शनि के कन्या राशि में गोचर का फल पं. सुनील जोशी जुन्नरकर शनि एक राशि में लगभग ढाई वर्ष रहता है। इस प्रकार भचक्र की 12 राशियों को पार करने में उसे लगभग 30 वर्ष का समय लग जाता है। इसी मंथर गति के कारण सूर्य पुत्र शनि 30 वर्ष पश्चात 09 सितंबर 2009 को भारतीय समयानुसार मध्य रात्रि को ठीक 12 बजे सिंह राशि को त्यागकर कन्या राशि में प्रवेश करेगा। शनि बुध से साम्यता रखता है और शनि से बुध मैत्री भाव रखता है। मित्र और सौम्य राशि कन्या में शनि का गोचर पृथ्वी और पृथ्वी वासियों को 50 प्रतिशत शुभफल देगा। मेदिनी संहिता में कहा गया है- ‘‘कन्यायां सूर्यपुत्रे सकलजनसुखं संग्रह सर्वधान्यम्।’’ खरीफ की फसल दाल, चावन आदि का उत्पादन अच्छा होगा जिससे इनका भंडारण हो सकेगा। खाद्य पदार्थों की कीमतें गिरने से महंगाई पर कुछ रोक लगेगी तथा देश की अर्थव्यवस्था में सुधार होगा जिससे देश की जनता को सुख-शांति की अनुभूति होगी। महिलाओं के विकास की योजनाए बनंेगी और कार्यान्वित होंगी। फलतः स्त्रियां तेजी से उन्नति करेंगी। स्वतंत्र भारत की जन्मराशि कर्क से शनि का भ्रमण तृतीय स्थान में होगा। इससे देश के पराक्रम में वृद्धि होगी तथा आर्थिक मंदी से उबरने के लिए सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों का अच्छा प्रतिफल मिलेगा। शनि के कन्या राशि में प्रवेश करते ही देश के प्रधानमंत्री पर प्रभावी साढ़ेसाती समाप्त हो जाएगी, जिससे वे रोगमुक्त होंगे। प्रधानमंत्री की नीतियां सफल होंगी और उनका यश बढ़ेगा। वह पहले से ज्यादा बेहतर ढंग से काम करेंगे। अगले वर्ष 13 जनवरी से शनि कन्या राशि में वक्री होगा जिसके फलस्वरूप आतंकवाद, माओवादी हिंसा और दुर्भिक्ष में वृद्धि होगी। तुला राशि के जातक साढ़े सात, कन्या के पांच और सिंह, मिथुन तथा कुंभ राशि के जातक ढाई वर्ष तक शनि के गोचरीय प्रभाव में रहेंगे। ग्रहों के गोचरीय भ्रमण में मनुष्य जाति पर शनि का सर्वाधिक प्रभाव दिखाई देता है। गोचर गणना के अनुसार जन्म राशि से जब शनि भाव 12, 1 या 2 में होता है तब उन राशियों वाले जातक शनि की साढ़ेसाती से प्रभावित होते हैं। शास्त्रों में इसे बृहत् कल्याणी कहा गया है। जब गोचर भ्रमण में जन्म राशि से शनि भाव 4 या 8 में होता है, तब उन राशियों वाले जातक ढैया से प्रभावित होते हैं। इसे लघु कल्याणी या कंटकी कहते हैं। इस वर्ष 09 सितंबर को गोचर करता हुआ शनि जब कन्या राशि में आएगा तो कर्क राशि पर चल रही साढ़ेसाती तथा वृष और मकर राशि पर चल रही ढैया समाप्त हो जाएगी। मिथुन एवं कुंभ राशि के जातकों पर शनि की ढैया, तुला राशि वालों पर साढ़ेसाती शनि की प्रथम, कन्या राशि वालों पर दूसरी और सिंह राशि वालों पर तीसरी और अंतिम ढैया प्रारंभ होगी। परिश्रम का कारक और स्त्री एवं स्वयं के लिए कष्टदायक सिद्ध होगी। तुला राशि वालों पर आरंभ होने वाल साढ़ेसाती शनि की पहली ढैया धनदायक सिद्ध होगी। इस दौरान जातक को अचानक आर्थिक लाभ होगा, शारीरिक और मानसिक सुख की प्राप्ति होगी तथा स्वयं के शुभ कार्य बनेंगे किंतु संतान और स्त्री के कार्य की चिंता रहेगी। मिथुन राशि वालों पर प्रभावी ढैया मानसिक चिंता, परिवार जनों के विरोध आर्थिक हानि आदि का कारक सिद्ध होगी। साथ ही यह योग जातकों के स्वभाव में क्रोध की वृद्धि भी करेगी। कुंभ राशि वालों पर प्रभावी ढैया शुभ सिद्ध होगी। जातकों को आर्थिक समृद्धि, भूमि, एवं मानसिक सुख आदि की प्राप्ति होगी और संतान के कार्य सफल होंगे। मेष और वृश्चिक राशियों पर प्रभावी ढैया अशुभ होगी। इन राशियों के जातकों को चिंताजनक स्थितियों का सामना करना पड़ेगा। धनु तथा मीन राशियों के लोगों के लिए उन पर प्रभावी ढैया शुभ होगी। उनके घर शुभ कार्यों का संपादन होग। कर्क और कुंभ राशियों प्रभावी ढैया लक्ष्मीदायक सिद्ध होगी। जातकों को समृद्धि की प्राप्ति होगी। वृष और मकर के लिए यह योग कष्टदायक रहेगा। जातकों को अनेक प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ेगा। कन्या राशि में शनि का भ्रमण। सिंह राशि की उतरती साढ़ेसाती धनदायक, शुभफलकारी, व्यापार में उन्नतिकारक होगी और धन और यश की प्राप्ति करा कर जाएगी। कन्या राशि पर प्रभावी दूसरी ढैया मानसिक चिंता, शारीरिक पीड़ा और साढ़ेसाती में शनि का वास और उसका फल वास स्थान समयावधि निवास का फल मुख 3 माह 10 दिन हानिप्रद दाहिनी भुजा 1 वर्ष 1 माह, 10 दिन विजय, उत्साह दाहिना पैर 10 माह भ्रमण बायां पैर 10 माह भ्रमण हृदय 1 वर्ष 4 माह 20 दिन धन-संपत्ति की प्राप्ति बाईं भुजा 1 वर्ष 1 माह 10 दिन पीड़ा मस्तिष्क 10 माह शांति और सुख की प्राप्ति बायां नेत्र 3 माह 10 दिन शुभ फल की प्राप्ति दायां नेत्र 3 माह 10 दिन शुभ फल की प्राप्ति गुदा 6 माह 20 दिन चिंता, विकार, पीड़ा दिनांक 12 अगस्त से 17 दिसंबर 2009 तक शनि उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में रहेगा। जन्म नक्षत्रानुसार उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में शनि के गोचर का फल निम्नवत रहेगा। जन्म नक्षत्र वास स्थान फल अश्विनी, भरणी, कृत्तिका बाईं भुजा लाभ रोहिणी, मृगशिरा, आद्र्रा बायां पैर नाश पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा दाहिना पैर प्रवास मघा, पू.फा., उ.फा., हस्त दाहिनी भुजा सौख्य चित्रा चेहरा सुख स्वाति, विशाखा पीठ भय अनुराधा, ज्येष्ठा नेत्र सुख मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा सिर विजय श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा कुक्षि विलास पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद कुक्षि विलास रेवती बाईं भुजा लाभ