सरस्वती स्तोत्र : अर्थ एवं महत्व
सरस्वती स्तोत्र : अर्थ एवं महत्व

सरस्वती स्तोत्र : अर्थ एवं महत्व  

व्यूस : 23431 | फ़रवरी 2008
सरस्वती स्तोत्र: अर्थ एवं महत्व रंजू नारंग साम, दाम, दंड, भेद-कार्यसिद्धि की ये चार विधियां हैं। ‘साम’ अर्थात स्तुति से देव, दानव, मनुष्य सभी प्रसन्न हो जाते हैं। महाकवि कालिदास के कथन ‘स्तोत्रं कस्य न तुष्टये’ के अनुसार कोई भी ऐसा प्राणी नहीं है जो स्तुति से प्रसन्न न हो जाता हो। विज्ञान ने सिद्ध कर दिया है कि वायुमंडल पर ध्वनि-तरंगों का प्रभाव निश्चित रूप से पड़ता है। हमारे वेद पुराणों मंे वर्णित मंत्र, श्लोक आदि उच्चारण मात्र से ही वातावरण में एक अलौकिक पवित्र प्रभाव छोड़ते हैं। इस आलेख में प्रस्तुत है मां सरस्वती के कुछ स्तोत्र प्रस्तुत हैं जिनके निष्ठापूर्वक नियमित पाठ से वीणापाणिनी, विद्या बुद्धि की दात्री मां सरस्वती अवश्य ही प्रसन्न होती हैं। या कुन्देन्दु तुषार हार धवला या शुभ्रवस्त्रावृता या वीणा वर दण्ड मण्डितकरा यश्वेतपदमासना। या ब्रह्मऽच्युतशंकरप्रभृतिभिः देवैः सदा वन्दिता सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेष जाड्यापहा। अर्थ: जो कुन्द के फूल, चंद्रमा और बर्फ के समान श्वेत हैं, जो शुभ्र वस्त्रों से आवृत हैं, जिनके हाथ वीणा से सुशोभित हैं जो श्वेत कमल पुष्प के आसन पर विराजमान हंै ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि देव जिनकी सदा स्तुति करते हैं और जो सब प्रकार की जड़ता हर लेती हैं, वे भगवती सरस्वती मेरा पालन करें। महत्व: इस श्लोक द्वारा स्तुति करने से देवी सरस्वती बुद्धि को तीक्ष्णता प्रदान करती हैं। आशासु राशीभवदडं्गवल्लीभासैव दासीकृतदुग्धसन्धिुम्। म न् द िस् म त ै िर्न िन् द त श् ा ा र द े न् द ु ं वन्देऽरविन्दासनसुन्दरि त्वाम्।। अर्थ - हे कमल पर विराजमान सुंदरी, देवी सरस्वती तुम सब दिशाओं में प्रकाशमान, अपनी देहलता की आभा से ही क्षीर-सागर को दास बनाने वाली और मंद मुस्कान से शरद् ऋतु के चंद्रमा को तिरस्कृत करने वाली हो, तुमको मैं प्रणाम करता हूं। महत्व: प्रस्तुत श्लोक से मां सरस्वती को नमन करने से मनुष्य का आभामंडल आलोकित होता है। शारदा शारदाम्भोजवदना वदनाम्बुजे। सर्वदा सर्वदास्माकं सन्निधिं क्रियात्।। अर्थ: शरत्काल में उत्पन्न कमल के समान मुखवाली और सब मनोरथों को पूर्ण करने वाली मां शारदा सब सम्पत्तियों के साथ मेरे मुख में सदा निवास करें। महत्व: इस श्लोक द्वारा मां शारदा की स्तुति से वाणी की निपुणता एवं मधुरता प्राप्त होती है। सरस्वती च तां नौमि वागधिष्ठातृदेवताम्। देवत्वं प्रतिपद्यन्ते यदनुग्रहतो जनाः।। अर्थ: उन वाणी व वचन की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती को मैं नमन करता हूं जिनकी कृपा से मनुष्य देवत्व प्राप्त करता है। महत्व: इस श्लोक द्वारा स्तुति से मनुष्य देवों सी स्निग्धता एवं आभा प्राप्त करता है। पातु नो निकषग्रावा मतिहेम्नः सरस्वती। प्राज्ञेतरपरिच्छेदं वचसैव करोति या।। अर्थ: बुद्धिरूपी सोने की परख के लिए कसौटी के समान मां सरस्वती, जो केवल वचन से विद्वानों और मूर्खों की परीक्षा लेती हैं, पालन करें। महत्व: प्रस्तुत श्लोक द्वारा स्तुति से वाक्पटुता एवं तीक्ष्ण बुद्धि प्राप्त होती है। शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमामाद्यां जगद्व्यापिनीं व ी ण् ा ा प ु स् त क ध् ा ा िर ण् ा ी म भ् ा य द ा ं जाड्यान्धकारापहाम्। हस्ते स्फाटिकमालिकां च दधतीं पùासने संस्थितां वन्दे तां परमेश्वरी भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्।। 6।। अर्थ: श्वेत रूप वाली, ब्रह्मविचार की परम तत्व, समस्त संसार में व्याप्त, हाथों में वीणा और पुस्तक धारण किए हुए, अभयदात्री, मूर्खतारूपी अंधकार को दूर करने वाली, हाथ में स्फटिक मणि की माला धारण किए हुए, कमल के आसन पर विराजमान, बुद्धि देने वाली आद्या परमेश्वरी भगवती सरस्वती की वंदना करता हूं। महत्व: इस स्तुति से बुद्धि की जड़ता दूर होती है एवं स्मरण शक्ति तीव्र हो जाती है। वीणाधरे विपुलमंगलदानशीले भक्तार्तिनाशिनि विरन्चिहरीशवन्द्ये। कीर्तिप्रदेऽखिलमनोरथदे महार्हे विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम्।। 