माता सरस्वती विद्या प्राप्ति हेतु रिझाएं बसंत पंचमी पर्व पर बसंत कुमार सोनी वि द्या का आरंभ बच्चों को उनके बाल्यकाल से ही कराया जाता है और वे क्रमशः पढ़ते हुए ज्ञान निधि को बढ़ाते चले जाते हैं और एक दिन ऐसा आता है कि वे माता सरस्वती के कृपा प्रसाद से ऊंची से ऊंची डिग्रियां प्राप्त कर लेते हैं। ज्ञानार्जन और ज्ञानवृद्धि का कार्य यदि सच्चे अर्थों में देखा जाए तो भगवती सरस्वती के पूजन स्तवन ही पूर्ण कर देते हैं। ज्ञानार्जन और ज्ञान वृद्धि के द्वारा आप भी लाभान्वित हो सकते हैं और अन्यान्य लोगों को भी अपना ज्ञान बांटकर उन्हें लाभान्वित कर सकते हैं। इला, गिरा, विद्या, वाणी, भारती, शारदा, वाग्देवी, वागीश्वरी, वीणावादिनी, वीणापाणि, ब्रह्माणी, हंस वाहिनी, मयूरवाहिनी, मेधा, श्वेत पद्मासना, विद्यादात्री, पुस्तक धारिणी, सरस्वती आदि विद्या की देवी के प्रमुख नाम हैं। नित्य पूजा कर्म के समय उन्हें इन नामों से स्मरण और प्रणाम करने मात्र से उनकी कृपा प्राप्त होती है। जैसे शास्त्र आनंत हैं वैसे ही विद्याएं भी कई प्रकार की हैं। बसंत पंचमी के दिन ‘‘¬ सरस्वत्यै नमः ’’ के उच्चारण के साथ प्रणाम निवेदन करते हुए सरस्वती जी का आवाहन कर उनका श्रद्धा विश्वासपूर्वक षोडशोपचार पूजन करना चाहिए ताकि वांछित विद्या प्राप्त हो सके और भगवती सरस्वती का अनुग्रह बना रहे। इसी दिन श्वेत वस्त्र धारण कर पूर्वाभिमुख होकर मुक्ता माला से उनके ‘‘¬ ऐं वद वद वाग्वादिनी स्वाहा’’ मंत्र का कम से कम दस माला जप अवश्य करना चाहिए। जप के पश्चात दशांश हवन कर पुनः सरस्वती जी को प्रणाम निवेदन करके कहें कि हे भगवती मां तुम्हीं स्मरण शक्ति, ज्ञान शक्ति, बुद्धि शक्ति, प्रतिभा शक्ति और कल्पना शक्ति स्वरूपिणी हो, तुम्हारे बिना गणित विद्या के पारखी भी किसी प्रकार के विषय की गणना करने में समर्थ नहीं है एवं माता आप कालगणना की संख्या स्वरूपिणी हो अतएव तुम्हें बारंबार प्रणाम करते हैं। पूजन कर्म के अंत में यह प्रार्थना करें। सरस्वती महाभागे विद्ये कमल लोचने। विद्यारूपे विशालाक्षी विद्या देहि नमोस्तुते।। वीणाधरे विपुल मंगल दानशीले। भक्र्तािर्तनाशिनी विरंचि हरीश बन्धे।। कीर्ति प्रदेऽखिल मनोरथ दे महार्हे। विद्या प्रदायिनी सरस्वती नौमि नित्यम्।। त्वया बिना प्रसंख्या वान्संख्यां कर्तु न शक्यते। कालसंख्या स्वरूपा या तस्यै देव्यै नमो नमः।। बसंत पंचमी का पर्व शंकर पार्वती से भी जुड़ा है। इस वर्ष यह पर्व दिनांक 11-2-2008 सोमवार को पड़ा है। सोमवार शिव जी का दिन है, अतः रुद्राक्ष इसी दिन धारण किया जाता है। विद्या प्राप्ति के निमित्त छः मुखी शिवफल धारण करना चाहिए।