ऊपरी बाधा और ज्योतिषीय ग्रहयोग
ऊपरी बाधा और ज्योतिषीय ग्रहयोग

ऊपरी बाधा और ज्योतिषीय ग्रहयोग  

व्यूस : 9282 | सितम्बर 2012
ऊपरी बाधा और ज्योतिषीय ग्रहयोग प्रत्येक रोग के समान ही प्रेत बाधा भी अकारण नहीं होती। वस्तुतः ये आंतरिक और बाहृ कारण जीवन में अनेक रूपों में व्यक्त होते हैं और समुचित ज्योतिषीय योगों द्वारा व्यक्ति के प्रेत-बाधा से ग्रस्त होने के बारे में जाना जा सकता है। आइये जानें, ऐसे ज्योतिषीय योगों के बारे में। प्रेतबाधा के सूचक ज्योतिषीय योग इस प्रकार हैं - नीच राशि में स्थित राहु के साथ लग्नेश हो तथा सूर्य, शनि व अष्टमेश से दृष्ट हो। पंचम भाव में सूर्य तथा शनि हो, निर्बल चन्द्रमा सप्तम भाव में हो तथा बृहस्पति बारहवें भाव में हो। जन्म समय चन्द्रग्रहण हो और लग्न, पंचम तथा नवम भाव में पाप ग्रह हों तो जन्मकाल से ही पिशाच बाधा का भय होता है। षष्ठ भाव में पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट राहु तथा केतु की स्थिति भी पैशाचिक बाधा उत्पन्न करती है। लग्न में शनि, राहु की युति हो अथवा दोनों में से कोई भी एक ग्रह स्थित हो अथवा लग्नस्थ राहु पर शनि की दृष्टि हो। लग्नस्थ केतु पर कई पाप ग्रहों की दृष्टि हो। निर्बल चन्द्रमा शनि के साथ अष्टम में हो तो पिशाच, भूत-प्रेत, मशान आदि का भय। निर्बल चन्द्रमा षष्ठ अथवा बारहवें भाव में मंगल, राहु या केतु के साथ हो तो भी पिशाच भय। चर राशि (मेष, कर्क, तुला, मकर) के लग्न पर यदि षष्ठेश की दृष्टि हो। एकादश भाव में मंगल हो तथा नवम भाव में स्थिर राशि (वृष, सिंह, वृश्चिक, कुंभ) और सप्तम भाव में द्विस्वभाव राशि (मिथुन, कन्या, धनु, मीन) हो। लग्न भाव मंगल से दृष्ट हो तथा षष्ठेश, दशम, सप्तम या लग्न भाव में स्थित हों। मंगल यदि लग्नेश के साथ केंद्र या लग्न भाव में स्थित हो तथा छठे भाव का स्वामी लग्नस्थ हो। पापग्रहों से युक्त या दृष्ट केतु लग्नगत हो। शनि, राहु, केतु या मंगल में से कोई भी एक ग्रह सप्तम स्थान में हो। जब लग्न में चन्द्रमा के साथ राहु हो और त्रिकोण भावों में क्रूर ग्रह हों। अष्टम भाव में शनि के साथ निर्बल चन्द्रमा स्थित हो। राहु, शनि से युक्त होकर लग्न में स्थित हो। लग्नेश एवं राहु अपनी नीच राशि का होकर अष्टम भाव या अष्टमेश से संबंध करे। राहु नीच राशि का होकर अष्टम भाव में हो तथा लग्नेश, शनि के साथ द्वादश भाव में स्थित हो। द्वितीय में राहु, द्वादश में शनि, षष्ठ में चन्द्र तथा लग्नेश भी अशुभ भावों में हो। चन्द्रमा तथा राहु दोनों ही नीच राशि के होकर अष्टम भाव में हो। चतुर्थ भाव में उच्च का राहु हो, वक्री मंगल द्वादश भाव में हो तथा अमावस्या तिथि का जन्म हो। नीचस्थ सूर्य के साथ केतु हो तथा उस पर शनि की दृष्टि हो तथा लग्नेश भी नीच राशि का हो। जिन जातकों की कुण्डली में उपरोक्त योग हों, उन्हें विशेष सावधनीपूर्वक रहना चाहिए तथा संयमित जीवन शैली का आश्रय ग्रहण करना चाहिए। जिन बाह्य परिस्थितियों के कारण प्रेत बाधा का प्रकोप होता है उनसे विशेष रूप से बचें। जातक को प्रेतबाधा से मुक्त रखने में अधोलिखित उपाय भी सहायक सिद्ध हो सकते हैं - शारीरिक शुचिता के साथ-साथ मानसिक पवित्रता का भी ध्यान रखें। नित्य हनुमान चालीसा तथा बजरंग बाण का पाठ करें। मंगलवार का व्रत रखें तथा सुंदरकांड का पाठ करें। पुखराज रत्न से प्रेतात्माएँ दूर भागती हैं, अतः पुखराज रत्न धारण करें। घर में नित्य शंख बजाएँ। नित्य गायत्री मन्त्रं की एक माला का जाप करें। रामचरितमानस की चैपाई - ‘‘मामभिरक्षय रघुकुलनायक। धृत वर चाप रूचिर कर सायक।।’’ अथवा ‘‘प्रनवऊँ पवन कुमार खलबल पावक ग्यान धन। जासु हृदय आगार बसहिं राम सरचाप धर।।’’ से हवन सामग्री की 108 आहुतियां देकर इसे सिद्ध कर लें और आवश्यकता पड़ने पर तीन बार पढ़ें, सभी प्रकार की बुरी आत्माओं से रक्षा होती है। रक्षा-सूत्र अवश्य धारण करें।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.