ज्योतिष में ग्रहणों का बहुत महत्व है क्योंकि उनका सीधा प्रभाव मानव जीवन पर देखा जाता है। चंद्रमा के पृथ्वी के सबसे नजदीक होने के कारण उसके गुरुत्वाकर्षण का सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है। इसी कारण पूर्णिमा के दिन समुद्र में सबसे अधिक ज्वार आते हैं और ग्रहण के दिन उनका प्रभाव और अधिक हो जाता है। भूकंप भी गुरुत्वाकर्षण के घटने और बढ़ने के कारण ही आते हैं। यही भूकंप यदि समुद्र के तल में आते है, तो सुनामी में बदल जाते हैं। भूकंप, तूफान, सुनामी आदि में वैसे तो सूर्य, बुध, शुक्र और मंगल का प्रभाव देखा गया है लेकिन चंद्रमा का प्रभाव विशेष है एवं ग्रहण का प्रभाव और भी विशेष है। ग्रहण अधिकाशंतः किसी न किसी आने वाली विपदा को दर्शाते हैं। ग्रहण एक खगोलीय घटना है जो खगोलीय पिंडों की विशेष अवस्था व स्थिति के कारण घटती है। वे खगोलीय पिंड पृथ्वी, सूर्य व चंद्रमा जैसे ग्रह, उपग्रह हो सकते हैं। इस दौरान इन पिंडों द्वारा उत्पन्न प्रकाश इन पिंडों के कारण ही अवरूद्ध हो जाता है। इनमें मुख्य रुप से पृथ्वी के साथ होने वाले ग्रहणों में निम्नलिखित उल्लेखनीय हैं। चंद्रग्रहण इस ग्रहण में चंद्रमा और सूर्य के बीच पृथ्वी आ जाती है। ऐसी स्थिति में चाँद पृथ्वी की छाया से होकर गुजरता है। ऐसा सिर्फ पूर्णिमा के दिन संभव होता है। सूर्यग्रहण इस ग्रहण में चाँद, सूर्य और पृथ्वी एक ही सीध में होते हैं और चाँद पृथ्वी और सूर्य के बीच होने की वजह से चाँद की छाया पृथ्वी पर पड़ती है। ऐसा अक्सर अमावस्या के दिन होता है। पूर्ण ग्रहण पूर्ण ग्रहण तब होता है जब खगोलीय पिंड जैसे पृथ्वी पर प्रकाष पूरी तरह अवरुद्ध हो जाये। आंशिक ग्रहण आंषिक ग्रहण की स्थिति में प्रकाष का स्रोत पूरी तरह अवरुद्ध नहीं होता। महत्वपूर्ण तथ्य 1- किसी सूर्यग्रहण के विपरीत, जो कि पृथ्वी के एक अपेक्षाकृत छोटे भाग से ही दिख पाता है, चंद्रग्रहण को पृथ्वी के रात्रि पक्ष के किसी भी भाग से देखा जा सकता है। जहाँ चंद्रमा की छाया की लघुता के कारण सूर्यग्रहण किसी भी स्थान से केवल कुछ मिनटों तक ही दिखता है, वहीं चंद्रग्रहण की अवधि कुछ घंटों की होती है। इसके अतिरिक्त चंद्रग्रहण को सूर्यग्रहण के विपरीत आँखों के लिए बिना किसी विषेष सुरक्षा के देखा जा सकता है, क्योंकि चंद्रग्रहण की उज्ज्वलता पूर्ण चंद्र से भी कम होती है। 2- 22 जुलाई 2009 का सूर्यग्रहण 21वीं सदी का सबसे लंबा पूर्ण सूर्यग्रहण था, जो कि कुछ स्थानों पर 6 मिनट 39 सेकंड तक रहा। इसके कारण चीन, नेपाल व भारत में पर्यटन-रुचि भी बढ़ी। यह ग्रहण सौर-चक्र 136 का एक भाग है, जैसे कि कीर्तिमान-स्थापक 11 जुलाई 1991 का सूर्यग्रहण था। इस शृंखला में अगली घटना 2 अगस्त 2027 में होगी।इसकी अनोखी लंबी अवधि इसलिए है, कि चंद्रमा उपभू बिंदु पर है, जिससे चंद्रमा का आभासी व्यास सूर्य से 8 प्रतिशत बड़ा है (परिमाण 1.080) तथा पृथ्वी अपसौरिका के निकट है जहाँ पर सूर्य थोड़ा सा छोटा दिखाई देता है। 3- चंद्र ग्रहण केवल पूर्णिमा वाले दिन लगते हैं। 4- सूर्य ग्रहण केवल अमावस्या वाले दिन लगते हैं। 