दुर्भाग्य कारक है केमद्रुम योग रघुनाथ राम परिहार कुंडली में विद्यमान अषुभ योग जातक के जीवन की दषा और दिषा बदलने की सामथ्र्य रखते हैं। इन योगों का सही समय पर सही उपाय न हो, तो ये शुभ ग्रहों के शुभ प्रभाव को भी क्षीण कर सकते हैं। ऐसा ही एक अषुभ योग है केमद्रुम। अन्य अशुभ योगों की भांति ही इस योग की भी अपनी अलग विशेषता है जिसका संक्षिप्त विवरण यहां प्रस्तुत है। वृहत पराशर होरा शास्त्र के अनुसार चंद्र से प्रथम, द्वितीय या द्वादश भाव में या लग्न से केंद्र में सूर्य के अतिरिक्त कोई अन्य ग्रह न हो तो केमद्रुम योग होता है। इस योग में उत्पन्न जातक विद्या-बुद्धि से हीन और निर्धन होता है और हमेशा कठिनाइयों से घिरा रहता है। गर्ग के अनुसार केमद्रुम योग में उत्पन्न जातक निंदनीय आचरण करने वाला होता है और हमेशा परेशान तथा गरीबी से ग्रस्त रहता है। कोई राजकुमार भी यदि इस योग में जन्म ले तो एक नौकर या सेवक की तरह जीवन यापन करता है। जातक परिजात के अनुसार यदि किसी जन्मपत्रिका में केमद्रुम योग बनता है तो यह योग राजयोगों का नाश उसी प्रकार करता है जिस तरह एक सिंह हाथियों का नाश करता है। तात्पर्य यह कि यह एक परम अशुभ योग है। 1234567890123456789012345678901212345678901234567890123 1234567890123456789012345678901212345678901234567890123 12345678901234567890123456789012123456789012345678901234 12345678901234567890123456789012123456789012345678901234 जातक परिजात में उल्लिखित केमद्रुम योग निर्माण की कुछ प्रमुख स्थितियां इस प्रकार हैं। चंद्र लग्न या सप्तम भाव में स्थित हो एवं उस पर बृहस्पति की दृष्टि न हो। चंद्र सहित अन्य ग्रह अष्टक वर्ग में शुभ रेखाओं से रहित हांे एवं षडवर्ग में भी बलहीन हांे। चंद्र यदि पापी ग्रहों के साथ पापी ग्रहों की राशियों या पापी ग्रहों की राशि नवांश में हो। किसी पापी ग्रहों से युत चंद्र वृश्चिक राशि में हो एवं भाग्येश की उस पर दृष्टि हो। रात्रि में जन्म हो एवं दशमेश से दृष्ट हो या अमावस्या के निकट का चंद्र हो। जैमिनी के अनुसार लग्न से द्वितीय या अष्टम भाव में कोई पापी ग्रह स्थित हो या इन दोनों भावों में समान संख्या में पापी व शुभ ग्रह स्थित हों। उक्त दोनों भावों में से किसी में चंद्र के स्थित होने पर भी फल अति निकृष्ट होता है। केमद्रुम योग के बारे में प्राचीन ग्रंथों में अलग अलग मत हैं, लेकिन सभी का फल समान बताया गया है। अर्थात यह योग जातक के लिए साधारणतया अत्यंत अशुभ होता है। किंतु कई बार ऐसा भी होता है कि कुंडली में इस योग के होने पर भी जातक को बहुत अधिक पीड़ा नहीं झेलनी पड़ती है। यहां उन ग्रह स्थितियों का विवरण प्रस्तुत है जिनसे यह योग कमजोर होता है। चंद्र पक्ष बली हो और जन्म रात्रि में चंद्र होरा में हुआ हो। शुक्ल पक्ष की षष्ठी से कृष्ण पक्ष की पंचमी तक चंद्र पक्ष बली होता है। चंद्र वृष राशि में स्थित हो और उस पर बृहस्पति की पूर्ण दृष्टि हो। चंद्र से केंद्र भाव में बृहस्पति स्थित हो। यहां युति के मानने पर केमद्रुम योग नहीं बनेगा अर्थात बृहस्पति भाव 4, 7 या 10 में हो। चंद्र पर धनेश व लाभेश की पूर्ण दृष्टि हो। चंद्र षडवर्ग बली हो एवं लग्नेश की इस पर दृष्टि हो। पूर्णिमा के आस-पास वाला चंद्र लग्न में हो एवं उस पर बृहस्पति की दृष्टि हो। चंद्र वर्गोत्तमी हो या अपने उच्च नवांश में स्थित हो और उस पर बृहस्पति की दृष्टि हो। चंद्र पर शुभ भावेश बृहस्पति की दृष्टि हो तो उसका फल भी उत्तम होगा। यहां केमद्रुम योग प्रभावित कुछ उदाहरण कुंडलियों का विश्लेषण प्रस्तुत है। कुंडली सं. 