गठिया (जोड़ो का दर्द) आचार्य अविनाश सिंह अनेक प्रकार की वात व्याधियों में गठिया काफी विषम रोग है जिसकी चिकित्सा कठिन तो है लेकिन दुएसाध्य नहीं है। इस लेख में कुछ ऐसे दिशानिर्देश हैं जो बीमारी के आगाज से पूर्व अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं। गठिया या आमवात रोग जोड़ों के दर्द से संबंधित है, जो वर्तमान में युवाओं को भी अपने घेरे में ले रहा है और युवावस्था में ही लोगों को होने लगा है। इस रोग से पीड़ित लोगों को दैनिक कामकाज में भी बहुत तकलीफ का सामना करना पड़ता है। आयुर्वेद के अनुसार हड्डी और जोड़ांे में संतुलित वायु का निवास होता है। वायु के असंतुलन से जोड़ भी प्रभावित होते हैं। अतः वायु गड़बड़ा जाने से जोड़ों की रचना में विकृति पैदा होती है। हड्डियों के बीच का जोड़ एक झिल्ली से बनी थैली में रहता है जिसे सायोवियल कोष या आर्टीक्युलेट कोष कहते हैं। जोड़ों की छोटी-छोटी रचनाएं इसी कोष में रहती हैं। हड्डियों के बीच घर्षण न हो, इसलिए जोड़ों में हड्डियों के किनारे लचीले और नर्म होते हैं। यहां पर एक प्रकार की नर्म हड्डियां रहती हैं जिन्हें कार्टीलेज या आर्टीक्युलेट कहते हैं जो हड्डियों को रगड़ खाने से बचाती है। पूरे जोड़ की घेरे हुए एक पतली झिल्ली होती है, जिसके कारण जोड़ की बनावट ठीक रहती है। इस झिल्ली से पारदर्शी, चिकना तरल पदार्थ उत्पन्न होता है जिसे सायनोवियल तरल कहते हें। संपूर्ण सायनोवियल कोष में यह तरल भरा रहता है। किसी भी बाह्य चोट से जोड़ को बचाने का काम यह तरल करता है। इस तरल के रहते जोड अपना काम ठीक ढंग से करता है। गठिया रोग का एक कारण शरीर में अधिक मात्रा में यूरिक एसिड का होना माना गया है। जब गुर्दो द्वारा यह कम मात्रा में विसर्जित होता है या मूत्र त्यागने की क्षमता कम हो जाती है तो मोनो सोडियम वाइयूरेट क्रिस्टल जोड़ों के उत्तकों में जमा होकर तेज उत्तेजना एवं प्रदाह उत्पन्न करने लगता है। तब प्रभावित भाग में रक्त-संचार असहनीय दर्द पैदा कर देता है। गठिया रोगियों का वजन अकसर ज्यादा होता है और वे देखने में स्वस्थ एवं प्रायः मांसाहारी और खाने-पीने के शौकीन होते हैं। भारी और तैलीय भोजन, मांस, मक्खन, घी और तेज मसाले, शारीरिक एवं मानसिक कार्य न करना, क्रोध, चिंता शराब का सेवन, पुरानी कब्ज आदि कारणों से जोड़ो में मानो सोडियम बाइयूरेट जमा होने से असहनीय पीड़ा होती है जिससे मानव गठिया रोग से पीड़ित होता है। रोग के लक्षण: गठिया रोग में निम्नलिखित लक्षण पाये जाते हैं। - जोड़ों की गांठों मंे सूजन। - जोड़ों में कट-कट सी आवाज होना। - पैर के अंगूठों में सूजन, सुबह सबेरे तेज पीड़ा। - हाथ-पैर के जोड़ो में सूजन और दर्द। - रात में तेज दर्द एवं दिन में आराम। - मूत्र कम और पीले रंग का आना। बचाव: गठिया रोग से बचने के लिए इसके कारणों पर ध्यान देना आवश्यक है। यह रोग अनुवाशिंक भी हो सकता है। इसलिए अगर परिवार में यह रोग है और एसिड ज्यादा बनता है तो मांस, मद्यपान, भारी भोजन इत्यादि की मात्रा कम कर दे एवं योग आसन तथा सही तरीके से नियमित व्यायाम करें। खुली हवा में सैर और संयमित पौष्टिक आहार अपनाएं, तो रोग से बचा जा सकता है। आयुर्वेदिक उपचार: आयुर्वेदिक में गठिया रोग के लिए कई प्रकार के उपचार हैं। कुछ जड़ी-बूटियों से बनी दवाइयों के सेवन से गठियां रोग में आराम होता है। इसके अतिरिक्त तेल मालिश एवं सेंक लेने से भी आराम होता है। इसमें कुछ उपचार इस प्रकार है। - कड़वे तेल में अजवायन और लहसुन जलाकर उस तेल की मालिश करने से बदन के जोड़ों के दर्द में आराम होता है। - मजीठ हरड़, बहेड़ा, आंवला, कुटकी, बच, नीम की छाल, दारू हल्दी, गिलोय, का काढ़ा पिएं। - असगंध के पत्ते तेल में चुपड़कर, गर्म करके दर्द के स्थान पर रखकर बांधे। इससे दर्द में आराम मिलता है। - काले तिल और पुराने गुड़ को बराबर मात्रा में मिलाकर खाएं। ऊपर से बकरी का दूध पीएं । - बड़ी इलायची तेजपात, दालचीनी, शतावर, गंगेरन, पुनर्नवा, असगंध, पीपर, रास्ना, सोंठ, गोखरू इन सबको गिलोय के रस में घोटकर गोली बनाकर, बकरी के दूध के साथ दो-दो गोली सुबह सबेरे खाने से गठिया रोग में आराम मिलता है। - मजीठ हरड़, बहेड़ा, आंवला, कुटकी, बच, नीम की छाल, दारू हल्दी गिलोय, का काढ़ा पीएं। - असगंध के पत्ते तेल में चुपड़कर, गर्म करके दर्द के स्थान पर रखकर बांधे इससे दर्द में आराम मिलता है। - लहसुन को दूध में उबालकर, खीर बनाकर खाने से गठिया रोग में आराम होता है। - शहद में अदरक का रस मिला कर पीने से जोड़ों के दर्द में आराम होता है। - सौठ, अखरोट और काले तिल एक, दो, चार के अनुपात में पीस कर सुबह-शाम गरम पानी से दस से पंद्रह ग्राम की मात्रा में सेवन करने से लाभ होता है। - गठिया के रोगी को भोजन से पहले आलू का रस दो-तीन चम्मच पीने से लाभ होता है। इससे यूरिक एसिड की मात्रा कम होने लगती है। - गठिया के रोगी को चुकंदर और सेव का सेवन करते रहना चाहिए। इससे यूरिक अम्ल की मात्रा नियंत्रण में रहती है। - सौंठ और काली मिर्च का काढ़ा बनाकर रोगी को सुबह-शाम चाय की तरह सेवन करना चाहिए। - अश्वगंधा चूर्ण तीन ग्राम एक गिलास दूध में उबालकर पियें। कुछ दिनों तक लगातार यह प्रयोग करने से लाभ होता है। - नागकेसर के तेल से मालिश करने से आराम होता है। - प्याज को सरसों के तेल में पका लें। इस तेल से मालिश करने से जोड़ों के दर्द में लाभ होता है। मेंहदी के पत्तो को पीसकर जोड़ों पर बांधने से आराम होता है।