छह विभूतियां हनुमान जी को अपना पुत्र मानती हैं। हनुमान जी भगवान शंकर के अवतार हैं, वायु के आत्मज हैं, अंजनी के पुत्र हैं, केसरी नंदन हैं, सीता और राम के अपनाये हुए आज्ञाकारी पुत्र हैं। हनुमान जी की दृष्टि सदैव श्री राम के चरणों पर केंद्रित रहती है। सूर्य देव उनके गुरु हैं। जो काम श्री राम नहीं कर सके, उसे हनुमान जी, उनका नाम लेते हुए, कर कर गये । श्री राम ने पुल बांध कर समुद्र को पार किया। लेकिन हनुमान जी श्री राम का नाम ले कर बिना पुल के, स्वतः ही, समुद्र पार कर गये। रावण के पास एक अमर राक्षसों की सेना थी। श्री राम बडे़ चिंतित थे कि ऐसी सेना को तो जीता नहीं जा सकता। तब क्या किया जाए? हनुमान जी को भगवान राम की चिंता का कारण मालूम हुआ। उन्होंने यह समस्या तुरंत आसानी से हल कर दी। सारी अमर सेना को एक-एक कर के पूंछ में लपेट कर आसमान में फेंक दिया और पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से बाहर कर दिया, जहां से वह फिर पृथ्वी पर वापिस नहीं आ सकते थे। प्राणरक्षक हनुमान जी: 1-संजीवनी ला कर लक्ष्मण के प्राण बचाये। 2-लंका में माता सीता त्रिजटा, चंद्रमा, अशोक से मरने के लिए अग्नि मांग रही थीं। उसी समय हनुमान जी ने वहां जा कर, मुद्रिका दे कर, मां को शांत किया। 3-भरत ने तो सोच रखा था कि अगर श्री राम आज नहीं आये, तो वह अपने को भस्म कर देंगे। हनुमान जी ने ही जा कर उन्हें श्री राम के आगमन की सूचना दी और उनकी प्राण रक्षा की। 4-अहिरावण श्री राम और लक्ष्मण को पाताल ले गया और उनको भेंट करने ही वाला था कि हनुमान पहुंच गये और अहिरावण को मार डाला तथा दोनों को बचा कर लाये। 5-मेघनाद ने श्री राम को नाग पाश में बांध दिया। हनुमान जी गरुड़ को बुला कर लाये और उनको बंधन से मुक्त करवाया। संगीतज्ञ तथा कथावाचक हनुमान जीः लंका जा कर हनुमान जी ने प्रथम बार मधुर स्वर में विभीषण को माता सीता की कथा सुनायी और बाद में भरत को भी सुनायी। उनकी वाणी सुन कर सभी अत्यंत प्रसन्न हुए। भक्त और सेवकों में अग्रगण्य हनुमान जी: सीता की खबर लाने के लिए कोई भी तैयार नहीं हुआ। तब हनुमान जी ही इस दुर्गम काम को करने के लिए उद्यत हुए और उसे सुगम बनाया। क्रोधित हो कर उन्होंने लंका में आग लगा दी। रावण को उपदेश दिया कि सीता को लौटाने में ही भलाई है। अयोध्या में हनुमान जी ही भगवान राम के सारे काम करते थे। तीनों भाइयों ने मिल कर सारे काम आपस में बांट लिये और हनुमान जी श्री राम की सेवा से वंचित हो गये। जम्हाई लेते समय एक बार श्री राम का मुख खुला ही रह गया। सारे प्रयत्न किये गये, लेकिन मुंह बंद नहीं हुआ। गुरुदेव वशिष्ठ के कहने पर हनुमान जी को बुलाया गया। उन्होंने चुटकी बजायी और मुंह बंद हो गया। तीनों भाई सेवा से हट गये। हनुमान जी को पुनः सेवा करने का अवसर मिल गया। श्री राम कथा के अद्भुत श्रोता हनुमान जी: अयोध्या छोड़ कर श्री राम बैकुठ जाने लगे। हनुमान जी साथ में नहीं गये, क्योंकि बैकुंठ जा कर राम कथा सुनने को नहीं मिलती। इस पृथ्वी पर जहां कहीं, जब कभी राम कथा होती