1 में चंद्र अष्टम भाव में स्थित है जहां कोई अन्य ग्रह नहीं है। सप्तम और नवम भाव में भी कोई ग्रह नहीं है। फलतः केमद्रुम योग निर्मित हो रहा है। जातक कठिन परिश्रम कर अपना एवं परिवार का निर्वाह कर रहा है। चंद्र पर बृहस्पति की स्वगृही दृष्टि है। धनकारक व पंचमेश होने के कारण बृहस्पति शुभ है। चंद्र व्ययेश होकर विपरीत राजयोग भी निर्मित कर रहा है। एकादश भाव में बुधादित्य योग भी शुभ है क्योंकि बुध लग्नेश सूर्य के साथ धनेश व लाभेश होकर स्थित है। जातक को धन की आय तो अच्छी है लेकिन पत्नी की अस्वस्थता के कारण धन का व्यय अधिक हो रहा है, फलस्वरूप धन संग्रह नहीं हो पा रहा है। चंद्र पत्नी भाव सप्तम से षष्ठेश होकर सप्तम से द्वितीय में है, यही कारण है कि पत्नी की बीमारी पर अधिक धन खर्च हो रहा है। कुंडली सं. 2 में चंद्र से भाव 1, 2 और 12 में कोई ग्रह न होने के कारण् केमद्रुम योग निर्मित हो रहा है। लेकिन चंद्र पर बृहस्पति की पूर्ण दृष्टि है। पूर्णिमा के आस-पास वाला चंद्र है (चंद्र कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा का है)। जन्म सोमवार की रात्रि का है, इसीलिए केमद्रुम योग कुछ कमजोर हो रहा है। फलतः जातक को कोई विशेष परेशानी उठानी नहीं पड़ रही है। चंद्र के अष्टमेश होने कारण वांछित धन की प्राप्ति नहीं हो पा रही, लेकिन जीवन सुव्यवस्थित है। कुंडली सं. 3 में केमद्रुम योग का निर्माण हो रहा है। कुंडली में चंद्र स्वराशि में स्थित है। स्वराशि के चंद्र पर धनेश व पंचमेश बृहस्पति की पूर्ण दृष्टि है। शुक्र के चंद्र से केंद्र में स्थित होने के कारण गजकेसरी योग भी निर्मित हो रहा है। लग्नेश मंगल उच्च राशि का होकर बृहस्पति के साथ स्थित है। जातक के जन्म के पश्चात पिता की उत्तरोत्तर प्रगति हो रही है। यहां चंद्र पिता भाव का स्वामी है। बृहस्पति नवम भाव से नवम, मंगल पंचम व दशम और शुक्र चतुर्थेश व लाभेश हैं। ये सारी ग्रह स्थितियां पिता के लिए शुभ हैं। फलस्वरूप पिता की उत्तरोत्तर प्रगति स्वाभाविक है। केमद्रुम योग के अशुभ प्रभाव को कम करने? हेतु शास्त्रीय उपाय चंद्र के बीज मंत्र या तांत्रिक मंत्र का दस माला जप नियमित रूप से करें। वर्ष में एक बार जप का दशांश हवन करें। दो मुखी, चार मुखी व पांच मुखी रुद्राक्षों को रुद्राक्ष मंत्रों से अभिमंत्रित कर लाॅकेट बनाकर धारण करें। बीसा यंत्र में मोती के साथ मूंगा या मोती के साथ पुखराज धारण करें। इस हेतु कुंडली में चंद्र पर दृष्टिकारक शुभ भावेश का चयन कर मूंगा व पुखराज में से किसी एक का चयन करें। सोमवार को व्रत रखें। रुद्राभिषेक करें। शिवलिंग का नित्य दर्शन व पूजन करें। अपने जन्म दिवस पर महामृत्युंजय मंत्र का सवा लाख बार जप करें या कराएं। त्रिशक्ति लाॅकेट धारण करें। लग्नेश, पंचमेश व भाग्येश के रत्नों से निर्मित लाॅकेट त्रिशक्ति लाॅकेट होता है।