिंसा के हथियार को सबसे पहले दक्षिण अफ्रीका में ही आजमाया। 20 वीं सदी की शुरूआत में नस्लीय भेदभाव के खिलाफ गांधी जी के संघर्ष की स्मृति में क्वाजुलू नटाल के वित्तमंत्री और अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस के नेता डाॅज्वेली मखाइज ने पिछले दिनों ‘इंडियन एक्सपीरियंस फेस्टिवल’ में एक सिक्का जारी किया। याद रहे कि 1908 में जोहान्सबर्ग में गांधी जी के नेतृत्व में दक्षिण अफ्रीका में रहने वाले दो हजार भारतीयों ने तत्कालीन सरकार द्वारा उन्हें जारी पंजीकरण प्रमाण पत्रों को जलाया था। आइए, बापू की कुंडली में स्थित एक अन्य योग पर दृष्टिपात करें। कुछ ज्योतिषीगण बापू की जन्मकुंडली में लग्न में बैठे मंगल व शुक्र की युति के कारण उनकी महिलाओं में विशेष रुचि का उल्लेख करते हैं जो कि सर्वथा असत्य है- ‘गुरौकलत्रैस्वदारसक्तः’। सर्वार्थ चिंतामणि, अ-6, श्लोक- 2 इस श्लोक का अर्थ यह है कि यदि जन्म कुंडली के सप्तम भाव में गुरु स्थित हो तो जातक अपनी ही पत्नी में आसक्ति रखता है। सप्तम भाव मित्रों को भी इंगित करता है। बापू की कुंडली में सप्तम भाव में स्थित बृहस्पति पूर्ण रूप से लग्न व लग्नेश शुक्र को देख रहा है। सप्तमेश मंगल की युति भी लग्नेश के साथ ही है। इसी कारण पत्नी कस्तूरबा हमेशा उनके साथ रहीं। गांधी जी के सभी कार्यों के साथ-साथ आश्रम में क्या होना है, कहां क्या पत्र व्यवहार करना है आदि वही देखती थीं। इन सब कार्यों के अतिरिक्त वह अंग्रेजांे के विरुद्ध चल रहे स्वतंत्रता आंदोलनों में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया करती थीं। वह एक धर्मपरायण महिला थीं। वह प्रतिदिन संध्या के समय होने वाले भजन में पूरे मनोयोग से भाग लेती थीं। दोनों का वैवाहिक जीवन हमारे लिए प्रेरणाप्रद है। सप्तम भाव मित्रों का भी है, इसलिए बापू के एक-दो नहीं, हजारों मित्र थे, जो उनके एक इशारे पर अपने जान-माल की चिंता किए बगैर बड़े-बड़े आंदोलनों में सम्मिलित हो जाते थे। आइए, उनके जीवन के एक और पक्ष को ज्योतिषीय दृष्टि से देखते हैं। जहां किसी व्यक्ति के अनेक चाहने वाले होते हैं, वहीं कुछ विरोधी भी होते हैं। ऐसा ही एक व्यक्ति था नाथूराम गोडसे जिसने प्रार्थना सभा में जाते समय 30 जनवरी 1948 को बापू की गोली मार कर हत्या कर दी। तुला लग्न की कुंडली में मंगल प्रबल मारक होता है। इस कुंडली में लग्नेश व मारकेश का युत होना बताता है कि इनकी मृत्यु क्रूरता से होगी। सप्तम अर्थात मारक भाव में गुरु का स्थित होना यह भी दर्शाता है कि हत्यारा हत्या करने के समय अपने पूर्ण ज्ञान व विवेक में था अर्थात् सोच-विचार कर ही उसने हत्या को अंजाम दिया। गांधी जी की मृत्यु 30 जनवरी 1948 को हुई। अगर हम उस समय का गोचर देखें तो पाएंगे कि बापू की कुंडली के अनुसार गुरु की महादशा में केतु का अंतर चल रहा था। गुरु, जो मारक भाव सप्तम में स्थित है, गोचर में उस समय दूसरे मारक भाव अर्थात द्वितीय भाव (वृश्चिक राशि) में गोचर कर रहा था। गुरु के इसी गोचर भ्रमण के कारण यह घटना घटी। अंत में बापू की कुंडली से इस बात को जानने का प्रयास करें कि ज्योतिषीय दृष्टि से ऐसा कौन सा कारण है कि बापू का चित्र भारतीय मुद्रा पर अंकित किया गया। बापू की प्रसिद्धि का सबसे प्रमुख कारण रहा कि उनकी कुंडली में लग्नेश का पूर्ण बली होकर लग्न में स्थित होना। जब लग्नेश लग्न से ऐसा संबंध बनाता है तो जातक की ख्याति मृत्यु के बाद भी दूर-दूर तक फैलती है। बापू की मृत्यु के समय गुरु की महादशा चल रही थी। यदि इस महादशा से विंशोत्तरी दशा क्रम को पुनः जोड़ें तो महादशाएं इस प्रकार आएंगी। 