प्रेतात्माओं के शरीर ईथरिक व एस्ट्रल ऊर्जा से निर्मित होते हैं भारतीय संस्कृति के अनुसार प्रेत योनि के समकक्ष एक और योनि है जो एक प्रकार से प्रेत योनि ही है लेकिन प्रेत योनि से थोड़ा विशिष्ट होने के कारण उसे प्रेत योनि न कहकर पितृ योनि कहते हैं। प्रेतलोक के प्रथम दो स्तरों की मृतात्माएं पितृ योनि की आत्माएं कहलाती हैं। इसीलिए प्रेत लोक के प्रथम दो स्तरों को पितृ लोक की संज्ञा दी गयी है। यहां यह बतला देना आवश्यक है कि प्रेत शरीर की रचना में पच्चीस प्रतिशत फिजिकल एटम और पचहत्तर प्रतिशत इथरिक एटम होता है। इसी प्रकार पितृ शरीर के निर्माण में पच्चीस प्रतिशत ईथरिक एटम और पचहत्तर प्रतिशत एस्ट्रल एटम होता है। अगर ‘ईथरिक एटम’ सघन हो जाय तो प्रेतों का छाया चित्र लिया जा सकता है और इसी प्रकार यदि एस्ट्रल एटम सघन हो जाय तो पितरों का भी छाया चित्र लिया जा सकता है। लेकिन उसके लिए अत्यधिक सेन्सिेटिव फोटो प्लेट की आवश्यकता पड़ेगी और वैसे फोटो प्लेट के बनने की संभावना निकट भविष्य में नहीं है। वर्तमान में इसके लिए जो फोटो प्लेट बने हैं उनके ऊपर अभी केवल प्रयास करने पर ही प्रेतों के चित्र लिए जा सकते हैं। ईथरिक एटम की एक विशेषता यह है कि वह मनस को प्रभावित करता है और यही कारण है कि प्रेतात्माएं अपने मनस से अपने भाव शरीर को सघन कर लेती है और जहां चाहे वहां अपने आपको प्रकट कर देती हैं। जो अणु दूर दूर हैं वे मनस से सरककर समीप आ जाते हैं और भौतिक शरीर जैसी रूप रेखा उनसे बन जाती है। लेकिन अधिक समय तक वे एक दूसरे के निकट रह नहीं पाते। मनस के क्षीण होते ही वे फिर दूर-दूर जाते हैं और यही कारण है कि प्रेत छाया अधिक समय तक ठहर नहीं पाती, अदृश्य हो जाती है।