राषटपति बनाम भारतीय संविधान
राषटपति बनाम भारतीय संविधान

राषटपति बनाम भारतीय संविधान  

व्यूस : 6970 | सितम्बर 2012
राष्ट्रपति बनाम भारतीय संविधान पं. अजय भाम्बी राष्ट्रपति पद देश का सर्वोच्च संवैधानिक पद होता है। इस बार प्रणव मुखर्जी जैसे दिग्गज नेता देश के 13वें राष्ट्रपति निर्वाचित हुए हैं। आने वाले 5 वर्ष का समय उनके लिए कैसा रहेगा, इसकी जानकारी विद्वान ज्योतिषी अजय भांबी ने उनकी जन्मकुंडली और शपथ ग्रहण काल की कुंडली का अध्ययन करके इस लेख के माध्यम से देने का प्रयास किया है। प्रणव मुखर्जी भारत के 13वें राष्ट्रपति बन गये और 13 नंबर को दुनिया में अषुभ माना जाता है। यूरोप और पष्चिम में ऐसे कई देष हैं जहां पर 13 नंबर का मतलब होता है दुर्भाग्य। इस नंबर का डर लोगों के सामूहिक अवचेतन मन पर इतना गहरा हो चुका है कि वहां पर 13 नंबर की बिल्डिंग्स नहीं होती, फ्लोर्स नहीं होते, यहां तक कि लोग 13 नंबर वाले घरों में नहीं रहते। लेकिन हमारे राष्ट्रपति 13 नंबर से भयभीत नहीं हैं। अभी कुछ दिन पूर्व दिये गये एक साक्षात्कार में इन्होंने बताया था कि मुझे तो इस नंबर से कोई डर नहीं लगता। वैसे भी राष्ट्रपति बनने से पूर्व 13 नंबर की कोठी में रहकर ही उन्होंने सारे मंत्री पद संभाले हैं। वैदिक अंक ज्योतिष के हिसाब से यदि 1 और 3 को जोड़ दिया जाये तो जोड़ 4 हो जाता है और 4 नंबर का अर्थ होता है कि व्यक्ति के जीवन में बहुत सारी महत्वपूर्ण घटनाएं अप्रत्याषित होती हैं और पूरा देष जानता है कि प्रणव मुखर्जी का राष्ट्रपति होना स्वयं में एक अप्रत्याषित घटना है। इनकी कुंडली के विष्लेषण से यह पता लगाने का प्रयास करते हैं कि अगले पांच सालों में किस तरह की अप्रत्याषित घटनाएं इनके राष्ट्रपति काल में घटने वाली हैं। इनके जन्म के समय पूर्वी क्षितिज पर कर्क लग्न उदित हो रहा था और ग्रह स्थिति इस प्रकार थी। केतु, प्लूटो-कर्क, नेप्च्यून-सिंह, मंगल-कन्या, था जिसने इनके व्यक्तित्व को काफी बदल भी दिया था। प्रणव दा से मेरी मुलाकात राजीव गांधी की मृत्यु के बाद एक सामान्य मित्र के घर पर हुई। जहां इन्होंने मुझे अपनी कुंडली पढ़ने को दी। राजीव गांधी की मृत्यु के समय तक प्रणव दा राजीव गांधी के काफी करीब हो गये थे लेकिन उनकी मृत्यु के बाद सारी गणना फिर बदल गई और नये राजनैतिक वातावरण में सब कुछ अनिष्चित-सा हो गया। मैंने इनकी कंुडली का गहन अध्ययन किया। इनका कर्क लग्न है और उस समय बृहस्पति में षनि की दषा प्रारम्भ ही हुई थी। कर्क लग्न के लिए बृहस्पति कारक होता है और चतुर्थ भाव में बैठा हुआ था। षनि, अष्टम् भाव में षुक्र और बृहस्पति के साथ विराजमान है। कंुडली में बृहस्पति और षनि के बीच अच्छा तालमेल दिख रहा था लेकिन षनि की अष्टम् भाव में उपस्थिति अच्छे परिणाम की द्योतक तो होती है लेकिन षनि के बारे में एकाएक आष्वस्त होकर नहीं बोलना चाहिए। यह मैं जानता था। ऐसी स्थिति में सामुद्रिक षास्त्र रामबाण का काम करता है। मैंने दादा से कहा-अगर आप 10-15 कदम मुझे चलकर