भारतीय ज्योतिष का प्रजापति यूरेनस आचार्य अविनाश सिंह सर्य की परिक्रमा करने वाले ग्रहों में यूरेनस की कक्षा सप्तम है। इस ग्रह की खोज मार्च 1781 ई. में विलियम हर्शल नामक एक जर्मन खगोलशास्त्री ने की, इसीलिए इसे ‘हर्शल’ के नाम से भी जाना जाता है। यूरेनस देखने में हरे-नीले रंग का है। इसके 15 चंद्र हैं जो इसके चारों ओर घूमते रहते हैं। सूर्य से इसकी दूरी 17830 लाख मील है। इसका नक्षत्र परिभ्रमण 84 वर्ष है। यह अपनी कक्षा में 4.2 मील प्रति सेकंड की गति से चलता है। इसका संपातिक काल 84 वर्ष है। इसका संयुति काल पृथ्वी के 369.7 दिन है। यूरेनस अपनी धुरी पर 17 घं. की अवधि में घूमता है। यूरेनस का भूमध्यीय व्यास 32. 190 मील है, कक्षा का क्रांति वृŸा पर 00461 है। इसका द्रव्यमान पृथ्वी के द्रव्यमान से 14.6 है। भूमध्य रेखा की कक्षा पर इसका झुकाव 980 है। इसी कारण इसके दोनों गोलार्द्ध बारी-बारी से 42 वर्ष तक सूर्य के समक्ष रहते हंै अर्थात् इस पर 42 वर्ष की रात और 42 वर्ष का दिन होता है। दूसरे शब्दों में यूरेनस के अपने एक वर्ष में आधा वर्ष रात और आधा वर्ष दिन रहता है। इसका प्रकाश अत्यंत क्षीण है, इसलिए यह दिखाई नहीं देता। इसे देखने के लिए खास किस्म की दूरबीन की आवश्यकता होती है। खगोलशास्त्रियों का मानना है कि सौरमंडल में यूरेनस के साथ कभी किसी विशाल पिंड के टकरा जाने से यह छूट गया और टूटे हुए टुकड़े इसकी परिक्रमा करने लगे। ये टुकड़े इसके चंद्र कहलाए। अभी तक की खोज के अनुसार इसके 15 चंद्र हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं- त्र कोर्ढ़ेलिया त्र ओफेलिया त्र बिनाका त्र क्रेसिडा त्र डेस्डेमोना त्र जुलियट त्र पोरटिया त्र रोसलिंड त्र बेलिंड त्र पुक्क त्र मिरांडा त्र ऐरियल त्र अंबेरियल त्र टाईटानिया त्र ओबेरोन। खगोलशास्त्रियों के अनुसार इसके तीन और चंद्र देखने में आए हैं जिनके नाम अभी नहीं रखे गए हैं। इस प्रकार यूरेनस के 18 चंद्र खगोलशास्त्रियों ने बताए हैं। शनि की भांति यूरेनस के इर्द-गिर्द भी गोलाकार वृŸा (वलय) हैं जिनकी चैड़ाई कम से कम 10 कि. मी. है। ऐसे वलय 11 हैं जिनमें बर्फीले टुकड़े घूमते रहते हैं। ज्योतिषीय दृष्टिकोण: जब से यूरेनस की खोज हुई है तभी से पाश्चात्य एवं भारतीय ज्योतिषीगण इस नवीन ग्रह के मानव पर पड़ने वाले प्रभाव को जानने की कोशिश करते रहे हैं। पाश्चात्य ज्योतिषियों ने इसका नाम यूरेनस तथा भारतीय ज्योतिषियों ने प्रजापति रखा है। जिस तरह गुरु की कक्षा के आगे शनि की कक्षा होने के कारण शनि को गुरु का पिता माना गया है। उसी तरह यूरेनस की कक्षा शनि के ऊपर होने के कारण यूरेनस को शनि का पिता और गुरु का पितामह और सब देवों में वृद्ध माना गया है। जब यूरेनस की खोज हुई तो इसे मिथुन राशि में देखा गया। ज्योतिषियों का मानना है कि मनुष्य की कुंडली में जो असाधारणता देखने को मिलती है वह इसी ग्रह के कारण है। तत्व ज्ञानी लोगों की कुडली देखें तो उसमें इस यूरेनस की प्रबलता अधिक मिलेगी। वर्तमान समय में भी जो अध्यात्म और विज्ञान की प्रगति चल रही है वह इसी ग्रह के कारण है। फलित ज्योतिषशास्त्रियों का मानना है कि यूरेनस कुंभ राशि में स्वगृही और वृश्चिक राशि में उच्च का होता है। यह मिथुन, तुला तथा कुंभ इन वायु राशियों में विशेष बलवान दिखाई देता है। यह कुंडली के भाव 1,3,5,7,9 या 10 में विशेष फलदायी होता है। लग्न की अपेक्षा दशम स्थान में अति अनिष्ट फल उत्पन्न करता है, परंतु इन स्थानों में यदि मिथुन, तुला या कंुभ राशि हो और शुभ दृष्ट हो तो यह अपनी अशुभता खोकर शुभ फल प्रदान करता है। यदि यह अग्निकारक राशि मेष, सिंह या धनु में हो तो जातक को हठी, कुशाग्र बुद्धि, अति महत्वाकांक्षी और हिम्मती बना देता है। ऐसे जातकों को अपघात आदि आकस्मिक संकटों का भय अधिक होता है। यदि यूरेनस शास्त्रीय राशि मिथुन, तुला या कुंभ मे हो तो जातक को अनेक शास्त्रांे के प्रति विशेष प्रीति रखने वाला बना देता है। यदि जल राशि में हो तो जातक कामी, दुराचारी और दुष्ट स्वभाव का होता है। किंतु यदि यह किसी पृथ्वी तत्व राशि में हो तो जातक हंसमुख, हंसी-मजाक करने वाला, दूसरों को प्रसन्न करने वाला, मुंहफट, विभिन्न प्रकार के भोज्य पदार्थों का शौकीन, हठी शीघ्र नाराज होने वाला, चुगली करने वाला और कामी होता है। ऐसा जातक स्त्रियों का प्रिय होता है। यूरेनस के भाव फल राशि फलों की अपेक्षा अधिक होते हैं, क्योंकि यह एक राशि में लगभग 7 वर्ष रहता है। इसलिए कुंडली में राशि की अपेक्षा भाव में इसकी स्थिति अधिक महत्वपूर्ण होती है। 7 वर्ष तक जन्मे सभी जातकों के लिए राशि फल एक सा होगा, इसी लिए भावफल का महत्व अधिक है। वैसे, इस नवीन ग्रह के अन्य प्रभावों का आकलन अभी चल ही रहा है। भविष्य में इस प्रभावों के बारे में और जानकारी मिलने की आशा है।