है, हनुमान जी, किसी न किसी रूप में, वहां अवश्य पहुंचते हैं और पूरी कथा सुनते हैं। रामायण के लेखक हनुमान जीः हनुमान जी ने रामायण लिख कर महर्षि बाल्मीकि को सुनायी। बातों-बातों में हनुमान को अपनी लिखी रामायण समुद्र में फेंकनी पड़ी। वही रामायण उन्होंने तुलसी दास से लिखवायी, जो सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हुई। संकटमोचन हनुमान जी: भूत-प्रेत, डाकिनी, शकिनी, बेताल आदि के संकटों से बचाने के लिए, प्राणी मात्र की सेवा के लिए, केवल हनुमान ही सक्षम हैं। उनका यह प्रभाव मेंहदीपुर (जिला भरतपुर) जा कर देखा जा सकता है। जिस प्रकार ये अदृश्य शक्तियां लोगों को संकट देती हैं, उसी प्रकार हनुमान जी भी उनको बड़ी ताड़ना देते हैं और दुखियों के दुखों को समाप्त करते हैं। हनुमान भक्तों को शनि परेशान नहीं करता: रावण ने शनि को उल्टा लटका रखा था। लंका में आग लगाते समय हनुमान जी ने ही शनि के बंधन तोडे़। उसी समय शनि ने वायदा किया कि वह हनुमान भक्तों को कभी परेशान नहीं करेगा; खास तौर से साढ़े साती में। विद्वान ज्योतिषी कहते हैं कि शनि की मार से बचना है, तो हनुमान जी की पूजा-अर्चना करें। अहंकाररहित विनयशील महावीर जी: श्री राम ने एक बार भरी सभा के सामने प्रश्न किया कि तुम समुद्र कैसे पार कर गये? उन्होंने उत्तर दिया कि आपकी मुद्रिका के प्रभाव से। अच्छा, तो यह बताओ कि लौट कर आने पर तो मुद्रिका नहीं थी, फिर कैसे समुद्र पार किया? मां की चूड़ामणि के प्रभाव से। अच्छा, तो लंका कैसे जलायी? मैंने तो लंका नहीं जलायी। मां जानकी के दुख के कारण निकलने वाली गरम-गरम सांसों ने लंका जलायी। अभिप्राय यह है कि उनमें कहीं भी अहं नहीं है, केवल विनयशीलता है। कार्य सिद्ध करने वाले बजरंग बली: सुबह-शाम, एक निश्चित समय, निष्ठा-श्रद्धापूर्वक, हनुमान चालीसा, संकटमोचक, बजरंग बाण नित्य प्रतिदिन कम से कम 40 दिन श्रवण, मनन और आरती करें, तो काम सिद्ध होगा। तीन महीने सुबह-शाम सुंदर कांड का पाठ करें। यह भी बहुत लाभदायक है। कहते हैं कि सुंदर कांड तो हनुमान जी ने ही लिखा है। द्वादशाक्षर हनुमान मंत्र: हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट्। शत्रु पर विजय प्राप्त करने और ऐसी ही सफलताओं के लिए यह अद्भुत मंत्र है। एक माला सुबह-शाम करनी होगी; ज्यादा करें तो और भी अच्छा है। धन-दौलत और संपन्नता प्राप्ति हेतु: ह्रां ह्रीं ह्रं ह्रैं ह्रौं ह्रः हनुमते श्रियं देहि देहि दापय दापय ह्रां ह्रीं हु्रं है ह्रौं ह्रः श्री स्वाहा। शास्त्र में बताया गया है कि इस मंत्र का जप पीपल के पेड़ के नीचे बैठ कर करें। 1.25 लाख मंत्र से हवन करें। बाद में ब्राह्मण को भोजन करवाएं, तो काम सफल होंगे। दुनिया भर में बजरंग बली के सबसे ज्यादा मंदिर हैं। इसका कारण यह है कि वह दुखियों की आवाज तुरंत सुनते हैं और उनकी समस्याओं का समाधान निकालते हैं। बाबा बडे़ दयालु हैं। भाग्य को तो पलटना आसान नहीं, लेकिन जटिल समस्याएं तो वह तुरंत हल करते हैं तथा असंभव को संभव बनाने में भी कुछ ही समय लगाते हैं।