दिखाएं तो फिर मैं आपको पक्का बता दूंगा कि आपके भविष्य में क्या छुपा हुआ है? दादा एकदम तैयार हो गये और उन्होंने आगे पीछे चलना षुरू कर दिया। राष्ट्रपति पद देश का सर्वोच्च संवैधानिक पद होता है। इस बार प्रणव मुखर्जी जैसे दिग्गज नेता देश के 13वें राष्ट्रपति निर्वाचित हुए हैं। आने वाले 5 वर्ष का समय उनके लिए कैसा रहेगा, इसकी जानकारी विद्वान ज्योतिषी अजय भांबी ने उनकी जन्मकुंडली और शपथ ग्रहण काल की कुंडली का अध्ययन करके इस लेख के माध्यम से देने का प्रयास किया है। बृहस्पति -तुला, चन्द्रमा-धनु, सूर्य, राहू-मकर, बुध, षुक्र, षनि-कुम्भ और यूरेनस-मेष राषि में स्थित था। प्रणव मुखर्जी की कहानी भी कुछ-कुछ रंक से राजा होने जैसी है। प्रणव दा पष्चिम बंगाल के एक छोटे से गांव में पैदा हुए और इनको बहुत जल्दी जीवन में तरक्की मिली। इन्दिरा गांधी की सरकार में तो 1982 में ही ये वित्त मंत्री बन गये थे। इन्दिरा गांधी की मृत्यु के बाद जब इन्होंने अपने नंबर 2 होने की घोषणा की तो मानो पूरा दुर्भाग्य इनके पीछे हाथ धोकर पड़ गया। राजीव गांधी और कांग्रेस पार्टी ने इन्हें अस्पृष्य मानकर अपने से दूर हटा दिया। पार्टी के बड़े-बड़े दिग्गज इनसे मिलने से कतराते थे और वह समय इनके लिए बहुत ही मानसिक पीड़ा और त्रासदी का सामुद्रिक षास्त्र और ज्योतिष एक-दूसरे के पूरक हैं। सामुद्रिक षास्त्र के अनुसार व्यक्ति का पूरा षरीर न केवल उसके व्यक्तित्व के बारे में बताता है बल्कि भविष्य में क्या होने वाला है इसकी भी खबर देता है। किसी व्यक्ति के पांव जमीन पर कैसे पड़ते हैं और किस तरह से जमीन को पकडते हैं और छोड़ते हैं उससे व्यक्ति का भाग्य बताया जा सकता है। जैसे किसी व्यक्ति की एड़ी जमीन पर पहले पड़ती है और किसी का पंजा। कोई पैर की अंगुलियां जमीन पर गड़ाकर चलता है और कोई ठप से पैर पटककर कदम बढ़ाता निकल जाता है। जब मैंने दादा को जमीन पर चलते देखा और उनके पूरे पैर का ठीक से मुआयना किया तो मुझे समझते देर न लगी कि दादा का उत्तम समय प्रारम्भ होने वाला है। मैंने दादा से कहा कि आज से 90 दिन के भीतर आप मंत्री तो नहीं बनेंगे लेकिन मंत्री के समकक्ष हो जायेंगे और उसके बाद आसमानों को चीरते निकल जायेंगे। नरसिम्हा राव की सरकार बनने के तुरन्त बाद इन्हें प्लानिंग कमीषन का डिप्टी चेयरपर्सन बना दिया गया और बाकी इतिहास है। प्रणव दा, भारत के राष्ट्रपति उस समय बने हैं जब राजनैतिक वातावरण पूरी तरह अनिष्चितता लिए हुए है। इतने भ्रष्टाचारों के चलते कांग्रेस और यूपीए लगभग दिषाहीन लग रहे हैं। राहुल गांधी को अभी अपने नेतृत्व की परीक्षा देना बाकी है। बीजेपी और एनडीए स्वयं के बारे में आष्वस्त नहीं हैं। बीजेपी का धर्म-संकट तो यह भी है कि उनका हर षीर्ष नेता प्रधानमंत्री से कम कुछ बनने को राजी नहीं है। अन्ना हजारे, रामदेव और सिविल सोसाइटीज का आंदोलन भ्रष्टाचार के खिलाफ देष को कोई दिषा- निर्देष नहीं दे पाया है। इस तरह के अजीबोगरीब हालात में 2014 के चुनाव के परिणाम क्या होंगे, इसको