ऋतुराज का स्वागतोत्सव वसंत पंचमी
ऋतुराज का स्वागतोत्सव वसंत पंचमी

ऋतुराज का स्वागतोत्सव वसंत पंचमी  

फ्यूचर पाॅइन्ट
व्यूस : 12443 | फ़रवरी 2014

वसंत पंचमी का उत्सव माघ मास शुक्ल पक्ष पंचमी तिथि को धूमधाम से मनाया जाता है। इस वर्ष अंग्रेजी तारीख के अनुसार, 4 फरवरी 2014 को यह उत्सव है। यह पर्व ऋतुराज वसंत के आने की सूचना देता है। इस दिन से ही होरी तथा धमार गीत प्रारंभ किये जाते हैं। गेहूं तथा जौ की स्वर्णिम बालियां भगवान को अर्पित की जाती हैं। नर-नारी, बालक-बालिकाएं सभी वासंती एवं पीत वस्त्र धारण करते हैं। वसंत पंचमी को श्री पंचमी और श्री सरस्वती जयंती के नाम से भी जाना जाता है। भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और मां सरस्वती के पूजन से अभीष्ट कामनाएं सिद्ध हो कर स्थिर लक्ष्मी और विद्या-बुद्धि की प्राप्ति होती है। वसंत पंचमी के आगमन से शरीर में स्फूर्ति और चेतनाशक्ति जागृत होती है। बौराये आम वृक्षों पर मधुप (भौंरे) गुंजार करते हैं तथा कोयल की कूक मुखरित होने लगती है।

गुलाब, मालती आदि फूल खिल जाते हैं। मंद सुगंध वाली शीतल पवन बहने लगती है। इस ऋतु के प्रमुख देवता काम तथा रति हैं। अतः वसंत ऋतु कामोद्दीपक होता है। चरक संहिताकार का कथन है कि इस ऋतु में स्त्रियों तथा वनों का सेवन करना चाहिए। काम तथा रति की विशेष पूजा करनी चाहिए। वेद में कहा गया है कि ‘वसंते ब्राह्मण मुपनयीत‘। वेद अध्ययन का भी यही समय था। बालकों को इसी दिन विद्यालय में प्रवेश दिलाना चाहिए। केशर से कांसे की थाली में ‘ऊॅँ ऐं सरस्वत्यै नमः‘ मंत्र को नौ बार लिख कर थाली में गंगा जल डाल कर, जब लिखित मंत्र पूर्णतया गंगा जल में घुल जाय, तो उस जल को मंद बुद्धि बालक को पिला देने से उसकी बुद्धि प्रखर होती है। माघ शुक्ल पंचमी को उत्तम वेदी पर नवीन पीत वस्त्र बिछा कर अक्षतों का अष्टदल कमल बनाएं। उसके अग्रभाग में गणेश जी और पृष्ठ भाग में ‘वसंत‘- जौ, गेहूं की बाल का पुंज (जो जल पूर्ण कलश में डंठल सहित रख कर बनाया जाता है) स्थापित कर सर्वप्रथम गणेश जी का पूजन करें। पुनः उक्त पुंज में रति और कामदेव का पूजन करें।

उन पर पुष्प से अबीर आदि के छींटे लगा कर वसंत सदृश बनाएं। तत्पश्चात् ‘शुभा रतिः प्रकर्तव्या वसंतोज्ज्व्ल भूषणा। नृत्यमाना शुभा देवी समस्ताभरणैर्युता।। वीणावादनशीला च मदकर्पूर चर्चिता।।‘ से ‘रति‘ का और कामदेवस्तु कर्तव्यों रूपेणाप्रतिमों भुवि। अष्टबाहुः स कर्तव्यः शंखपद्म विभूषणः।। चापबाण करश्चैव मदादचिंत लोचनः। चतस्त्रस्तस्य कर्तव्याः पत्न्यो रूपमनोहराः। चत्वारश्च करास्त्तस्य कार्या भार्यास्त्तनोपगाः।। केतुश्च मकरः कार्यः पंचबाण मुखो महान्। मंत्र से कामदेव का ध्यान करके विविध प्रकार के फल, पुष्प और पत्रादि समर्पण करें, तो गृहस्थ जीवन सुखमय हो कर प्रत्येक कार्य में उत्साह प्राप्त होता है। वसंत ऋतु रसों की खान है और इस ऋतु में वह दिव्य रस उत्पन्न होता है, जो जड़-चेतन को उन्मत्त करता है। इसकी कथा इस प्रकार है: भगवान विष्णु की आज्ञा से प्रजापति ब्रह्मा ने सृष्टि रचना की। स्वयं द्वारा सृष्टि रचना कौशल को जब इस संसार में ब्रह्मा जी ने नयन भर के देखा, तो चहुं ओर सुनसान निर्जनता ही दिखायी दी। उदासी से संपूर्ण वातावरण मूक सा हो गया था, जैसे किसी की वाणी ही न हो। इस दृश्य को देखकर ब्रह्मा जी ने उदासी तथा सूनेपन को दूर करने हेतु अपने कमंडल से जल छिड़का।

उन जल कणों के पड़ते ही वृक्षों से एक शक्ति उत्पन्न हुई, जो दोनों हाथों से वीणा बजा रही थी तथा दो हाथों में क्रमशः पुस्तक तथा माला धारण किये थी। ब्रह्मा जी ने उस देवी से वीणा बजा कर संसार की उदासी, निर्जनता, मूकता को दूर करने को कहा। तब उस देवी ने वीणा के मधुर-मधुर नाद (ध्वनि) से सब जीवों को वाणी प्रदान की। इसी लिए उस अचिंत्य रूप लावण्य की देवी को सरस्वती कहा गया। यह देवी विद्या-बुद्धि देने वाली है। अतः इस दिन ‘ऊॅँ वीणा पुस्तक धारिण्यै श्रीसरस्वत्यै नमः‘ इस नाम मंत्र से गंधादि उपचारों द्वारा पूजन करें।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.