चमत्कारी प्रयोगेगेग डाॅ. निर्मल कोठारी आज हर व्यक्ति किसी न किसी समस्या से ग्रस्त है। वह उस समस्या से मुक्ति तो चाहता है किंतु उपाय की उचित जानकारी के अभाव में मुक्त हो नहीं पाता। यहां हनुमान जी से संबद्ध अनुभूत उपाय का विवरण प्रस्तुत है जिसे अपना कर कोई भी व्यक्ति समस्या से मुक्ति प्राप्त कर सकता है। इस प्रयोग का अनुष्ठान करने से पूर्व निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए। किसी मास में शुक्ल पक्ष के मंगलवार को यह अनुष्ठान शुरू करें। किंतु ध्यान रहे, उस दिन रिक्ता तिथियां नहीं हों। साधक की राशि से भाव 4, 8 या 12 में चंद्र नहीं हो। जननाशौच या मरणाशौच में भी यह अनुष्ठान नहीं करना चाहिए। प्रयोग के समय क्षौरादि कर्म का त्याग एवं सात्विक आहार के साथ ब्रह्मचर्य का पालन भी अनिवार्य है। साधक को भोजन एक ही समय करना चाहिए। संकल्पित कार्य की सिद्धि यदि प्रयोग काल के बीच में ही हो जाए तो भी प्रयोग को पूरा करना चाहिए। अन्यथा नुकसान होने की संभावना रहती है। प्रयोग विधि प्रयोग प्रारंभ करने से पहले दिन सोमवार को सवा पाव गुड़, एक छटांक भुने हुए चने और गाय का सवा पाव शुद्ध घी इकट्ठा कर लंे। गुड़ की 21 छोटी-छोटी डलियां बना लें, शेष यथावत रहने दें। घर के किसी ऊंचे स्थान को साफ और पवित्र कर उस पर तीनों वस्तुएं अर्थात् गुड़, चने और बŸाी सहित घी अलग-अलग रख दें। वहीं एक दीया सलाई, तीन छोटे पात्र आदि, जिनमें प्रतिदिन उपर्युक्त वस्तुएं ले जाई जा सकें, भी रख दें। इन सब के अतिरिक्त छन्नियां भी रख दें। यह प्रयोग श्री हनुमानजी के मंदिर में करना है, जो गांव या शहर से दूर एकांत या निर्जन स्थान में हो। मंदिर निवास स्थान से कम से कम 2-3 फर्लांग दूर होना जरूरी है। जिस मंगलवार से प्रयोग आरंभ करना हो, उस दिन ब्राह्म मुहूर्त में या सूर्योदय से पहले उठकर शौचादि से निवृत्त हो स्नान कर कपड़े पहनकर ललाट पर रोली-चंदन आदि लगाकर सबसे पहले वहां जाएं जहां तीनों पात्रों में गुड़, चने, बŸाी सहित घी रखे हैं। वहां रखी एक छन्नी में गुड़ की एक डली, 11 चने, घी सनी एक बŸाी और दीया सलाई को एक धुले हुए स्वच्छ पवित्र वस्त्र से ढक कर हनुमान जी के मंदिर ले जाएं। ध्यान रहे, श्री हनुमान जी की मूर्ति के सम्मुख पहंुचने तक पीछे, दाएं या बाएं घूमकर देखना नहीं है और छन्नी उठाने के बाद घर में, रास्ते में या मंदिर मंे किसी से एक शब्द बात भी नहीं करनी है। बिना जूता-चप्पल पहने श्री हनुमान जी के सम्मुख पहुंचकर बिना दाएं-बाएं देखे मौन धारण किए हुए ही पहले बŸाी जलाएं, फिर चने और गुड़ की डली हनुमान जी के समक्ष अर्पित कर साष्टांग प्रणाम कर हाथ जोड़ पूर्व संकल्पित अपनी मनोकामना की सिद्धि के लिए मन ही मन श्रद्धा, विश्वास एवं भक्तिपूर्वक उनसे प्रार्थना करें। फिर यदि कोई अन्य प्रार्थना या स्तुति, हनुमान चालीसा आदि का पाठ करना चाहें, तो मौन ही रहकर करें। वापसी में मूर्ति के सामने से हटने के बाद जब तक अपने घर पहुंचकर वह खाली पात्र निश्चित स्थान पर न रख दें, तब तक पीछे, दाएं या बाएं घूमकर न देखें और न ही किसी से एक शब्द बात करें। फिर छन्नी रखकर सात बार ‘राम-राम’ कहकर मौन भंग करें। इसी क्रम एवं नियम से 21 दिन तक लगातार प्रयोग करते रहें। रात्रि में सोते समय हनुमान चालीसा का 11 बार पाठ करके अपनी मनोकामना सिद्धि के लिए प्रार्थना अवश्य करें। बाइसवें दिन मंगलवार को नित्यकर्म से निवृत्त होकर सवा सेर आटे का एक रोट बनाकर गोबर की अग्नि में संेककर पका लें। यदि असुविधा हो तो पाव-पाव की 5 रोटियां बनाकर उनमें आवश्यकतानुसार गाय का शुद्ध घी और अच्छा गुड़ मिलाकर उनका चूरमा बना लें। 21 डलियों के बाद जो गुड़ बचा हो उसे चूरमे में मिला दें। फिर चूरमे को थाली में रखकर बचे हुए सारे चने तथा शेष घी सहित रखी अंतिम बŸाी लेकर प्रतिदिन की तरह मंदिर में जाएं और बŸाी जलाकर श्री हनुमान जी को चने और चूरमे का भोग लगाकर उसी प्रकार घर वापस आएं और घर में प्रवेश के बाद ही मौन भंग करें। साधक उस दिन दोनों समय केवल चूरमे का भोजन करें। शेष चूरमे को प्रसाद रूप में बांट दें। श्रद्धा और निष्ठापूर्वक यह अनुष्ठान करने से हनुमान जी की कृपा और वांछित फल की प्राप्ति होती है। किसी कारणवश प्रयोग में भूल भी हो जाए तो निराश न हांे, उसे फिर से करें।