जानने के लिए व्यक्ति को ज्योतिषी होने की जरूरत भी नहीं है। हमारी ज्योतिषीय गणना के अनुसार आने वाले वर्ष राष्ट्रपति के लिए बहुत ही उलझन भरे होंगे। राष्ट्रपति, संविधान का नेता होता है और उसे संविधान की परिधि में ही अपना कार्य करना पड़ता है। लेकिन यह भी तय है कि हर व्यक्ति अपनी बुद्धि के अनुसार संविधान की परिभाषा करने को पूरी तरह स्वतंत्र है। आने वाले वर्षों में यही होने वाला है। अपनी बात को सिद्ध करने के लिए हम राष्ट्रपति के षपथ ग्रहण समारोह की कुंडली का विष्लेषण कर रहे हैं। प्रणव मुखर्जी ने 25 जुलाई 2012 को 11ः30 बजे दिल्ली में राष्ट्रपति पद की षपथ ग्रहण की। पूर्वी क्षितिज पर उस समय कन्या लग्न उदय हो रहा था और ग्रह स्थिति निम्न थी- चन्द्र, मंगल, षनि-कन्या, राहू- वृष्चिक, प्लूटो-धनु, नेप्च्यून- कुम्भ, यूरेनस-मीन, बृहस्पति, षुक्र, केतु-वृष, सूर्य और बुध कर्क में विराजमान थे। मुझे याद आ रहा है कि जब ज्ञानी जैलसिंह ने राष्ट्रपति पद की षपथ ली थी उस समय भी ग्रह- स्थिति काफी विचित्र थी। बाद में देष ने देखा कि राजीव गांधी और जैलसिंह के मध्य एक लम्बे समय तक षीत युद्ध चलता रहा और ज्ञानी जैलसिंह ने कई बार उन्हें बर्खास्त करने का भी सोचा। इस दुनिया में इतिहास चाहे स्वयं को दोहराता हो लेकिन समय कभी नहीं दोहराता। इसलिए हम एक नई स्थिति की संभावनायें देख रहे हैं जो प्रणव मुखर्जी के कार्यकाल के दौरान आयेगी और यह उस स्थिति से बड़ी होगी जो ज्ञानी जैलसिंह ने देखी थी। यह एक अलग तरह का राष्ट्रीय संकट होगा। षपथ ग्रहण के समय कन्या लग्न है और वहां षनि, मंगल, चन्द्रमा उपस्थित हैं। षनि यहां पर छठे भाव का स्वामी है जो बताता है कि इनके कार्यकाल में संवैधानिक संकट पैदा होगा। मंगल, अष्टम् भाव का स्वामी होकर लग्न में विराजमान है जो दर्षाता है कि कुछ ऐसे संघर्षपूर्ण मुद्दे होंगे जिनके कारण देष में राजनीतिक अस्थिरता का वातावरण देखने को मिलेगा। यह स्थिति काफी भयावह होगी और 2013-2014 में दिखेगी। लग्न का स्वामी बुध, एकादष भाव में सूर्य के साथ विराजमान है लेकिन बुध यहां पर वक्री है। लग्न का स्वामी यहां पर राष्ट्रपति का प्रतिनिधित्व करता है जो बताता है कि राष्ट्रपति के पास सारा ज्ञान और षक्ति है जो ऐसी स्थिति में कारगर भी सिद्ध होती है लेकिन चूंकि बुध वक्री है इसलिए राष्ट्रपति के हाथ भी बंधे हुए हैं। यहां पर कुंडली के नवम् भाव का अतिषय महत्व है। कुंडली का नवम् भाव ज्ञान, प्रज्ञा, भाग्य और सामुहिक लोगों के ज्ञान को दर्षाता है। प्रणव मुखर्जी के कार्यकाल में एक ऐसी स्थिति आयेगी जहां पर उन्हें कुछ ऐसे निर्णय लेने पडेंगे जो इससे पहले कभी नहीं लिए गये। ऐसी स्थिति में वे देष के बौद्धिक लोगों से अपील करेंगे कि आप सब मिलकर इस संकट की घड़ी से देष को उबारें। प्रणव मुखर्जी इस कार्य में सफल होंगे और इनका नाम भारत के राजनीतिक इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जायेगा।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.