पूजा-अर्चना में हर देवी-देवता को प्रसन्न करने के लिए फल-फूल, प्रसाद आदि चढ़ाने का विधान है परन्तु हनुमान जी की अर्चना बिना सिंदूर के अधूरी है। रामायण में एक कथा प्रसिद्ध है- श्री हनुमान जी ने जगजननी श्री सीता जी के मांग में सिंदूर लगा देखकर आश्चर्यपूर्वक पूछा- माता! आपने यह लाल द्रव्य मस्तक पर क्यों लगाया है ? सीता जी ने ब्रह्मचारी हनुमान की इस सीधी-सादी बात पर प्रसन्न होकर कहा, पुत्र! इसके लगाने से मेरे स्वामी की दीर्घायु होती है, वह मुझ पर प्रसन्न रहते हैं। श्री हनुमान ने यह सुना तो बहुत प्रसन्न हुए और विचारा कि जब उंगली भर सिंदूर लगाने से आयुष्य वृद्धि होती है तो फिर क्यों न सारे शरीर पर इसे पोतकर अपने स्वामी को अजर-अमर कर दूं। हनुमान जी ने वैसा ही किया। सारे शरीर में सिंदूर पोतकर सभा में पहुंचे, तो भगवान उन्हें देखकर हंसे और बहुत प्रसन्न हुए। हनुमान जी को माता जानकी के वचनों में और अधिक दृढ़ विश्वास हो गया। कहते हैं उस दिन से हनुमान जी को इस उदात्त स्वामी-भक्ति के स्मरण में उनके शरीर पर सिंदूर चढ़ाया जाने लगा। सिंदूर रसायन की भाषा में ‘लेड आॅक्साइड’ गर्मी में ‘आॅक्सीजन’ देता है। चंकि भारत एक गर्म देश है इसलिए मंदिरों में जहां सिंदूर चढ़े उसके आसपास के वातावरण में आक्सीजन बहुतायात मात्रा में होती है। इससे शरीर में स्फूर्ति आती है और शरीर स्वस्थ रहता है। हनुमान चालीसा में भी वर्णित है कि राम रसायन तुम्हरे पासा, सदा रहो रघुपति के दासा। इस बात से सिद्ध होता है कि हनुमान जी जीवनदायिनी बूटी के समान हैं, जिनकी उपासना से शारीरिक रूप से निर्बल भक्त में भी ऊर्जा का संचार होता है और वह स्वस्थ रहता है।