कालसर्प योग के प्रकार एवं फल डाॅ. संजय बुद्धिराजा कालसर्प योग एक बहुचर्चित योग है जो सात प्रमुख ग्रहों के राहु और केतु के मध्य एक ओर आ जाने से बनता है। यद्यपि कालसर्प योग को लेकर विद्वज्जन एकमत नहीं हैं, परंतु यह एक निर्विवाद तथ्य है कि यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में राहु व केतु के बीच शेष सात ग्रह आ जाएं तो उसका जीवन सामान्य सा नहीं रहता। इस सिद्धांत का प्रतिपादन विभिन्न कालसर्प योगों वाली कुंडलियों का विश्लेषण करने के बाद ही किया गया है। यह धारणा सर्वथा निर्मूल है कि कालसर्प योग सदा अनिष्टकर ही होता है। ऐसे अनेक उदाहरण हैं जिनमें इस योग से प्रभावित लोगों को सफलता की ऊंचाइयों को छूते देखा गया है। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री स्व. जवाहरलाल नेहरू व पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति स्व. जुल्फिकार अली भुट्टो की कुंडलियों में यह योग विद्यमान था और वे सामान्य इंसान नहीं, विशिष्ट व्यक्तित्व वाले थे। इस लिए कालसर्प योग यदि अशुभ फल देता है तो शुभ फलदायक भी है। कालसर्प योग का पफल: कालसर्प योग का फलकथन राशियों के तत्व के अनुसार भी किया जा सकता है। राहु यदि तत्व में वृद्धि करता है तो केतु घटाता है। ज्योतिष शास्त्रानुसार मेष, सिंह व धनु राशियां अग्नि तत्व राशियां हैं। राहु यदि इन राशियों में हो तो केतु इन राशियों से सप्तम अर्थात् तुला, कुंभ व मिथुन राशियांे में स्थित होगा। अतः कह सकते हैं कि यदि राहु अग्नि तत्व राशियों में हो तो केतु वायु तत्व राशियों में होगा। दोनों ग्रहों की विभिन्न राशियों में स्थिति के फलों का विवरण निम्नांकित सारणी में दिया गया है। राशि स्वभावानुसार: स्वभावानुसार राशियां तीन तरह की होती हैं- चर, स्थिर व द्विस्वभाव। मेष, कर्क, तुला और मकर चर, वृष, सिंह, वृश्चिक और विभिन्न ग्रहों के साथ युति के अनुरूप फल: कालसर्प योग में राहु व केतु की विभिन्न ग्रहों के साथ युति के फल इस प्रकार हैं- क्र.सं. राहु की युति 1. 2. 3. 4. सूर्य के साथ चंद्र के साथ मंगल के साथ बुध के साथ फल नेत्र रोग, अनैतिक संबंध, पिता मृत्यु भय, गैर कानूनी कार्य, वीर्य नाश, दादा की प्रसिद्धि माता को कष्ट, जातक को तनाव, अस्थिर मन उच्च रक्तचाप रोग, खगोल ज्ञान, बिना सोचे समझे काम करना अंतर्जातीय विवाह, वाचालता, व्यवसायी 5. 6. 7. गुरु के साथ शुक्र के साथ शनि के साथ बालारिष्ट रोग, हमेशा प्रवचन देने वाला, यात्रा प्रिय माया प्रेमी, पत्नी से भय, व्यभिचारी नौकर से भय, कर्म हानि, हठ, आक्रामकता केतु की युति फल पिता व पुत्र दोनों धर्मपरायण, पिता के पास अशुभ जमीन, कर्म नाश माता धर्मपरायणा, जातक को स्नायु रोग, संन्यास की तरफ मन निम्न रक्तचाप रोग, बिजली से जुड़े कार्य, स्नायु रोग वाचक, कच्चा घर, विभिन्न भाषाओं का ज्ञान नकारात्मक स्वभाव, मोक्ष, योग, बुद्धिमान नाभि से नीचे का रोग, व्यभिचार, पत्नी रोगी मेहनत का अकस्मात लाभ, मोक्ष, जिद्दी सूर्य के साथ चंद्र के साथ मंगल के साथ बुध के साथ गुरु के साथ शुक्र के साथ शनि के साथ क्र.