5- सूर्य ग्रहण चंद्र ग्रहण से हमेषा दो सप्ताह पूर्व या बाद में लगता है। 6- चंद्र ग्रहण की सर्वाधिक अवधि 3 घंटा 40 मिनट तक की हो सकती है। 7- सूर्य ग्रहण की सर्वाधिक अवधि 7 मिनट 40 सैकेंड हो सकती है। 8- चंद्र ग्रहण एक वर्ष में 3 बार लग सकता है। 9- सूर्य ग्रहण एक वर्ष में कम से कम दो बार व अधिकतम 5 बार लग सकता है। 10- सूर्य ग्रहण 269 कि.मी. लम्बी और 167 मील चैड़ी पट्टी पर दृष्टिगोचर होता है। 11- पूर्ण सूर्य ग्रहण 1.5 वर्ष में केवल एक बार लगता है। 12- एक ही प्रकार के ग्रहण 18 वर्ष 11 दिन बाद पुनरावृत्त होते हैं। इसे Saros Cycle कहते हैं। 13- पृथ्वी की एक Specific geographic position पर 360 वर्षों तक सूर्य ग्रहण की पुनरावृत्ति नहीं हो सकती। 14- आंशिक सूर्य ग्रहण धरती की जिस जगह पर लगता है वहां से 3000 मील की दूरी से भी दृष्टिगोचर होता है। 15- पशु और पक्षी सूर्य ग्रहण के समय या तो सोने की तैयारी या अजीब प्रकार से व्यवहार करते हुए देखे जा सकते हैं। 16- पूर्ण सूर्य ग्रहण तब तक दृष्टिगोचर नहीं होता जब तक चांद इसके लगभग 50 प्रतिशत भाग को नहीं ढंक लेता और जब यह 99 प्रतिशत भाग को ढंक लेता है तो सूर्यास्त जैसी स्थिति हो जाती है। 17- चंद्रग्रहण पूरे Hemisphere में दिखाई देता है। सूर्य तथा चंद्र ग्रहण काल के शुभाशुभ कृत्य: चंद्र ग्रहण जिस प्रहर में हो उससे पूर्व के तीन प्रहरों में तथा सूर्य ग्रहण से पहले चार पहरों में भोजन नहीं करना चाहिए। केवल वृद्ध जन, बालक और रोगी इस निषेध काल में भोजन कर सकते हैं, उनके लिए भोजन का निषेध नहीं है। ग्रहण काल में अपने आराध्य देव के जपादि करने से अनंतगुणा फल की प्राप्ति होती है। ग्रहण काल की समाप्ति के पश्चात् गंगा आदि पवित्र नदियों में स्नान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। शास्त्रों के अनुसार ग्रहण के समय दिया हुआ दान, जप, तीर्थ, स्नानादि का फल अनेक गुणा होता है। लेकिन यदि रविवार को सूर्य ग्रहण एवं चंद्रवार को चंद्रग्रहण हो, तो फल कोटि गुणा होता है। आध्यात्मिक साधना के क्षेत्र में यंत्र-मंत्र सिद्धि साधना के लिए ग्रहण काल का अपना विशेष महत्व है। चंद्रग्रहण की अपेक्षा सूर्य ग्रहण का समय मंत्र सिद्धि, साधनादि के लिए अधिक सिद्धिदायक माना जाता है। ज्योतिष में इससे भी अधिक सूक्ष्मता से ऋषि मुनियों ने ग्रहणों के प्रभाव का अध्ययन भूकंप ही नहीं बल्कि मनुष्य के ऊपर भी किया है जैसे: a. अग्नि राशि में ग्रहण राजा के लिए अनिष्टकर एवं युद्ध व आगजनी का कारक होता है। पृथ्वी राशि में कृषि के क्षेत्र में आपदा एवं भूकंप देता है। वायु राशि में आंधी व तूफान और जल राशि में बाढ़ एवं पानी से कष्ट तथा भारी संख्या में नरसंहार दर्शाता है। b. जिस अंश पर ग्रहण लगता है यदि उसी अंश के आस-पास जन्मांग में कोई ग्रह हो तो उस पर ग्रहण का बुरा असर पड़ता है। यह ग्रह जिस भाव का कारक होगा उसका फल प्रभावित होगा। c. यदि भाव के अंश पर ग्रहण लगता है तो भी उस भाव के फल प्रभावित होते हैं। ग्रहण का असर कई गुना अधिक हो जाता है जब अन्य ग्रह सभी राशियों में बंटे न होकर आसपास की राशियों में ही स्थित रहते हैं।