जब व्यक्ति के शरीर के सभी विभाग ठीक प्रकार से कार्य करते हों, भूख खुलकर लगती हो, भोजन भली-भांति पचता हो, शौच साफ होता हो, काम-धन्धे के लिए, उत्साह हो, बदन में आलस्य ना हो और ना ही जड़ता हो, मन में दमखम और उत्साह हो तो उत्तम स्वास्थ्य कहलाता है। किसी भी व्यक्ति विशेष की लिखावट की विशेषताओं के अध्ययन एवं विश्लेषण द्वारा उसके स्वास्थ्य एवं शारीरिक और मानसिक रोगों की पहचान स्वयं में एक नवीन अनुसंधान है। अब जानिये कि किस प्रकार की लिखावट की क्या विशेषताएं हैं जो हमें बताती हैं कि लिखावटकर्ता का स्वास्थ्य ठीक है अर्थात उनकी लिखावट में निम्नलिखित गुण होने चाहिये। 1-लिखावट के अधिकांश अक्षर गोलाई लिए व सुडौल हों। 2-लिखावट के सभी अक्षर सरलतापूर्वक लिखे गए हों। 3-लिखावट के सभी अक्षरों पर पड़ने वाला दबाव लगभग समान हो। 4-लिखावट की गति सामान्य हो न तो अधिक धीमी और ना ही अधिक तीव्र हो। 5-लिखावट के अक्षर समान और स्पष्ट होने चाहिए। अब जानते हैं कि लिखावट के दृष्टिकोण से शारीरिक और मानसिक रुप से बीमार लोगों की लिखावट में कौन से अवगुण पाये जाते हैं। 1-निकृष्ट श्रेणी के अत्यन्त छोटे अक्षरों वाली लिखावट मानसिक दुर्बलता की ओर संकेत करती है। 2-निकृष्ट श्रेणी के धीमी गति वाली लिखावट भी मानसिक विक्षिप्तता की ओर संकेत करती है। 3-कड़ीदार चैन जैसी बनावट वाली लिखावट वाले लोगों का स्वास्थ्य भी प्रायः ठीक नहीं रहता। 4-यदि किसी की लिखावट 150 डिग्री की हो तो वे मानसिक व शारीरिक दोनों प्रकार की दुर्बलताआंे से पीड़ित हो सकते हैं। 5-165डिग्री वाले अक्षरों से लिखी लिखावट वाले लोग प्रायः विकलांग देखे गये हैं। विशेष किसी भी लिखावट का प्रथम अक्षर यदि छोटा, टूटा, अस्पष्ट,और उलझा हुआ हो तो, ऐसी लिखावट वाला व्यक्ति शिरोरोग से पीड़ित होता है। वह जीवन की प्रत्येक लड़ाई में हारा हुआ होता है। इसी प्रकार यदि किसी कि लिखावट के मध्य के अक्षर टेढ़े-मेढ़े, कटे हुए या अस्पष्ट हों तो ऐसा व्यक्ति हृदय से पेट तक रोगों से पीड़ित हो सकता है, यदि मध्य का अक्षर खुला हुआ एवं अन्य अक्षरों से अधिक स्पष्टता लिए हो या इसे अधिक जंचाकर और संवारकर लिखा गया हो तो ऐसे व्यक्ति भयंकर उत्तेजना से पीड़ित हो सकते हैं। यदि किसी लिखावट के अन्तिम अक्षर अधिक लम्बे हो गये हों तो इसका तात्पर्य है कि उस लिखावटकर्ता को गठिया,बाय, एवं पैरों के किसी रोग से पीड़ित होने की सम्भावना है और ये रोग जांघ, घुटने, पिंडली, एड़ी, तलवों आदि से संबंधित हो सकते हैं। किसी भी रोगी की लिखावट द्वारा रोगों का निदान अपने आप में प्रकृति द्वारा प्रदत्त एक विशेष उपलब्धि है। सबसे पहले लिखावट द्वारा रोग की पहचान करना आवश्यक है, और पहचान करने के बाद लिखे अक्षरों के उसी से संबंधित भाग का विश्लेषण करना चाहिए। लिखावट में से कुछ बड़े शब्द चुन लीजिए और उन अक्षरों को तीन भागों में बाँट दीजिये। पहले भाग को शरीर का पहला भाग समझिये यानि सिर से लेकर कन्धे तक का भाग। इसका मतलब ये है कि इस पहले भाग से आप किसी भी लिखावट कर्ता के इस भाग के रोगों का पता लगा सकते हैं। इसी प्रकार दूसरे भाग यानि मध्य हिस्से के वर्ग में आने वाले रोग छाती से लेकर नाभि तक के शारीरिक अंगों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसका मतलब ये है कि शब्दों के इस मध्य भाग के विश्लेषण से शरीर