सौमित्र की क्षमायाचना

सौमित्र की क्षमायाचना  

व्यूस : 7691 | जुलाई 2009
सैमित्र की क्षमायाचना हनुमानजी संजीवनी लेकर जब लंका नहीं पहुंचे, तब श्रीराम बहुत दुःखी और व्याकुल हो गये। उन्होंने अचेत लक्ष्मण का सिर उठाकर अपनी गोद में रख लिया और नाना प्रकार से विलाप करने लगे।1 आश्रुपूर्ण नेत्रों से लक्ष्मण को देखते हुए श्रीराम ने कहा, ‘‘हे भाई! तुमसे मेरा दुख देखा नहीं जाता था। मुझसे पहले तुम दुखी हो जाते थे। मेरे लिए अपने माता-पिता, भाई, पत्नी, परिवार, नगर और राजसुख छोड़कर मेरे साथ इस वन में चले आये। आंधी, वर्षा, सर्दी, गर्मी का कष्ट झेलते हुए तुमने दिन-रात मेरी सेवा की। तुम्हारा वह प्रेम अब कहां चला गया? तुम्हारे बिना मैं कौन-सा मुंह लेकर अयोध्या जाऊंगा। चलते समय मंझली माताजी ने तुम्हें मेरे हाथों में सौंपा था। अब जाकर मैं उन्हें क्या उŸार दूंगा, यह तुम मुझे बताते क्यों नहीं? यदि मैं जानता कि वन जाने से तुम-जैसे भाई का वियोग हो जाएगा तो मैं पिता की आज्ञा नहीं मानता और वन को नहीं आता। इससे मुझे अपयश मिलता। उस अपयश को मैं सहन कर लेता, किंतु तुम्हारा वियोग मैं सहन नहीं कर सकता। लक्ष्मण! तुम मेरे प्राण हो, तुम्हारे बिना मैं कौनसा मुंह लेकर अयोध्या जाऊंगा। चलते समय मंझली माताजी ने तुम्हें मेरे हाथों में सौंपा था। अब जाक मैं उन्हें क्या उŸार दूंगा, यह तुम मुझे बताते क्यों नहीं? यदि मैं जानता कि वन जाने से तुम जैसे भाई का वियोग हो जाएगा तो मैं पिता की आज्ञा नहीं मानता और वन को नहीं आता। इससे मुझे अपयश मिलता। उस अपयश को मैं सहन कर लेता, किंतु तुम्हारा वियोग मैं सहन नहीं कर सकता। लक्ष्मण! तुम मेरे प्राण हो, तुम्हारे बिना मैं जीवित नहीं रह सकता, नहीं रह सकता।’’ श्रीराम का करुण विलाप सुनकर समस्त भालु-वानर भी रुदर करने लगे। तभी जाम्बवान ने देखा कि उŸार दिशा की ओर से हनुमानजी एक विशाल पर्वत खण्ड लिए हुए वेग पूर्वक उडे़ चले आ रहे हैं। संजीवनियों के दिव्य प्रकाश से वह पर्वत-खण्ड दीप्तिमान हो रहा था। अति प्रसन्न होकर जाम्बवान सबको दिखाते हुए बोले, ‘‘अरे देखो-देखो। संजीवनी बूटी लेकर हनुमान जी आ गये।’’ सब ने उधर देखा और सबके उदास मुख खिल उठे। उस समय हनुमानजी का आना ऐसा ही लगा, जैसे किसी काव्य में करुणरस का प्रसंग चल रहा हो अचानक वीररस का प्रसंग आ जाए।1 सबके देखते-देखते हनुमान जी संजीवनी युक्त वह पर्वत-खण्ड धरती पर रख दिया और विनीत भाव से श्रीराम के चरणों के समीप खड़े हो गये। वैद्यराज सुषेण ने एक दृष्टि संजीवनी पर्वत-खण्ड पर डाली, फिर कुछ मुस्कराते हुए हनुमानजी को देखा। उनके देखने का अभिप्राय यह था कि आपको संजीवनी औषधि लाने को मैंने कहा था, किंतु आप तो पूरा पर्वत-खण्ड ही उठा लाए। उनके भाव को समझकर हनुमानजी ने कहा, क्या करता वैद्यजी! आपने पहचान बतायी थी कि संजीवनी दिव्य प्रकाश से प्रदीप्त रहती है, चमचमाती रहती है। किंतु वहां जाकर मैंने देखा कि साधारण घास-पŸाी से लेकर सारी वनस्पतियां चमचमा रही हैं। पहचान-पहचानकर तोड़ने में विलंब हो जाने का भय था। इसलिए यह भार आपके ऊपर डालकर यह पर्वत-खण्ड उठा लाया।’’ सुषेण ने कुछ गंभीर होकर कहा, ‘‘अच्छा, यह बात है! अब सारी स्थिति मेरी समझ में आ गयी। रावण को जब पता चला होगा कि आप संजीवनी लेने जा रहे हैं, तब उसने किसी मायावी राक्षस को भेजकर सारी वनस्पतियों को प्रज्जवलित करवा दिया होगा जिससे आप भ्रम में पड़ जाएं। किंतु वह मूर्ख और माया-ज्ञान का अहंकार रावण यह नहीं जानता कि आप जैसे समर्थ व्यक्ति के सामने उसकी माया का बल रŸाी बराबर भी नहीं है।’’ हनुमान जी ने विनम्र होकर, ‘‘इसमें मेरी कोई विशेषता नहीं है सुषेणजी, सब इन चरणों का प्रताप है।’’ ऐसा कहकर उन्होंने श्रीराम के चरण पकड़ लिए और श्रीराम अत्यंत स्नेह पूर्वक हनुमानजी को देखने लगे। अब सुषेण वैद्य ने अपने कर्तव्य की ओर ध्यान दिया। सर्वप्रथम उन्होंने वैद्यों के अराध्य देवता परमपूज्य, भगवान धन्वतरि को मन ही मन प्रणाम किया। फिर उस पर्वत-खण्ड के सम्मुख हाथ जोड़कर खड़े हुए। सुषेण ने वैदिक मंत्र के द्वारा चार प्रकार की संजीवनियों का आह्वान किया।1 वैद्यराज के आह्वान करते ही ये चारों संजीवनियां अपने आधिदैविक रूप में प्रकट हो गयीं, जिनका साक्षात्कार केवल सुषेण ने अपने मानसिक नेत्रों से किया। अत्यंत हर्षित होकर वैद्यराज ने सात पावन मंत्रों से आद पूर्वक प्रार्थना की, ‘‘हे दिव्य औषधियो! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं, तो कृ पा करके आप मुझे अपनी स्वीकृति प्रदान कीजिए, जिससे लक्ष्मण जी पर मैं आप चारों का प्रयोग कर संकू।’’ चारों संजीवनियों ने सुस्मित मुख से हाथ के संकेत द्वारा स्वीकृति दे दी। संकेत को समझकर सुषेण जी आनंद से भर गये और बोले, ‘‘आपने दयापूर्वक मेरी प्रार्थना स्वीकार कर ली। तो फिर, मेरे द्वारा रखे हुए दन चार पात्रों में आप पधारने की कृ पा करें। यह मेरी दूसरी प्रार्थना है।’’ यह सुनते ही चारों का आधिदैविक रूप लुप्त हो गया। वे अपने आधिभौतिक रूप में आ गयीं और अपनी-अपनी टहनियों से पृथक होकर चार अलग-अलग पात्रों में भर गयीं। तब वैद्यराज ने प्रत्येक संजीवनी की उचित मात्रा लेकर क्रम से उसका प्रयोग किया। प्रथम तीन संजीवनी का पूरा प्रभाव स्पष्ट लक्षित हुआ। मृतसंजीवनी का प्रयोग करते ही लक्ष्मणजी उठ खड़े हो गये और आदेश पूर्वक बोले, ‘‘कहां है मेघनाद? ठहर जा दुष्ट! मैं अभी तेरा वध करता हूं।’’ फिर इधर-उधर देखकर उन्होंने कहा, ‘‘मैं तो रणभूमि में युद्ध कर रहा था, मुझे यहां कौन लाया?’’ लक्ष्मण को सचेत होकर संभाषण करते देखकर श्रीराम के हर्ष की सीमा नहीं थी। उन्होंने एक हाथ से लक्ष्मण को और दूसरे हाथ से हनुमान को समेट कर हृदय से लगा लिया। समस्त भालु-वानर भी हर्षोल्लास में उछलने और किलकारी मारने लगे। उधर जब रावण को लक्ष्मण के जीवित हो जाने का पता चला, तो वह निराश तथा क्रुद्ध होकर हाथ मलने लगा और मेघनाद लज्जित होकर मुंह छुपाने की कोशिश करने लगा। इधर श्रीराम का संकेत पाकर हनुमानजी ने लक्ष्मणजी को सारी परिस्थिति समझा दी। साथ ही संजीवनियों का संदेश भी कह दिया, क्योंकि वे उन्हें वचन दे चुके थे। लक्ष्मणजी को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘वीर शिरोमणि! संजीवनियां आपसे प्रसन्न थीं, क्योंकि आपने शबरी के बेरों को अनादर पूर्वक फेंक दिया था, जब कि उन बेरों को प्रभु श्रीराम ने सराहना करते हुए बड़े प्रेम से खाया था। इसीलिए संजीवनियां आपके उपचार के लिए यहां आना नहीं चाहती थीं। मेरे बहुत अनुनय विनय करने पर आने को तैयार हुई। इनके प्रयोग से ही आपको नवजीवन प्राप्त हुआ है।’’ कुछ स्मरण करके लक्ष्मणजी बोले, ‘‘उस समय के अनुचित व्यवहार का मुझे दुख और पश्चाताप है। अपनी भूल के लिए मैं समस्त वनस्पति-वर्ग से क्षमा मांगता हूं।’’ ऐसा कहकर लक्ष्मणजी उस पर्वत-खण्ड के पास गये और दोनों हाथ जोड़कर उसे प्रणाम किया। लक्ष्मण जी के प्रणाम करते ही पर्वत-खण्ड की सारी वनस्पतियां हर्ष से हरहरा उठीं और उनकी सम्मिलित ध्वनि गूंजी, ‘‘महाशक्तिमान लक्ष्मणजी की जय हो।’’ यह ध्वनि केवल राम-दल में ही नहीं, वरन् समूची लंका नगरी में गुंजायमान हो गयी, जिसे सुनकर समस्त लंकावासी घोर अनिष्ट की आशंका से भयभीत हो गये।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.