यदि विद्यार्थी का मन पढ़ाई से विचलित होने लगे तो एकाग्रता बढ़ाने के लिए छः मुखी के साथ-साथ दो मुखी रुद्राक्ष भी काले रेशमी धागे में पिरोकर दायीं भुजा या कंठ में धारण कर लेना चाहिए। यहां एक सिद्ध यंत्र अंकित है जो विद्या वारिधि वरण सुयन्त्रम् के नाम से जाना जाता है। इस यंत्र को अनार की कलम से अष्ट गंध की स्याही से भोजपत्र पर शुभ मुहूर्त में लिखकर धारण करते हैं। जो बच्चे पढ़ाई में कमजोर हों या जिन्हें कोई विषय कठिन प्रतीत होता हो, उन्हें इस यंत्र को सदैव अपने पास रखना चाहिए। इस यंत्र को विद्या की अभिवृद्धि एवं ज्ञान के संवर्धन के लिये प्रयोग में लाते हैं। इस यंत्र को सरस्वती जयंती के दिन तैयार कर धारण करने का अति विशिष्ट महत्व है। धारणकर्ता पर भगवती सरस्वती की विशेष कृपा होती है। जीवन के दिन एक से, सबको मिलत समान। ‘मदन’ हुए विद्वान कोई, कोई हुए मूर्ख महान।। चैबीस घंटों की घड़ी सबके लिए समान रूप से चलती है। सभी के लिए दिन का समय चैबीस घंटे का ही होता है। फिर भी कोई तो विद्वान बन जाता है और कोई मूर्ख ही रह जाता है। सभी विद्यावान बनें, सभी विद्वान और सदगुणी बनें। कोई मूर्ख न रहे, सभी को विद्या की देवी सरस्वती विद्या का वरदान दें, इसलिए आता है सरस्वती को प्रसन्न करने का पर्व, उनकी पूजा उपासना करने का महापर्व, उनकी जयंती का पर्व अर्थात माघ सुदी पंचमी का दिन बसंत पंचमी- अक्षरारंभ मुहूर्त का सर्वश्रेष्ठ दिन। कोई भी कार्य आरंभ करने के लिए ज्योतिष के अनुसार शुभ मुहूर्तों का विचार करना आवश्यक होता है ताकि प्रारंभ किए गए कार्य में सफलता प्राप्त हो सके। अक्षरारंभ मुहूर्त अर्थात छोटे बच्चों को ‘‘ग’’ गणेश का लिखना आरंभ करने का मुहूर्त। अक्षरारंभ शुभ दिन, तिथि, लग्नादि निम्नानुसार होते हैं। इस मुहूर्त को पट्टी पूजन मुहूर्त भी कहते हैं। शुभ दिन: सोमवार, बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार। इनमें गुरुवार का दिन सर्वोत्तम माना जाता है। शुभ तिथि: द्वितीया, तृतीया, पंचमी, दशमी, एकादशी और द्वादशी। शुक्ल पक्ष की इन तिथियों में अक्षरारंभ अत्यंत माना जाता है। शुभ लग्न: मेष, कर्क, तुला एवं मकर को छोड़ अन्य लग्न शुभ हैं। शुभ नक्षत्र: अश्विनी, आद्र्रा, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त, चित्रा, स्वाति, अनुराधा, श्रवण और रेवती। जन्म से सामान्यतया 5वें वर्ष और सूर्य के उत्तरायण होने पर श्री गणेश, सरस्वती, लक्ष्मी एवम् विष्णु का पूजन कर अशुभ योग और भद्रा को छोड़कर ऊपर वर्णित तिथि, वार, लग्न और नक्षत्र अक्षरारंभ के लिए शुभ होते हैं। वीणापाणि सरस्वती, हंस वाहिनी अंब। कला ज्ञान विज्ञान की, तू जननी अवलंब।।