प्रत्येक व्यक्ति की लिखावट एक समान नहीं होती, क्यों? ‘क्यों’ ही हस्ताक्षर विज्ञान के अध्ययन का मुख्य विषय है। विभिन्न मनुष्यों में अलग-अलग प्रवृत्तियां या सोचने एवं काम करने का तौर-तरीका अलग-अलग होता है। इसी से उनके चरित्र का निर्माण होता है। उसकी आंतरिक प्रवृत्तियां ही स्वतः उसकी लिखावट को ‘एक प्रकार’ दे देंगी, उस बारे में हम दूसरे ढंग से कहें कि किसी व्यक्ति की लिखावट ही उसका अंतःकरण है, उसका व्यक्तित्व है। राॅबर्ट, मिलर, फ्राॅस्ट आदि विश्व प्रसिद्ध भाषा वैज्ञानिकों का मत है कि कोई भी व्यक्ति एक बार जो अक्षर लिखता है, ठीक वैसा ही अक्षर जीवन में दो बार नहीं लिख सकता है। अर्थात् किसी क्षण विशेष में उसने किसी अक्षर को जिस रूप और प्रकार में लिखा है, ठीक उसी रूप और प्रकार में पुनः उसी अक्षर को लिख ही नहीं सकता। मानसिक अवस्था की कमोवेशता के फलस्वरूप ही लिखावट पर पड़ने वाले प्रभाव के कारण ‘हस्ताक्षर-विज्ञान’ का वैज्ञानिक रूप मिल सकता है और इसी को आधार बनाकर हम विश्वास-पूर्वक कह सकते हैं कि इस प्रकार की लिखावट वाले व्यक्ति की मानसिक अवस्था ऐसी हो सकती है और उसका स्वभाव ऐसा हो सकता है। इस बात को निम्न तर्क के द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है नेपोलियन बोनापार्ट का व्यक्तित्व और उसकी असाधारण सफलताएं जहां युद्ध-विशारदों के लिए पहेली बनी रहीं, वहां उसके जीवन के चमत्कारिक उतार-चढ़ाव भरा जीवन विशेषज्ञों के लिए आश्चर्यप्रद भी। उसके जीवन में उन्नति के दिन आये तो अवनति के भी। नीचे दिए गए ‘‘नेपोलियन’ के हस्ताक्षर उसके जीवन की भिन्न-भिन्न मानसिक अवस्थाओं को स्पष्ट करते हैं। आप देखें कि मानसिक अवस्थाओं का धनी, घमंडी और सत्ता के मद में चूर व्यक्ति के हस्ताक्षर गहरे तथा विरल होते हैं। नेपोलियन के निम्न प्रभाव किस प्रकार उसके हस्ताक्षरों में भी पूर्ण रूप से प्रतिबिम्बित है। उर्पुक्त हस्ताक्षर उस समय के हैं जब उसने दो सप्ताह में ही ‘युद्ध’ जीतकर निपुण युद्ध विशारद होने का परिचय दिया था। उसके हस्ताक्षर स्वयं ही उसकी उच्चता एवं आत्म विश्वास को साकार रूप देने से दिखाई दे रहे हैं। हस्ताक्षरों में न अस्पष्टता है, न असंतुलन, बल्कि इसके विपरीत स्पष्ट और आत्म विश्वासपूर्ण ये हस्ताक्षर उसकी उच्च मानसिक स्थिति को स्पष्ट कर रहे हैं। नीचे दिए नेपोलियन के हस्ताक्षर उस समय के हैं, जब सन् 1798 में उसने मिस्र पर हमला किया था, पर वह हमला सफल नहीं हो पाया। हस्ताक्षर, इस कथन की पुष्टि करते प्रतीत होते हैं। ये हस्ताक्षर सन् 1804 के हैं जब नैपोलियन फ्रांस का सम्राट बनकर सत्ता और मद के नशे में चूर हो गया था। यह हस्ताक्षर उसकी इसी मनःस्थिति को स्पष्ट करते हैं। नेपोलियन के निम्न हस्ताक्षर उस समय के हैं, जब ‘आस्टरलिट्ज’ पर विजय प्राप्त की थी और वह द्रुतगति से आगे बढ़ने के मनसूबे बांध रहा था। हस्ताक्षर स्वयं आगे की ओर भागते हुए से प्रतीत होते हैं और नेपोलियन के अग्रसर होने की मनःस्थिति का रहस्योद्घाटन कर रहे हैं। परंतु जहां नेपोलियन अन्य स्थानों पर विजय पर विजय प्राप्त करता रहा, वहां रूस में उसे प्रबल पराजय का भी सामना करना पड़ा। वह रूस से भिड़ तो गया था, पर जीत दूर-बहुत-दूर दिखाई पड़ने लगी थी। इतिहास साक्षी