7।। अर्थ: हे वीणा धारण करने वाली, अपार मंगल देने वाली, भक्तों के दुख हरने वाली, ब्रह्मा, विष्णु, महेश से वन्दित, कीर्ति और मनोरथ देने वाली, पूज्यवरा और विद्या देने वाली मां सरस्वती ! मैं तुम्हें नित्य नमन करता हूं। महत्व: यश कीर्ति और विद्या की प्राप्ति होती है। श्वेताब्जपूर्णविमलासनसंस्थिते हे श्वेताम्बरावृतमनोहरमंजुगात्रे। उद्यन्मनोज्ञसितापड्ंकजमंजुलास्यें विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम्।। अर्थ: हे श्वेत कमलों से परिपूर्ण निर्मल आसन पर विराजने वाली, श्वेत वस्त्रों से ढके सुंदर शरीर वाली, विकसित श्वेत कमल के समान मंजुल मुखवाली और विद्या प्रदान करने वाली देवि ! सरस्वती ! तुमको नित्य प्रणाम करता हूं। महत्व: तेजोमय व्यक्तित्व की प्राप्ति होती है। मातस्वदीयपदपड्ंकजभक्तियुक्ता ये त्वां भजन्ति निखिलानपरान्विहाय। ते निर्जरत्वमिह यान्ति कलेवरेण भूवह्निवायुगगनाम्बुविनिर्मितेन।। अर्थ: हे माते ! जो मनुष्य तुम्हारे चरण कमलों में भक्ति रखकर, और सब को छोड़कर तुम्हारा भजन करते हैं वे पृथ्वी, अग्नि, वायु, आकाश और जल-इन पांच तत्वों के शरीर से ही देवत्व को प्राप्त कर लेते हैं। महत्व: इस स्तुति से मनुष्य के नश्वर शरीर में देवताओं जैसे गुण प्रकट होते हैं। मोहान्धकारभरिते हृदये मदीये मातः सदैव कुरू वासमुदारभावे। स्वीयाखिलावयवनिर्मलसुप्रभाभिः शीघ्रं विनाशय मनोगतमन्धकारम्।। अर्थ: हे उदार बुद्धि वाली मां ! मोहरूपी अंधकार से भरे मेरे हृदय में सदा निवास करो और अपने सब अंगों की निर्मल कांति से मेरे मन के अंधकार का शीघ्र नाश करो। महत्व: अज्ञान रूपी अंधकार का नाश होता है और ज्ञान के प्रकाश से मानव मन आलोकित हो उठता है। ब्रह्मा जगत् सृजति पालयतीन्दिरेशः शम्भुर्विनाशयति देवि तव प्रभावैः। न स्यात्कृपा यदि तव प्रकटप्रभावे न स्युः कथांचिदपि ते निजकार्यदक्षाः ।। 11।। अर्थ: हे देवी ! आपके प्रभाव से ही ब्रह्मा जी जगत् का सृजन करते हैं, विष्णु पालन करते हैं और शिव शंभु विनाश करते हैं। हे प्रकट प्रभाव वाली ! यदि आपकी कृपा न हो तो कोई भी अपने कार्य में दक्ष नहीं हो सकता। महत्व: मनुष्य की कार्यकुशलता अथवा दक्षता में वृद्धि हो जाती है। लक्ष्मीमेधा धरा पुष्टिर्गौरी तुष्टिः प्रभा धृतिः । एताभिः पाहि तनुभिरष्टाभिर्मा सरस्वति।। अर्थ: हे मां सरस्वती ! लक्ष्मी, मेधा, धरा, पुष्टि, गौरी, तुष्टि, प्रभा, धृति-इन आठ मूर्तरूप सिद्धियों से मुझे युक्त होने का आशीर्वाद दें। महत्व: इस स्तुति से मनुष्य लक्ष्मीवान् बुद्धिमान, धैर्यवान, स्वस्थ, संतुष्ट, कल्याणकारी, तेजवान एवं सहनशील बनता है। सरस्वत्यै नमो नित्यं भद्रकाल्यै नमो नमः। वेदेवेदान्तवेदाडं्गविद्यास्थानेभ्य एवं च।। अर्थ: मां सरस्वती को नित्य नमस्कार है, मां भद्रकाली को नमस्कार है और वेद, वेदान्त वेदांग तथा विद्याओं के स्थानों को नमस्कार है। महत्व: विद्यार्थी को मां सरस्वती और मां भद्रकाली की कृपा प्राप्ति होती है। सरस्वति महाभागे विद्ये कमललोचने। विद्यारूपे विशालाक्षि देहि नमोऽस्तु ते।। अर्थ: हे महाभाग्यवती ज्ञान स्वरूपा, कमल के समान विशाल नेत्र वाली, ज्ञानदात्री सरस्वती ! मुझे विद्या दो मैं तुम्हें प्रणाम करता हूं। महत्व: इस स्तुति से विद्यार्थी को मन की एकाग्रता एवं विद्या की प्राप्ति होती है। यदक्षरं पदं भ्रष्टं मात्राहीनं च यद्भवेत्। तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि।। अर्थ: हे देवि ! जो अक्षर पद अथवा मात्रा की त्रुटि रह गई हो, उसके लिए क्षमा करो ! हे परमेश्वरी ! सदा प्रसन्न होओ। महत्व: इस श्लोक द्वारा स्तुति से मां सरस्वती प्रसन्न होकर सर्वगुणसंपन्न होने का आशीर्वाद देती हैं।



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