सं. राहु की स्थिति 1. 2. 3. 4. मेष, सिंह व धनु वृष, कन्या व मकर मिथुन, तुला व मकर कर्क, वृश्चिक व मीन केतु की स्थिति तुला, कुंभ व मिथुन कर्क, वृश्चिक व मीन मेष, सिंह व धनु वृष, कन्या व मकर फल राहु अकस्मात् संकल्पों में, महत्वाकांक्षाओं में, कर्मशीलता में वृद्धि करता है जबकि केतु कमी। राहु मेहनत में, धैर्य में, आत्मसंतुष्टि में, सांसारिक वस्तुओं में, समस्याओं के प्रति उदासीनता में वृद्धि करता है तो केतु कमी। कल्पनाशीलता में, बुद्धिमानी में, अनुशासनप्रियता में राहु वृद्धि और केतु कमी करता है। राहु संदेह में, प्रेम में और वाचालता तथा स्वाभिमानी स्वभाव में वृद्धि और केतु कमी करता है। क्र.सं. राहु की स्थिति 1. 2. 3. मेष, कर्क, तुला, मकर वृष, सिंह, वृश्चिक, कुंभ मिथुन, कन्या, धनु, मीन केतु की स्थिति तुला, मकर, मेष, कर्क वृश्चिक, कुंभ, वृष, सिंह धनु, मीन, मिथुन, कन्या फल कष्ट, परेशानियां फल स्थायी रहता है और उपायादि से भी न्यूनतम लाभ होता है। शुभ कर्म ही लाभ देता है और अशुभ फल आता जाता रहता है। प्रभाव को विभिन्न उपायों को अपनाकर कम किया जा सकता है। दोनों ग्रहों की अलग-अलग स्वभाव की राशियों में स्थिति के फल इस प्रकार होते हैं। इस प्रकार कहा जा सकता है कि कालसर्प योग का प्रभाव जातक के जीवन को अवश्य प्रभावित करता है। इसका फल क्या और कैसा होगा, यह राहु व केतु ग्रहों की स्थिति पर निर्भर करता है जैसा कि ऊपर दिखाया गया है। कालसर्प योग की शांति के लिए किए गए उपाय भी कारगर सिद्ध होंगे या नहीं, यह राहु और केतु अधिष्ठित राशियों के स्वभाव पर निर्भर करता है। वास्तव में दोनों ग्रह हमारे जीवन को साध देते हैं ताकि हमारे अंदर छिपे ज्ञान, बुद्धि, साहस आदि बाहर निकल सकें। क्र.सं. कालसर्प योग राहु की स्थिति केतु की स्थिति पफल प्रभावित क्षेत्रा 1. अनंत प्रथम भावस्थ सप्तम भावस्थ शरीर, वैवाहिक जीवन 2. कुलिक द्वितीय भावस्थ अष्टम भावस्थ कुंटुंब, आयु 3. वासुकि तृतीय भावस्थ नवम् भावस्थ पराक्रम, भाग्य 4. शंखपाल चतुर्थ भावस्थ दशम भावस्थ सुख, कर्म 5. पù पंचम भावस्थ एकादश भावस्थ संतान, आय 6. महापù षष्ठ भावस्थ द्वादश भावस्थ रोग, व्यय 7. तक्षक सप्तम भावस्थ प्रथम भावस्थ विवाह, तन 8. करकट अष्टम भावस्थ द्वितीय भावस्थ आयु, धन 9. शंखचूड़ नवम् भावस्थ तृतीय भावस्थ भाग्य, कष्ट 10. घातक दशम भावस्थ चतुर्थ भावस्थ व्यवसाय, सुख 11. विषधर एकादश भावस्थ पंचम भावस्थ आय, विद्या 12. शेष नाग द्वादश भावस्थ षष्ठ भावस्थ विदेश, शत्र