9-6-1940 से 9-6-56 तक गुरु की महादशा 9 -6-1956 से 9-6-1975 तक शनि की महादशा 9 -6- 1975 से 9-6-1992 तक बुध की महादशा 10-6-1992 से 10-6-1999 तक केतु की महादशा 10-6-1999 से 10-6-2019 तक शुक्र की महादशा यदि आज बापू जीवित होते तो (ऊपर वर्णित दशाओं के आलोक में) वर्तमान में उन पर शुक्र की महादशा चल रही होती। अष्टम भाव आयु का भाव है। बापू की कुंडली में अष्टमेश भी शुक्र है। अगर व्यक्ति के जन्म का आकलन लग्न से करते हैं तो द्वितीय जन्म हेतु अष्टमेश की स्थिति पर विचार करना होगा। इस दृष्टि से जब अष्टमेश शुक्र की वर्तमान दशा प्रारंभ हुई तब से बापू का एक प्रकार से पुनर्जन्म हुआ। व्यक्ति चाहे अमीर हो या गरीब, छोटा हो या बड़ा सब के ही पास भारतीय मुद्रा में अंकित बापू का चित्र जेब में होता है। दिन में कई-कई बार उस चित्र को हम देखते व हाथों से स्पर्श करते हैं। यह पुनर्जन्म मुद्रा के माध्यम से क्यों हुआ। धन का सबसे बड़ा कारक ग्रह बृहस्पति है। बापू की कुंडली में सप्तम भाव में स्थित गुरु पूर्ण रूप से लग्न, लग्नेश व अष्टमेश को देख रहा है तथा लग्नेश और अष्टमेश शुक्र तुला राशि में 240-23’ का है अर्थात् गुरु के नक्षत्र में है, इसीलिए मुद्रा पर अंकित चित्र के रूप में बापू का पुनर्जन्म हुआ। पिछले कुछ समय से भारतीय बाजार में भारत के 500 तथा 1000 रुपयों के जाली नोट भारी संख्या में पाए गए हैं। इसे हम ज्योतिषीय दृष्टि से देखते हुए उपर्युक्त दशा क्रम पर नजर डालें तो इसका कारण स्पष्ट हो जाएगा। अगर 10 जून 1999 से शुक्र की महादशा चली तो अंतर्दशा क्रम निम्नवत होगा। 10-6-1999 से 9-10-02 तक शुक्र/शुक्र 9-10-02 से 9-10-03 तक शुक्र/सूर्य 9-10-03 से 9-6-05 तक शुक्र/चंद्र 9-6-05 से 9-8-06 तक शुक्र/ मंगल 9-8-06 से 9-8-09 तक शुक्र/राहु अर्थात् वर्तमान समय में शुक्र में राहु का अंतर चल रहा होता। बापू की कुंडली में राहु और चंद्र दशम भाव में कर्क राशि में स्थित हैं। दशमेश चंद्र का राहु के साथ होने से ग्रहण योग बनता है- राहु ज्योतिष में आपराधिक गतिविधियों का द्योतक है। चंद्र नोट (मुद्रा) का कारक है, अतः इस काल खंड में जाली भारतीय मुद्रा भारी संख्या में बाजार आई है। जाली नोटों का यह कारोबार अगस्त 2009 तक यों ही फलता-फूलता रहेगा, किंतु जैसे ही शुक्र में गुरु का अंतर आएगा, यह कारोबार प्रशासनिक सख्ती के कारण थम जाएगा। बापू की कुंडली में एक और योग पर विचार करें। चतुष्र्वपिहि केन्द्रेषु क्रूराः सौम्यायदा ग्रहाः। क्रूरैः पृथ्वीपतिं विद्यात्सौम्यैलक्ष्मीपतिर्भवेत्।। मानसागरी, अ-4, श्लोक-1 यदि जन्म कुंडली में सभी पाप या सभी शुभ ग्रह केंद्र स्थान (1, 4, 7, 10) में स्थित हों, तो अमर योग बनता है यदि सभी पाप ग्रह हों, तो व्यक्ति पृथ्वीपति या राजा होता है और यदि सभी शुभ ग्रह केंद्र में हों तो लक्ष्मीपति योग बनता है। बापू के जन्मांग में सभी शुभ ग्रह (चंद्र, बुध, गुरु, शुक्र) केंद्र में स्थित हैं। फलस्वरूप वे अमर हो गए और भारतीय मुद्रा के अभिन्न हिस्सा बन गए।



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