अनादि काल से ही हिंदू धर्म में अनेक प्रकार की मान्यताओं का समावेश रहा है। विचारों की प्रखरता एवं विद्वानों के निरंतर चिंतन से मान्यताओं व आस्थाओं में भी परिवर्तन हुआ। क्या इन मान्यताओं व आस्थाओं का कुछ वैज्ञानिक आधार भी है? यह प्रश्न बारंबार बुद्धिजीवी पाठकों के मन को कचोटता है। धर्मग्रंथों को उद्धृत करके‘ ‘बाबावाक्य प्रमाणम्’ कहने का युग अब समाप्त हो गया है। धार्मिक मान्यताओं पर सम्यक् चिंतन करना आज के युग की अत्यंत आवश्यक पुकार हो चुकी है। प्रश्न: हिंदू लोग पूजा-पाठ, प्रत्येक शुभ कार्य पूर्वाभिमुख होकर क्यों करते हैं? उत्तर: हिंदू लोग सूर्य को प्रधान देवता के रूप में पूजते हैं। सूर्य पूर्व में उदित होता है। प्रातः संध्या में सूर्य को अघ्र्य दिया जाता है जो कि पूर्वाभिमुख होकर ही दिया जा सकता है। वेदों में भी प्रत्येक कार्य एवं संस्कारों में पूर्वाभिमुख होकर बैठने के आदेश मिलते हैं। प्रसिद्ध लोकोक्ति है कि उदित होते हुये सूर्य को सारी दुनिया नमस्कार करती है क्योंकि उसमें आगे बढ़ने का, उन्नति का, ऊंचा उठने का संदेश छिपा होता है। ब्राह्ममुहूर्त से लेकर मध्याह्न तक सूर्य का आकर्षण सामने रहने से मानवपिंड के ज्ञानतंतु अधिक-से-अधिक स्फूर्ति संपन्न रहेंगे जिससे दैवी गुणों के विकास के कारण हमारे ये धार्मिक अनुष्ठान भी प्रभावशाली सिद्ध होते हैं। प्रश्न: मुस्लिम लोग पश्चिम की ओर मुंह करके नमाज क्यों पढ़ते हैं? उत्तर: काबा पश्चिम दिशा की ओर स्थित है इसलिये मुसलमान काबा की ओर मुंह करके ही अपनी मजहबी रसूमात अदा करना अनिवार्य समझते हैं। उनकी कब्रें और मस्जिदें भी ठीक इसी दिशा में बनाई जाती हैं और कोई वैज्ञानिक कारण नहीं है। प्रश्न: हिंदू लोग पितृ कर्म दक्षिणाभिमुख होकर क्यों करते हैं? उत्तर: वेदादिशास्त्रों में दक्षिण दिशा में चंद्रमा के ऊपर की कक्षा में पितृलोक की स्थिति मानी जाती है। तदनुसार पितृकर्म का अनुष्ठान दक्षिण में मुख करके करना स्वाभाविक है। प्रश्न: श्राद्ध भोजन हेतु दोपहर के बाद का काल क्यों उत्तम माना जाता है? उत्तर: श्राद्ध भोजन हेतु (कुतप काल) अपराह्न काल श्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि उस समय सूर्य रश्मियां अर्वाचीन हो जाती हैं। सूर्य की किरणें निस्तेज होकर पश्चिमाभिमुख हो जाती हैं ताकि पितृगण कव्य प्राप्त कर सकें। प्रश्न: तिलक धारण क्यों करें? उत्तर: शास्त्रों में तिलक-धारण एक आवश्यक धार्मिक कृत्य माना गया है। तिलक के बिना ब्राह्मण चांडाल कहा गया है। हमारे ज्ञान-तंतुओं का विचारक केंद्र भृकुटि और ललाट का मध्य भाग है। जब हम मस्तिष्क से अधिक काम लेते हैं तो इसी केंद में वेदना अनुभव होने लगती है। अतः हमारे महार्षियों ने तिलक धारण का विधान किया। चंदन की महिमा सभी वैद्य-हकीम-डाक्टर जानते हैं। मस्तिष्क के केंद्र बिंदु पर चंदन का तिलक ज्ञान तंतुओं को संयमित व सक्रिय रखता है। ऐसे जातक को कभी सिर-दर्द नहीं रहता तथा उसकी मेधाशक्ति तेज रहती है। प्रश्न: स्त्रियां मांग में सिन्दूर क्यों लगाती हैं? उत्तर: भारत में कुंकुम के अतिरिक्त सीमंत (मांग) में सिंदूर लगाना सुहागिन स्त्रियों का प्रतीक माना जाता है और यह मंगलसूचक भी है। स्त्रियों के ललाट में सिंदूर का बिंदु जहां सौभाग्य का प्रधान लक्षण समझा जाता है, वहीं इससे स्त्री के सौन्दर्य में भी चार-चांद लग जाते हैं। विवाह-संस्कार के समय वर वधू के मस्तक (मांग) में सिंदूर लगाता है। यह एक प्रकार का संस्कार है। इसके बाद विवाहित स्त्री अपने (सुहाग) पति की दीर्घायु के लिये जीवनपर्यन्त मांग में सिंदूर लगाती है तथा पति की मृत्यु हो जाने पर स्त्रियां मांग भरना बंद कर देती हैं।