भूत प्रेतादि पर विशेष जानकारी
भूत प्रेतादि पर विशेष जानकारी

भूत प्रेतादि पर विशेष जानकारी  

व्यूस : 20279 | सितम्बर 2012
भूत प्रेतादि पर विशेष जानकारी हम इसको कैसे पहचानें कि अमुक प्राणी किसी दोष से ग्रस्त है अथवा किसी अन्य रोग से- दोष परीक्षण द्वारा जानना मंत्र- अप्रतिचक्रे स्पष्ट विचक्राय स्वाहा।। विधि: उक्त मंत्र से सरसों के आठ दाने लेकर एक कटोरी में जल भरकर उसमें थोड़ा गंगाजल भी डाल दें, तब मंत्र से अभिमंत्रित करके उन दानों को कटोरी से निकालकर सुखा दें। सूखने पर धूप देकर उपरोक्त मंत्र से 108 बार जाप करें। यदि सरसों का एक दाना तिरे, तो समझो भूत दोष है। यदि 2 दाना तिरे तो क्षेत्रपाल दोष है। यदि 3 दाना तिरे तो शक्ति दोष है। यदि 4 दाना तिरे तो यंत्र दोष है। यदि 5 दाना तिरे तो अविनाश देवता का दोष है। 6 दाना तिरे तो शाकिनी, डाकिनी दोष है। यदि 7 दाना तिरे तो विन्ध वासिनी का दोष है। यदि 8 दाना तिरे तो अपने कुल देवता का दोष है। इस तरह से जो भी दोष पाया जाता है उसी का हम भुक्त भोगी का उपचार करते हैं और शीघ्र आराम हो जाता है। जिसके घर में प्रेत वाधा हो तथा कोई भी अतृप्त आत्मा भटकती हो, चाहे वह बदले की भावना से है अथवा किसी ने उसे इस स्थान पर छोड़ा है। तब वह विद्रोही आत्मा उपद्रव मचाती है, घर परिवार को दुःखी करने लगती है, तो इसका एक अचूक उपाय बता रहे हैं। देवी-दुर्गा के किसी योग्य भक्त को बैठाकर दुर्गासप्तशती के नौ पाठ कराएं। इसके पश्चात एक पाठ का विधि-विधान से ह्वन कराएं। पूर्णाहुति के समय लोहबान, गुग्गुल की धूनी, धूप, दीप से संपूर्ण घर में धुंआ कराएं व धूनी दें। धुंआ से घर को पूरी तरह भर दें व हवन की अग्नि से ऐसी आत्माएं जल जाने के भय से भाग खड़ी होती हैं तथा वह हमेशा के लिए घर छोड़ कर चली जाती हैं। हवन सामग्री चंदन का बुरादा, काले तिल, केसर, सफेद तिल, जौ, शुद्ध घी, शुद्ध शक्कर, लौंग-तगर, मोंथा, पंचमेवा, चावल, अष्टगंध, लोहबान यह हवन किसी योग्य पंडित अथवा भक्त से रात को कराना चाहिए। भय से मुक्ति के लिए अंजनीगर्भ संम्भूताय कपीन्द्र सचिवोक्तम रामप्रिय नमस्तुभ्यं हनुमन् रक्ष रक्ष सर्वदा इस मंत्र को सोने से पहले 11 बार पढ़कर तीन ताली बजाकर शयन करना चाहिए। भय समाप्त हो जाता है। प्रेतवाधा निवारण के लिए अनुष्ठान प्रनवऊं पवन कुमार खल विन पावक ज्ञानधन, जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर। इसका प्रतिदिन 11 माला का जाप 49 दिन तक करना चाहिए। हनुमान जी का चित्र अथवा मूर्ति के सामने बैठकर पंचोपचार से उनकी पूजा करें कम से कम सात शनिवार तक और प्रत्येक शनिवार को हनुमान चालीसा के एक सौ पाठ करना चाहिए। इस एक चैंसठ (64) यंत्र को भोजपत्र पर लाल चंदन से लिखकर व उसे मंडवाकर घर के सभी कमरों में टांग देना चाहिए। अलौकिक तामसिक शक्तियों के दर्शन जैसे भूत-प्रेत डाकिनी- शाकिनी, यक्ष-रक्ष पिशाचिनी आदि को देखने के लिए गंुजामूल को रविपुष्य योग में या मंगलवार के दिन शुद्ध शहद में घिसकर आंखों में अंजन की भांति लगाएं, तो आपके सम्मुख ये आसुरी शक्तियां नृत्य करते हुए दिखाई देंगी। यदि इसको कराने की विधि नहीं आती है तो यह क्रिया न करें। किसी भी सात्विक मनोरथ प्राप्ति के लिए मंगलवार के दिन हम यह अनुष्ठान प्रारंभ कर सकते हैं। यह अनुष्ठान 21 दिनों तक करना है। श्री हनुमान जी के चित्र के समक्ष अथवा मूर्ति के समक्ष बैठकर उपरोक्त मंत्र का 21 माला जाप प्रतिदिन आसन पर बैठकर मूंगे की माला से करना है। जहां पर भी पूजा करें, उस स्थान को फिर न बदलें। रात्रिकाल में शांतिमय वातावरण में जाप करें। ब्रह्मचर्य से रहें व 108 पŸाों पर लाल चंदन घिसकर उसमें गंगाजल मिलाकर लाल स्याही से राम राम लिखकर उसे श्री हनुमान जी को पहना दें और रोटी के चूरमा के लड्डू देशी घी व शक्कर मिलाकर भोग लेगा दें तथा दूसरे दिन यह प्रसाद बांट दें व स्वयं भी सेवन करें। इस प्रकार हम सभी देवी देवताओं की शक्तियों का समावेश अपने अंदर कर सकते हैं। जब आपके अंदर देवी शक्ति होगी होगी तो आसुरी शक्तियां स्वयं उस प्राणी को देखते ही भाग खड़ी होती हैं।



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