ब्रह्मांड एवं सौर मंडल आचार्य अविनाश सिंह ज्योतिष वेदों का अभिन्न अंग है जिसकी संपूर्ण व सही जानकारी हेतु खगोलीय अवधारणों का ज्ञान होना अति आवश्यक है। ज्योतिष को तीन स्कंधों में बांटा गया है- सिद्धांत, संहिता व होरा। प्रथम स्कंध सिद्धांत गणित ज्योतिष है जो खगोलीय अवधारणाओं पर आधारित है। ये खगोलीय अवधारणाएं क्या हैं इसी का वर्णन इस धारावाहिक लेख में प्रस्तुत है। ब्रह्मांड: खगोल शास्त्र वह शास्त्र है जिसमें ब्रह्मांड में स्थित पिंडों का अध्ययन किया जाता है। ब्रह्मांड की उत्पत्ति कैसे हुई यह एक रहस्य ही है। लेकिन फिर भी मान्यता यह है कि लगभग डेढ़ खरब वर्ष पूर्व एक महा विस्फोट से इसकी उत्पत्ति हुई। ब्रह्मांड में कई आकाश गंगाएं हैं जिन में असंख्यं सितारे व ग्रह पिंड हैं। अर्थात आकाश गंगाएं अगणित सितारों और ग्रह पिंडों की पूंज हैं। हर सितारे का अपना एक मंडल है और हर मंडल सौर मंडल कहलाता है। सभी सितारे एवं ग्रह पिंड गतिशील है। यह गतिशीलता गुरुत्वाकर्षण के कारण होती है। सौर मंडल: सूर्य सौर मंडल का केंद्र है और सूर्य के इर्द-गिर्द ग्रह पिंड परिक्रमा करते हैं। इसे सूर्य का परिवार भी कहा जाता है। इसी तरह खगोल की हर आकाश गंगा में अनगिनत सितारों के अपने सौर मंडल हंै। सूर्य तो स्वयं प्रकाशवान है। लेकिन ग्रह पिंडों का प्रकाश नहीं होता। ये सभी ग्रह सूर्य के प्रकाश से ही प्रकाशित होते हैं। सूर्य के चारों ओर ये ग्रह अपनी-अपनी कक्षा में परिक्रमा (भ्रमण) करते हैं। हमारे सौर मंडल में सूर्य के इर्द-गिर्द भ्रमण करने वाले प्रमुख नौ ग्रह हैं। कुछ ग्रहों के प्राकृतिक उपग्रह भी हैं जो इन ग्रहों के चारों ओर परिक्रमा करते हैं। इसके अतिरिक्त सौर-मंडल के अन्य सदस्यों में क्षुद्र ग्रह या लघु ग्रह या एस्टेराॅयड, उल्का-पिंड, घूमकेतु और सौर आंधियां है। मुख्य नौ ग्रह हैं- बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, गुरु, शनि, यूरेनस, नैप्च्यून और प्लूटो। इन ग्रहों में से प्रथम छह ग्रह बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, गुरु और शनि की जानकारी मनुष्य को पहले से ही थी लेकिन खगोल शास्त्रियों ने अपनी खोज और अनुसंधानों के आधार पर वर्तमान काल में तीन अन्य ग्रहों को भी खोज निकाला। यूरेनस की खोज सन 1781 ई. में सर हर्षल ने की थी। इसलिए इसे हर्षल के नाम से भी जाना जाता है। नेप्च्यून की खोज सन् 1846 ई. में जान गाल व हेनरिच-द्रअरेस्ट ने की थी। प्लूटो की खोज सन् 1930 में क्लाइड टांबो ने की थी। पहले यह अवधारणा थी कि ब्रह्मांड के केंद्र में पृथ्वी है और सभी खगोलीय पिंड पृथ्वी के चारों ओर परिक्रमा करते हैं। परंतु आर्य भट्ट प्रथम ने छठी शताब्दी के प्रारंभ में पहली बार पृथ्वी के सूर्य की परिक्रमा में होने की बात कही। लेकिन ऐतिहासिक तौर पर इस खोज का श्रेय कापरनिकस (सन् 1543) ई. को दिया जाता है जिसने पृथ्वी के ब्रह्मांड का केंद्र होने के सिद्धांत को चुनौती दी। कापरनिेस का सभी धर्मों ने विरोध किया और उसके इस सिद्धांत को मानने से इंकार कर दिया। इसका सर्वाधिक विरोध रोमन कैथोलिक चर्च विरोध किया था। खगोल शास्त्री गैलीलियो ने कापर निकस के इस सिद्धांत का समर्थन किया इसलिए उन्हें अपने जीवन के अंतिम वर्ष जेल में बिताने पड़े। ग्रहों की कक्षाओं के बारे में भी कई सिद्धांत रहे हैं। लेकिन जोहेनस-केपलर ने 17वीं शताब्दी में ग्रहों की कक्षाओं के रहस्य को स्पष्ट कर जो सिद्धांत दिए वे आज भी मान्य हैं। सभी ग्रहों की कक्षाएं एक ही तल में नहीं हैं। ये कक्षाएं वृत्ताकार नहीं बल्कि दीर्घवृत्ताकार हैं। पृथ्वी की कक्षा से भचक्र का तल निर्मित होता है और अन्य ग्रहों की कक्षाओं के तल इससे कुछ झुके हुए हैं। सौर मंडल को ग्रहों की दूरियों के आधार पर दो भागों में बांटा गया हैं जिन्हें आंतरिक और बाहरी सौर मंडल कहा जाता है। बुध शुक्र, पृथ्वी और मंगल आंतरिक सौर मंडल के और गुरु, शनि, यूरेनस, नेप्च्यून और प्लूटो बाहरी सौर मंडल के ग्रह माने गए हैं। लेकिन जब हम पृथ्वी से इन ग्रहों की दूरियों को देखते हैं तो जिन ग्रहों की कक्षा सूर्य और पृथ्वी के मध्य में रहती है उन्हें अंतः या आंतरिक ग्रह कहा जाता है। बुध और शुक्र ऐसी ही ग्रह हैं। इसी तरह जिन ग्रहों की कक्षा पृथ्वी की कक्षा से बाहर है उन्हें बाहरी या बाह्य ग्रह कहा जाता है। मंगल, गुरु, शनि, यूरेनस, नेप्च्यून और प्लूटो बाह्य हैं।