के मध्य भाग के रोगों का पता लगा सकते हैं। तीसरे और अन्तिम हिस्से में नाभि से तलवे तक के रोगों की पहचान की जा सकती है। लिखावट के अक्षर बारीकी से जाँच करनी चाहिये, इसलिए जिन शब्दों का चयन आप करते हैं उनके अक्षर लगभग समान होने चाहिये। किसी लिखावट का अध्ययन करने के लिए प्रत्येक लाइन में से एक अक्षर अवश्य लीजिए। लिखावट से रोगों का निदान सुनकर अजीब अवश्य लगता है, लेकिन आप भी मानेंगे कि मनोचिकित्सा हमारे जीवन में कितनी कारगर रही है और श्रद्धा एवं विश्वास से किये जाने वाला हर कार्य अवश्य पूर्ण होता है। अनुभव तो यही है कि इन उपचारों से अनेक लोगों को लाभ मिला है, तो आप भी लाभ उठाइये। ये उपाय इन रोगों में एक निश्चित सीमा तक ही लाभ देते हैं, किंतु एक बार को आपको लाभ न भी हो मगर नुकसान की संभावना शून्य है। 1. आधा शीशी का दर्द किसी भी व्यक्ति को यदि इस रोग से पीड़ा हो तो उसे चाहिये कि वह अपनी मनोदशा अनुसार एक कागज पर कुछ भी लिखे और प्रत्येक शब्द के पीछे नीचे की ओर दो बिन्दु जोर से लगाता जाए। एक बड़े पेपर पर दोनों ओर इतना लिखे कि पेपर भर जाए,इस प्रकार जब भी दर्द हो ऐसा ही करे। 2. सिर का दर्द एक कागज पर लिखना शुरू करें और हर शब्द के नीचे जोर से एक बिन्दू लगाते जाएं, जब तक दर्द में आराम न आए नियमित रुप से लिखते जाएं, आराम अवश्य होगा। 3. चिंता एक कोरे कागज पर बड़ा सा ओम लिखें और उस पर अपनी चिन्ता लिख डालें, फिर उस कागज को अपने माथे से छुआकर छोटे-छोटे टुकड़ों में फाड़कर फेंक दें तो अवश्य लाभ मिलेगा। 2- सुबह शीघ्र अशोक के पेड़ के पाँच कोमल पत्ते तोड़ लें, उन पर शहद से ओम लिखें और अच्छी तरह चबाकर थूक दें, ऐसा नियमित रुप से रोज करें, लाभ अवश्य मिलेगा। 4. उदर पीड़ा अमरूद के पत्तों को जलाएं और उसकी राख चाट लें,फिर राख को गीला करके अमरूद की कलम से कागज पर कुछ भी लिखें और उस कागज को जला दें। 5. आंखों की पीड़ा अपनी लिखावट इस प्रकार लिखें कि सभी अक्षर नीचे से ऊपर कि ओर दुहरे दिखाई पड़ें, फिर उस कागज को आंखों से छुआकर फाड़ कर फेंक दें। 6. हाथों की पीड़ा लिखावट कर्ता अमरूद के पत्ते पर कोई शुभ संदेश लिख कर उसे हथेली पर रखकर फूँक मारकर उड़ा दे। 7. कंधों का दर्द रात्रि में एक कागज पर लिखें कि मेरा कंधों का दर्द ठीक हो रहा है। फिर उस कागज को अपने तकिये के भीतर रख दें व सुबह उस कागज को घूरकर देखें और फाड़ कर फेंक दें। 8. पिंडलियों की पीड़ा सफेद कागज पर पुरूष आकृति बनायंे, (पेंसिल का प्रयोग करंे) उस पर अपना पूरा नाम लिखकर चार खजूर रखकर अपनी पिंडली से छूकर किसी कच्चे स्थान में दबाएं। 9. बुखार होने पर एक श्वेत कागज पर अपना नाम लिखें, 3 बार बुखार की मात्रा लिखें जैसे 101,101,101 फिर उस कागज पर तीन चम्मच चीनी रख कर अपने ऊपर से सात बार उतारें, फिर किसी गंदी नाली में फेंक दें, नाली ना हो तो फ्लश कर सकते हैं। 10. ब्लड प्रेशर एक कोरे कागज पर (छोटा सा चैकोर कागज ) कोई भी मंत्र स्वयं लिखंे और उस कागज को गुलाब के फूल पर रखकर उसकी पंखुड़ियांे सहित चूसकर अथवा चबाकर रख दें ऐसा नियमित करते रहें। 11. घाव, फुंसी, फोड़ा, एलर्जी किसी कागज पर अपनी बीमारी लिखं (3बार) और साथ ही 3 बार 63,63,63 लिखें और कागज को गुड़ की गज्जक के चूरे में छुपाकर किसी नदी, तालाब, सरिता आदि के किनारे गड्ढा खोदकर दबा दें तो फायदा होगा।