दरिद्रा कहाँ-कहाँ रहती है ?
दरिद्रा कहाँ-कहाँ रहती है ?

दरिद्रा कहाँ-कहाँ रहती है ?  

व्यूस : 6216 | नवेम्बर 2013
समुद्र-मन्थन के समय हलाहल के निकलने के पश्चात् दरिद्रा की, तत्पश्चात् लक्ष्मी जी की उत्पत्ति हुई। इसलिये दरिद्रा को ज्येष्ठा भी कहते हैं। ज्येष्ठा का विवाह दुःसह ब्राह्मण के साथ हुआ। विवाह के बाद दुःसह मुनि अपनी पत्नी के साथ विचरण करने लगे। जिस देश में भगवान् का उद्घोष होता, होम होता, वेदपाठ होता, भस्म लगाये लोग होते-वहां से ज्येष्ठा दोनों कान बंद कर दूर भाग जाती। यह देखकर दुःसह मुनि उद्विग्न हो गये। उन दिनों सब जगह धर्म की चर्चा और पुण्य कृत्य हुआ ही करते थे। अतः दरिद्रा भागते-भागते थक गयी, तब उसे दुःसह मुनि निर्जन वन में ले गये। ज्येष्ठा डर रही थी कि मेरे पति मुझे छोड़कर किसी अन्य कन्या से विवाह न कर लें। दुःसह मुनि ने यह प्रतिज्ञा कर कि ‘मैं किसी अन्य कन्या से विवाह नहीं करुंगा’ पत्नी को आश्वस्त कर दिया। आगे बढ़ने पर दुःसह मुनि ने महर्षि मार्कण्डेय को आते हुए देखा। उन्होंने महर्षि को साष्टांग प्रणाम किया और पूछा कि ‘इस भार्या के साथ मैं कहां रहं ?’ मार्कण्डेय मुनि ने पहले उन स्थानों को बताना आरम्भ किया, जहां दरिद्रा को प्रवेश नहीं करना चाहिए- ‘जहां रुद्र के भक्त हांे और भस्म लगाने वाले लोग हों, वहां तुम लोग प्रवेश न करना। जहां नारायण, गोविन्द, महादेव, आदि भगवान् के नाम का कीर्तन होता हो, वहां तुम दोनां को नहीं जाना चाहिये; क्योंकि आग उगलता हुआ विष्णु का चक्र उन लोगों के अशुभ को नाश करता रहता है। जिस घर में स्वाहा, वषट्कार और वेद का घोष होता हो, जहां के लोग नित्य कर्म में लगे हुए भगवान की पूजा में लगे हुए हों, उस घर को दूर से ही त्याग देना। जिस घर में भगवान् की मूर्ति हो, गायें हों, भक्त हों, उस घर में तुम दोनों मत घुसना।’ तब दुःसह मुनि ने पूछा-‘महर्षे! अब आप हमें यह बतायं कि हमारे प्रवेश के स्थान कौन-कौन से हैं ?’ महर्षि मार्कण्डेय जी ने कहा- ‘जहां पति-पत्नी परस्पर झगड़ा करते हों, उस घर में तुम दोनों निर्भय होकर घुस जाओ। जहां भगवान के नाम नहीं लिये जाते हों, उस घर में घुस जाओ। जो लोग बच्चों को न देकर स्वयं खा लेते हों, उस घर में तुम दोनों घुस जाओ। जिस घर में काँटेदार, दूधवाले, पलाश के वृक्ष और निम्ब के वृ़क्ष हों, जिस घर में दोपहरिया, तगर, अपराजिता के फूल का पेड़ हो, वे घर तुम दोनों के रहने योग्य हैं, वहां अवश्य जाओ। जिस घर में केला, ताड़ तमाल, भल्लातक (भिलाव), इमली, कदम्ब, खैर के पेड़ हों, वहां तुम दरिद्रा के साथ घुस जाया करो। जो स्नान आदि मंगल कृत्य न करते हों, दांत-मुख साफ नहीं करते, गन्दे कपड़े पहनते, संध्याकाल में सोते या खाते हों, जुआ खेलते हों, ब्राह्मण के धन का हरण करते हों, दूसरे की स्त्री से सम्बन्ध रखते हों, हाथ-पैर न धोते हों, उन घरों में दरिद्रा के साथ तुम रहो।’ मार्कण्डेय ऋषि के चले जाने के बाद दुःसह ने अपनी पत्नी दरिद्रा से कहा- ज्येष्ठे! तुम इस पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ जाओ। मैं रसातल जाकर रहने के स्थान का पता लगाता हँ।’ दरिद्रा ने पूछा- ‘नाथ-! तब मैं खाऊंगी क्या ? मुझे कौन भोजन देगा ?’ दुःसह ने कहा- ‘प्रवेश के स्थान तो तुझे मालूम ही हो गये हैं, वहां घुसकर खा-पी लेना। हां, यह याद रखना कि जो स्त्री पुष्प, धूप आदि से तुम्हारी पूजा करती हो, उसके घर में मत घुसना।’ इतना कहकर दुःसह रसातल में चले गये। ज्येष्ठा वहीं बैठी थी कि लक्ष्मी जी के साथ भगवान विष्णु वहां आ गये। ज्येष्ठा ने भगवान विष्णु से कहा- ‘मेरे पति रसातल चले गये हैं, मैं अब अनाथ हो गयी हं, मेरी जीविका का प्रबन्ध कर दीजिये।’ भगवान विष्णु ने कहा ‘ज्येष्ठे! जो माता पार्वती, शंकर और मेरे भक्तों की निन्दा करते हैं, उनके सारे धन पर तुम्हारा अधिकार है। उनका तुम अच्छी तरह उपभोग करो। जो लोग भगवान् शंकर की निन्दा कर मेरी पूजा करते हैं, ऐसे भक्त अभागे होते हैं, उनके धन पर तुम्हारा ही अधिकार है।’ इस प्रकार ज्येष्ठा को आश्वासन देकर भगवान् विष्णु लक्ष्मी-सहित अपने निवास स्थान बैकुण्ठ को चले गये। (लिंग पुराण)



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.