है कि उन दिनों वह अधिक उग्र, अधिक चिड़चिड़ा और अधिक बेचैन सा दिखाई देता था। उसकी वह बेचैनी ही उसके निम्न हस्ताक्षरों में स्पष्ट झलक रही है। आंतरिक आह्लाद को प्रकट करते से प्रतीत होते हैं। भग्न हृदय से किये गये हस्ताक्षर जहां उखड़े-उखड़े से प्रतीत हो रहे हैं, वहीं निराशापूर्ण मनःस्थिति के समय के हस्ताक्षर टूटे हुए से छिन्न-भिन्न तथा असंबद्ध से हो जाते हैं। नीचे नेपोलियन के उस समय के हस्ताक्षर हैं, जब 1814 ई. में उसे जबरन गद्दी त्यागनी पड़ी। हस्ताक्षर स्वयं उसकी नैराश्यपूर्ण मानसिक स्थिति को स्पष्ट कर रहे हैं। पर इसके विपरीत ‘‘बर्लिन की संधि’’ में उसके किए गए हस्ताक्षर जहां सफलता बता रहे हैं, वहां आत्मसंतोष भी। ऊपर की ओर उठे हुए हस्ताक्षर उसकी विजय, सफलता और उसके मन का संतोष सही रूप में उजागर करते से प्रतीत होते हैं। नेपोलियन एक सहृदय प्रेमी भी था। उसकी प्रेमिका को लिखे उसके पत्र इस कथन के साक्षी हैं, पर उस कोमल हृदय के आगे अनुशासन का मोटा लौहद्वार भी लगा था। विजय प्राप्त करते रहना उसकी इच्छा थी तो आगे ही आगे बढ़ते रहना उसका ध्येय। 1809 में उसने एक मार्शल को मार्च करने की आज्ञा पर जो हस्ताक्षर किये थे, वे (नीचे के हस्ताक्षर) उसकी इस मानसिक अवस्था को प्रतिबिंबित करते हैं। छोटे और उड़ते हुए से हस्ताक्षर व्यक्ति की असाधारण जीत के सूचक होते हैं। निम्न हस्ताक्षर उस समय के हैं, जब नेपोलियन ने वियना पर विजय प्राप्त कर ली थी। पाठक स्वयं इस अवसर के नेपोलियन के हस्ताक्षर का सूक्ष्म अध्ययन करें, हस्ताक्षर जीत की मनःस्थिति और क्रोधातिरेक में मानसिक स्थिति असंतुलित हो जाती है, धमनियों पर खून का दबाव बढ़ जाता है और मस्तिष्क में क्रूर ‘सैलांे’ की अधिकता हो जाती है। ऐसे समय में व्यक्ति के हस्ताक्षर भी असंतुलित, उबड़-खाबड़ तथा असंबद्ध हो जाते हैं। क्रोधातिरेक में जब नेपोलियन ने ‘मास्को’ को जला देने की आज्ञा पर हस्ताक्षर किये थे (नीचे) तब उसका मस्तिष्क कोधाभिभूत था और उसका यही क्रोध, मानसिक असंबद्धता और असंतुलन उसके हस्ताक्षरों में भी अनजाने ही स्पष्ट हो गया था। नीचे के हस्ताक्षर इसकी पुष्टि कर रहे हैं। जैसा कि ऊपर कहा गया कि नेपोलियन जहां उन्नति के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचा, वहीं उसका अधःपतन भी पराकाष्ठा तक पहुंचा। उन्नति तथा प्रगति की ओर बढ़ते-बढ़ते जब लीपजिंग के युद्ध में उसे पराजय का सामना करना पड़ा तो उसका उत्साह ठंडा पड़ गया, उसका मन खंड-खंड हो गया। नीचे के हस्ताक्षर उसके खंडित मन के परिचायक हैं। सन् 1915 के आस-पास नेपोलियन ने संन्यास सा ले लिया था। उसका भविष्य अंधकारपूर्ण प्रतीत हो रहा था। धीरे-धीरे- उनके मित्र उससे दूर हटते जा रहे थे और वह जीवन में एकाकीपन तथा निराशा का अनुभव कर रहा था। निम्न हस्ताक्षर उसकी इसी निराशापूर्ण मनःस्थिति के द्योतक हैं। ऊपर एक ही व्यक्ति के भिन्न-भिन्न मनःस्थितियों के हस्ताक्षर देकर यह स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है कि व्यक्ति की लिखावट या हस्ताक्षर पर उस समय के वातावरण एवं मनःस्थिति का पूर्ण प्रभाव रहता है और इस प्रकार के हस्ताक्षरों के माध्यम से संबंधित व्यक्ति की मनःस्थिति का सही परिचय प्राप्त कर सकते हैं।