रामायण के असली नायक हनुमान शाम ढींगरा तुम्हारे बिना त्रेता युग में मेरा यह अवतार अधूरा है। यह सत्य है कि जो कार्य तुमने किया है, और कोई नहीं कर सकता। तुम शक्ति और बुद्धि के पुंज हो। तुम्हें समस्त सृष्टि को अपने में धारण करने वाले विराट स्वरूप की प्रतिमा मानकर समस्त ग्रहों ने जो तुम्हारी वंदना की है वह उचित ही है। मैं भी उनका समर्थक हूं। तुमने हर पल हर संकट का सामना करने में मेरी मदद की है - चाहे लक्ष्मण को उनकी मूच्र्छितावस्था से मुक्त करने के लिए संजीवनी बूटी और वैद्यराज सुषेण को लाने का कार्य हो, लंका जाकर सीता की खबर लानी हो या रावण का दर्प दलन करने के लिए लंका को जलाना हो। मेरे ही नाम की शक्ति का मुझसे बेहतर उपयोग करते हुए समुद्र पर तुमने जो पुल बंाधा है, उसकी तो कल्पना भी कोई नहीं कर सकता था। जब अहिरावण मुझे और लक्ष्मण का हरण कर पाताल में देवी के सम्मुख हमारी बलि देने की तैयारी कर रह था, तब तुम्हीं ने अपने बल और कौशल से हमें उससे मुक्त करवाया था। इस प्रकार तुम ने हमारे प्राणों की रक्षा की थी और प्राण रक्षक जिसकी रक्षा करता है उसके स्वामी होने का अधिकार रखता है। तुम मुझे अपना स्वामी और स्वयं को मेरा सेवक कहते हो। ठीक यही विचार मेरा भी है क्योंकि मैं मानता हूं कि तुम मेरे स्वामी हो और मैं तुम्हारा सेवक हूं।’ प्रभु राम से ऐसी बातें सुनकर हनुमान जी ने दोनों हाथों से अपने कानों को बंद कर लिया तो प्रभु राम ने उन्हें अपने सीने से लगा लिया और कहा- ’हे हनुमान! तुम मेरे ही नहीं सारे जगत के संकट मोचक हो। त्रेता युग में जो तुमने मेरा साथ दिया है, उसकी महिमा युगों-युगों तक गाई जाएगी। कलियुग में सबसे अधिक अगर किसी की पूजा अर्चना होगी, तो वह हनुमान की होगी।’ भगवान राम के ये वचन कलियुग में चरितार्थ हो रहे हैं। आज सबसे अधिक मंदिर हनुमान जी के हैं और सबसे अधिक पूजा अर्चना उन्हीं की होती है। बचपन से ही हनुमान कितने शक्तिशाली थे इसका परिचय उन्होंने सूर्य देव को अपने मुख में रखकर दिया था। उनके सूर्य को निगल लेने के बाद जब चारों ओर अंधियारा छा गया था तब उसे दूर करने और सूर्य को मुक्ति दिलाने के उद्देश्य से देवराज इंद्र ने बाल हनुमान पर बज्र से प्रहार किया। हनुमान जी ने उस बज्र को एक श्रेष्ठ खिलाड़ी की तरह ऐसे लपक लिया था जैसे कोई बच्चा किसी गेंद को लपक लेता है। हनुमान जी चाहते तो बज्र को तोड़कर उसका नामोनिशान भी मिटा सकते थे। परंतु उन्होंने महर्षि दधीचि की हड्डियों और देवराज इंद्र का मान रखते हुए उसे इंद्र की ओर उछाल दिया था। अंत में सभी देवी देवताओं के अनुरोध पर उन्होंने सूर्य देव को मुक्त कर दिया था। भगवान सूर्य का मानना है कि हनुमान जी भगवान शंकर के रूप हैं, लक्ष्मीपति नारायण हैं और भगवान राधा-कृष्ण भी हनुमान ही हैं। उन्होंने वामन रूप धरकर राक्षसों के राजा बली से 3 पग भूमि मांगी थी और जब उसने भूमि दे दी तो हनुमान जी ने विराट रूप धरकर दो पग में ही सारी सृष्टि को समाहित कर लिया और तीसरे पग में उनका चरण ब्रह्मांड को भेदकर ब्रह्म लोक में आ गया था। तब ब्रह्मा जी ने अत्यंत प्रेम से उस चरण का प्रक्षालन किया और जल को अपने कमंडल में भर लिया। कालांतर में वही जल भगवती गंगा के रूप में अवतरित हुआ। महाभारत काल में भी पांडवों में भीम को अपनी शक्ति पर बहुत अभिमान हो गया था। तब हनुमान जी बूढ़े का भेष धरकर उनके रास्ते में लेट गए थे। भीम ने उनसे कहा- ‘हे वृद्ध वानर! मैं तुम्हारे ऊपर से नहीं गुजरना चाहता, इसलिए रास्ता दे दो।’ हनुमान जी ने कहा- ‘तुम तो बहुत बलशाली हो। मुझे उठाकर रास्ते से अलग कर दो।’ भीम ने क्रुद्ध होकर उन्हें उठाकर फेंकने का मन बनाया। परंतु अपनी पूरी शक्ति लगाकर भी वह हनुमान जी की पूंछ तक नहीं हिला पाए। पसीने-पसीने होकर उन्होंने हनुमान जी के चरणों में अपना सिर रख दिया। तब हनुमान ने प्रकट होकर उन्हें ज्ञान दिया कि अभिमान पराजय का सबसे बड़ा कारण होता है। ऐसे पराक्रमी हनुमान हर युग में हर वर्ग के नायक थे और नायक रहेंगे।