ऊपरी बाधा निवारण एवं पंचमुखी हनुमान उपासना ऊपरी बाधा क्या, क्यों और कब? क्या?ः जीवन जितना सत्य है, उतनी ही मृत्यु भी और उतना ही सत्य है मृत्यु के बाद का जीवन। भारतीय चिन्तन धारा के मूल स्रोतों जैसे वेद, उपनिषद्, महाभारत आदि में इस विषय पर बड़ी ही विस्तृत चर्चा की गई है। मनुष्य मृत्युपर्यन्त आकाङ्क्षाओं के पीछे भागता रहता है और मृत्यु के बाद इन्हीं अधूरी इच्छाओं के कारण वह प्रेतयोनि को प्राप्त होता है। मानव की मृत्यु के बाद सूक्ष्म शरीर का इस पार्थिव शरीर से अलगाव हो जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि सूक्ष्म शरीर निराश्रय नहीं रह सकता- ‘न तिष्ठति निराश्रयं लिङ्गम्’’ अतः अगला स्थूल शरीर प्राप्त करने तक वह सूक्ष्म शरीर अपनी वासनाओं के अनुसार प्रेत शरीर को ग्रहण कर लेता है। इन्हीं प्रेत शरीरों द्वारा यदा-कदा मनुष्य को आवेशित कर लेने के कारण विकट परिस्थिति उत्पन्न हो जाती है और यही घटना प्रेतबाधा के नाम से जानी जाती है। ऐसा नहीं है कि केवल प्रेतात्माओं के द्वारा ही मनुष्यों को कष्ट पहुँचाया जाता है। कभी-कभी विभिन्न देव योनियाँ जैसे देव, यक्ष, किन्नर, गंधर्व, नागादि भी कुपित होकर कष्टकारक हो जाते हैं। व्यक्ति के शरीर के तापमान में अत्यधिक वृद्धि, उन्माद की अवस्था, शरीर के वजन में अधिक वृद्धि या कमी आदि अनेक ऐसे संकेत हैं जिनसे ऊपरी बाधा का प्रकोप प्रकट हो जाता है। क्यों?: एक बात तो स्पष्ट ही है कि दुर्बल, रोगी, कातर (डरपोक), आत्मबल से हीन तथा कमजोर इच्छाशक्ति वाले लोगों पर यह ऊपरी बाध प्रभाव अधिक होता हुआ देखा गया है। कभी-कभी दुष्ट तान्त्रिकों द्वारा भी धन के लालच में आकर निकृष्ट प्रेतात्माओं द्वारा मनुष्य को प्रेतबाधा से पीड़ित करने का दुष्कर्म किया जाता है। तीर्थ स्थलों तथा सिद्ध पीठों पर अपवित्र आचरण के कारण भी वहाँ उपस्थित दिव्यात्माएं क्रोधित होकर कभी-कभी कष्ट पहुँचाने लगती हैं। कब?: प्रेतात्माओं का आवेश विशेष रूप से दोपहर, सायंकाल तथा मध्यरात्रि के समय होता है। निर्जन स्थान, श्मशान, लंबे समय से खाली पड़े घर आदि भी प्रेतों के वासस्थान माने गए हैं इसलिए यहाँ जाने से बचें। स्त्रियों को बाल खुले रखने से बचना चाहिए विशेष रूप से सायंकाल में। छोटे बच्चों के अकेले रहने पर भी प्रेतों का आवेश हो जाता है। ऊपरी बाधा निवारण: जहाँ तक ऊपरी बाधा के निवारण का प्रश्न है हनुमान जी की उपासना इस समस्या से मुक्ति के लिए अत्यन्त श्रेष्ठ मानी गई है। प्रसिद्ध ही है - ‘‘भूत पिशाच निकट नहीं आवै। महावीर जब नाम सुनावै।’’ भूत-प्रेत-पिशाच आदि निकृष्ट अशरीरी आत्माओं से मुक्ति के उपायों पर जब हम दृष्टिपात करते हैं तो पाते हैं इनसे संबंधित मंत्रों का एक बड़ा भाग हनुमान जी को ही समर्पित है। ऊपरी बाधा दूर करने वाले शाबर मन्त्रों से लेकर वैदिक मन्त्रों में हनुमान जी का नाम बार-बार आता है। वैसे तो हनुमान जी के कई रूपों का वर्णन तंत्रशास्त्र में मिलता है जैसे - एकमुखी हनुमान, पंचमुखी हनुमान, सप्तमुखी हनुमान तथा एकादशमुखी हनुमान। परंतु ऊपरी बाधा निवारण की दृष्टि से पंचमुखी हनुमान की उपासना चमत्कारिक और शीघ्रफलदायक मानी गई है। पंचमुखी हनुमान जी के स्वरूप में वानर, सिंह, गरुड़, वराह तथा अश्व मुख सम्मिलित हैं और इनसे ये पाँचों मुख तंत्रशास्त्र की समस्त क्रियाओं यथा मारण, मोहन, उच्चाटन, वशीकरण आदि के साथ-साथ सभी प्रकार की ऊपरी बाधाओं को दूर करने में सिद्ध माने गए हैं। किसी भी प्रकार की ऊपरी बाधा होने की शंका होने पर पंचमुखी हनुमान यन्त्र तथा पंचमुखी हनुमान लाॅकेट को प्राणप्रतिष्ठित कर धारण करने से समस्या से शीघ्र ही मुक्ति मिल जाती है। प्राण-प्रतिष्ठा: पंचमुखी हनुमान जी की प्रतिमा या चित्र, यंत्र तथा लाॅकेट का पंचोपचार पूजन करें तथा उसके बाद समुचित विधि द्वारा उपरोक्त सामग्री को प्राणप्रतिष्ठित कर लें। प्राणप्रतिष्ठित यंत्र को पूजन स्थान पर रखें तथा लाॅकेट को धारण करें। उपरोक्त अनुष्ठान को किसी भी मंगलवार के दिन किया जा सकता है। उपरोक्त विधि अपने चमत्कारपूर्ण प्रभाव तथा अचूकता के लिए तंत्रशास्त्र में दीर्घकाल से प्रतिष्ठित है। श्रद्धापूर्वक किया गया उपरोक्त अनुष्ठान हर प्रकार की ऊपरी बाधा से मुक्ति प्रदान करता है।