हाथों में हनुमान समाए फिर शनि से क्यों भय खाए
हाथों में हनुमान समाए फिर शनि से क्यों भय खाए

हाथों में हनुमान समाए फिर शनि से क्यों भय खाए  

व्यूस : 9802 | सितम्बर 2009
हाथों में हनुमान समाए फिर शनि से क्यों भय खाए भारती आनंद जब हम हाथ की रेखाओं में ग्रहों का विश्लेषण करते हैं तो बल, बुद्धि, विद्या के प्रदाता मंगल ग्रह का विशेष विचार करते हैं। हनुमान जी को मंगल का ही दूसरा रूप माना जाता है। हनुमान जी की शक्ति, बुद्धि, कर्मशीलता और स्वामिभक्ति से सभी भलीभांति परिचित हैं। भगवान राम के नाम की शक्ति के बल पर अपनी वानर सेना के साथ मिलकर समुद्र पर पुल बांधने जैसा अद्भुत कार्य करने का श्रेय पवनपुत्र हनुमान जी को ही है। यदि किसी व्यक्ति के हाथ में मंगल का चिह्न अर्थात हनुमान का चिह्न हो तो शनि की साढ़ेसाती व ढैया दशाएं भी उसका कुछ अनर्थ नहीं कर सकती हंै। हाथ को प्रकाशयुक्त कमरे में लेंस के नीचे रखकर ध्यान से देखें। यदि हाथ में जीवन रेखा के साथ मंगल रेखा एक से अधिक अर्थात् पहली बड़ी दूसरी, छोटी, तीसरी उससे से भी छोटी हों तो यह हनुमान रेखा (मंगल रेखा) कहलाती है। यदि मंगल ग्रह उठा हुआ हो, तो व्यक्ति के जीवन में हनुमान जी की बहुत कृपा होती है। द्वितीय मंगल पर यदि मस्तिष्क रेखा द्विभाजित हो, मंगल उठा हुआ हो, वहां रेखाओं का जाल न हो, हाथ भारी हो, उंगलियां सीधी हों, खासकर शनि की उंगली मुड़ी या तिरछी न हो और न ही गुरु या सूर्य ग्रह पर झुक रही हो तो व्यक्ति पर शनि की महादशा, अंतर्दशा या साढ़ेसाती अथवा ढैया का कुप्रभाव नहीं पड़ता। जीवन रेखा के साथ मंगल रेखा साफ सुथरी हो, उसे राहु रेखा न काटती हो व मंगल पर शंख का चिह्न हो तो व्यक्ति को हनुमान जी की विशेष कृपा की प्राप्ति होती है। शनि ग्रह के नीचे यदि हृदय रेखा स्पष्ट हो और उस पर कमल या त्रिभुज स्पष्ट रूप से दिखाई देता हो, तो जातक हनुमान जी का उपासक होता है। उस पर हनुमान जी की विशेष कृपा होती है और उसे शनि नहीं सताते। यदि हृदय रेखा में शनि के नीचे और हृदय रेखा के ऊपर तीन सीधी रेखाएं बनती हों, शनि की उंगली सीधी हो और उसका आधार बराबर हो, मंगल ग्रह दोनों हाथों में उभार लिए हो, तो जातक पर हनुमान जी की विशेष कृपा होती है। उसके शत्रु उसका कुछ भी बिगाड़ नहीं पाते। हनुमान की कृपा से वह अपार धन-संपत्ति का स्वामी होता है और उसका मन शांत रहता है। कहते हैं, यह रेखा उन्हीं लोगों के हाथों में होती है जो जन्मजन्मांतर से हनुमान जी के भक्त होते हैं और जिन्होंने हनुमान जी के मंदिर का निर्माण किया हो। भाग्य रेखा का शनि ग्रह से निकलकर मणिबंध तक जाना और शनि ग्रह के नीचे त्रिशूल सा बन जाना भी हनुमान चिह्न माना जाता है। इस चिह्न से युक्त जातक पर हनुमान जी की विशेष कृपा होती है। जिज्ञासा उठ सकती है कि शुभ मंगल शनि की क्रूर दृष्टि से अपने भक्तों की रक्षा किस प्रकार करते हैं। यहां यह स्पष्ट कर देना उचित है कि शनि भले ही अपनी क्रूर दृष्टि से जातक को उसके दुष्कर्मों की सजा दे, यदि वह हनुमान का भक्त हो तो मंगल उसकी रक्षा करते हैं। शनि के पिता सूर्य हनुमान जी के गुरु हैं। इसलिए हनुमान जी शनि को अपना गुरु भ्राता मानते हैं। इसके अतिरिक्त अनेक कठिन परिस्थितियों में उन्होंने शनि की रक्षा की थी। ब्रह्मा जी से न्याय कार्य प्राप्त करने के बाद जब शनि रावण पर प्रभावी साढ़ेसाती के समय उसे उसका फल देने गए तो सर्वशक्तिमान रावण ने अपने तंत्र-ज्ञान के बल पर अन्य ग्रहों की भांति उन्हें भी रस्सियों से बांध लिया। तब हनुमान जी ने अपनी तंत्र-शक्ति के बल पर सभी ग्रहों के साथ शनि देव को भी मुक्त कराया था और उनके जख्मों पर सरसों के तेल का लेप किया था। तब शनि ने हनुमान जी को वचन दिया था कि कलियुग में साढ़ेसाती या ढैया से प्रभावित होते हुए भी यदि कोई जातक महावीर हनुमान की श्रद्धा व निष्ठापूर्वक पूजा अर्चना करेगा उसे वह किसी भी तरह का कष्ट नहीं पहुंचाएंगे। शनि ने यह भी कहा कि जो जातक उनकी पूजा अर्चना शनिवार के अतिरिक्त मंगलवार को भी करेगा उसे शनिवार की पूजा के सभी शुभ फल मिलेंगे। तभी से शनि देव हनुमान जी के भक्तों पर विशेष कृपा रखते हैं। शनिदेव के साथ-साथ अन्य ग्रह भी हनुमान जी के प्रभाव में रहते हैं क्योंकि ग्रहों के राजा सूर्य देव ने हनुमान को भगवान शंकर, विष्णु और वासुदेव कृष्ण का रूप माना है। ये सभी ग्रह हनुमान जी को सदा नमन करते हैं। केतु पर मंगल की विशेष कृपा रहती है। राहु हनुमान जी के नाम से ही कांप जाते हैं। ऐसे सर्वशक्तिमान हनुमान जी को अपनी हस्त रेखाओं में जाग्रत करने और उनसे मन चाहे फल पाने के लिए किसी हस्तरेखा विशेषज्ञ की सलाह लेकर तदनुरूप उपाय करें, वांछित फल की प्राप्ति होगी।



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