तारा महाविद्या साधना
तारा महाविद्या साधना

तारा महाविद्या साधना  

व्यूस : 20373 | फ़रवरी 2008
तारा महाविद्या साधना डाॅ. अनिल शेखर, दुर्ग तंत्र में दस महाविद्याओं को शक्ति के दस प्रधान स्वरूपों के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। ये दस महाविद्याएं हैं: काली, तारा, षोडशी, छिन्नमस्ता, बगलामुखी, त्रिपुरभैरवी, मातंगी, धूमावती, भुवनेश्वरी तथा कमला। महाविद्याओं को दो कुलों में बांटा गया है: पहला काली कुल तथा दूसरा श्री कुल। काली कुल की प्रमुख महाविद्या है तारा। इस साधना से जहां एक ओर आर्थिक समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है, वहीं ज्ञान तथा विद्या का विकास भी होता है। इस महाविद्या के साधकों में जहां महर्षि वशिष्ठ जैसे प्राचीन साधक रहे हैं, वहीं वामा खेपा जैसे साधक वर्तमान युग में बंगाल प्रांत में हो चुके हैं। विश्व प्रसिद्ध तांत्रिक तथा लेखक गोपीनाथ कविराज के आदरणीय गुरुदेव स्वामी विशुद्धानंद जी तारा साधक थे। इस साधना के बल पर उन्होंने अपनी नाभी से कमल की उत्पत्ति कर के दिखाया था। तिब्बत को साधनाओं का गढ़ माना जाता है। तिब्बती लामाओं, या गुरुओं के पास साधनाओं की अ ित िव िश् ा ष् ट तथा दुर्लभ विधियां आज भी मौजूद हैं। ित ब् ब त ी साधनाओं के सर्वश्रेष्ठ होने के पीछे भी उनकी आराध्या देवी मणिपद्मा का ही आशीर्वाद है। मणिपद्मा तारा का ही तिब्बती नाम है। इसी साधना के बल पर वह असामान्य तथा असंभव लगने वाली क्रियाओं को भी करने में सफल हो पाते हैं। तारा महाविद्या साधना सबसे कठोर साधनाओं में से एक है। इस साधना में किसी प्रकार के नियमों में शिथिलता स्वीकार्य नहीं होती। इस विद्या के तीन रूप माने गये हैं: 1. नील सरस्वती 2. एक जटा 3. उग्र तारा। नील सरस्वती तारा साधना तारा के नील सरस्वती स्वरूप की साधना विद्या प्राप्ति तथा ज्ञान की पूर्णता के लिये सर्वश्रेष्ठ है। इस साधना की पूर्णता साधक को जहां ज्ञान के क्षेत्र में अद्वितीय बनाती है, वहीं साधक को स्वयं में कवित्व शक्ति भी प्रदान कर देती है, अर्थात वह कविता, या लेखन की क्षमता भी प्राप्त कर लेता है। इस साधना से निश्चित रूप से मानसिक क्षमता का विकास होता है। यदि इसे नियमित रूप से किया जाए, तो विद्यार्थियों के लिए अत्यंत लाभप्रद होती है। नील सरस्वती बीज मंत्र ‘ऐं’ ः यह बीज मंत्र छोटा है, इसलिए करने में आसान होता है। जिस प्रकार एक छोटा सा बीज अपने आपमें संपूर्ण वृक्ष समेटे हुए होता है, ठीक उसी प्रकार यह छोटा सा बीज मंत्र तारा के पूरे स्वरूप को समेटे हुए है। साधना विधि इस मंत्र का जाप नव रात्रि में करना सर्वश्रेष्ठ होता है। अपने सामथ्र्य के अनुसार 108 बार कम से कम तथा अधिकतम तीन घंटे तक नित्य जप करें। कांसे की थाली में केसर से उपर्युक्त बीज मंत्र को लिखें। अब इस मंत्र के चारों ओर चार चावल के आटे से बने दीपक घी से जला कर रखें। चारों दीयों की लौ ऐं बीज की तरफ होनी चाहिए। कुंकुम, या केसर से चारों दीपक तथा बीज मंत्र को घेरते हुए एक गोला थाली के अंदर बना लें। यह लिखा हुआ साधना के आखिरी दिन तक काम आएगा। दीपक रोज नया बना कर लगाना होगा। सर्वप्रथम हाथ जोड़ कर ध्यान करेंः नीलवर्णां त्रिनयनां ब्रह्मशक्तिसमन्विताम्। कवित्व-बुद्धि- प्रदायिनीं नीलसरस्वती प्रणमाम्यहम्।। हाथ में जल ले कर संकल्प करें कि मां आपको बुद्धि प्रदान करें। ऐं बीज को देखते हुए जाप करें। पूरा जाप हो जाने के बाद त्रुटियों के लिए क्षमा मांगे। साधना काल में ब्रह्मचर्य का पालन करें। कम से कम बातचीत करें और किसी पर क्रोध न करें। किसी स्त्री का अपमान न करें। सफेद रंग के वस्त्र धारण करें। बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की यह तांत्रिक साधना है। पूरे विश्वास तथा श्रद्धा से करने पर तारा निश्चित रूप से अभीष्ठ सिद्धि प्रदान करती है।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.