सूर्य सौरमंडल का केंद्र आचार्य अविनाश सिंह खगोलीय दृष्टि से सूर्य सौरमंडल का केंद्र सूर्य एक तारा है तथा इसके चारों ओर परिक्रमा करने वाले ग्रहों की कक्षा की एक नाभि पर स्थित है। पृथ्वी वासियों के लिए सूर्य सबसे महत्वपूर्ण आकाशीय पिंड है। सूर्य न सिर्फ पृथ्वी को बल्कि सौरमंडल के सभी ग्रहों तथा अन्य पिंडों को प्रकाश तथा गर्मी देता है। सूर्य ही सभी ग्रहों की गतियों को नियंत्रित करता है। हमारे रोजमर्रा के जीवन पर इसका बहुत प्रभाव पड़ता है। इसके बिना मानव जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। सूर्य का व्यास 8, 65000 मील, आयतन पृथ्वी के आयतन से 13,00,000 गुणा तथा द्रव्यमान पृथ्वी के द्रव्यमान से 3,30,000 गुणा ज्यादा है। पृथ्वी से इसकी औसत दूरी 92, 9,57,209 मील है। चूंकि पृथ्वी की कक्षा अंडाकार (दीर्घ वृत्ताकार) है तथा सूर्य इसके एक फोकस (नाभि) पर स्थित है, इसलिए पृथ्वी से सूर्य की कम से कम दूरी 94,600,000 मील है। यह आकाशगंगा के केंद्र से काफी दूर वलयाकार भुजा के अंतिम छोर पर स्थित है। आकाशगंगा के केंद्र से इसकी दूरी 30,000 प्रकाश वर्ष है। आकाशगंगा 135 मील प्रति सेकेंड की रफ्तार से सूर्य के साथ घूम रही है तथा सूर्य को आकाशगंगा के केंद्र पर एक पूरा चक्कर लगाने में 2250 लाख वर्ष लगते हैं। पौराणिक दृष्टि में सूर्य: पुराणों में सूर्य को देवता माना गया है जिनकी दो भुजाएं हैं। वह कमल के आसन पर विराजमान हैं। उनके दोनों हाथों में कमल, सिर पर सुंदर स्वर्ण मुकुट तथा गले में रत्नों की माला है। उनकी कांति कमल के भीतरी भाग की सी है और वे सात घोड़ों के रथ पर सवार हंै। ऋग्वेद के अनुसार आदित्य-मंडल के अंतः स्थित सूर्य देवता सबके प्रेरक, अंतर्यामी तथा परमात्मा स्वरूप हैं। मार्कंडेय पुराण के अनुसार सूर्य ब्रह्म स्वरूप हैं। सूर्य से जगत उत्पन्न होता है और उन्हीं में स्थित है। सूर्य सर्वभूत स्वरूप सनातन परमात्मा हैं। यही भगवान भास्कर ब्रह्मा, विष्णु और शिव बनकर जगत का सृजन, पालन और संहार करते हैं। सूर्य नवग्रहों में सर्वस्वरूप देवता हंै। सूर्य देवता का दूसरा नाम आदित्य भी है क्योंकि सूर्य, देवताओं की माता अदिति के पुत्र हैं। माना जाता है कि एक बार दैत्यों, दानवों एवं राक्षसों ने संगठित होकर देवताओं के विरुद्ध युद्ध आरंभ कर दिया और उन्हंे पराजित कर उनके सभी अधिकारों को छीन लिया। देव माता अदिती इस संकट से छुटकारा पाने के लिए भगवान सूर्य की उपासना करने लगी। भगवान सूर्य ने प्रसन्न होकर देव माता अदिति की इच्छा पूर्ण करने के लिए उनके गर्भ से अवतार लिया और देव शत्रुओं को पराजित कर सनातन वेद मार्ग की स्थापना की। इस तरह अदिति आदित्य कहलाए। भगवान सूर्य का वर्ण लाल है। इनका वाहन रथ है। इनके रथ में एक ही चक्र है जो संवत्सर कहलाता है। इस रथ में मास स्वरूप बारह आरियां हैं। ऋतुरूपी छः नेमियां और तीन चैमासे रूप तीन नाभियां हैं। इनके साथ साठ हजार ऋषिगण स्वस्ति वाचन और स्तुति करते हुए चलते हैं। ऋषि, गंधर्व, अप्सरा, नाग, राक्षस और देवता सूर्य नारायण की उपासना करते हैं। चक्र, शक्ति, पाश और अंकुश इनके मुख्य अस्त्र हैं। ज्योतिषीय दृष्टि में सूर्य ज्योतिषीय दृष्टि में सूर्य आत्मकारक ग्रह है क्योंकि सूर्य की ऊर्जा से ही हर जीव को जीवन मिलता है। हर जीव की कोशिकाएं सूर्य की ऊर्जा से ही बलशील, कार्यशील और नियंत्रित होती हैं। सूर्य अनुशासनप्रिय और दूसरों खगोल ज्योतिष पर शासन करने वाला ग्रह है। नवग्रहों में सूर्य को राजा की उपाधि प्राप्त है। आकर्षक व्यक्तित्व, शक्तिशाली, अहंवादी, राजसी, दार्शनिक प्रकृति, दृढ़ इच्छा शक्ति और उच्च पदस्थ लोग जैसे राजा मंत्री, मजिस्ट्रेट, न्यायाधीश, नेता, अभिनेता आदि सभी जातक सूर्य से ही प्रभावित होते हैं। ऐसे जातकों की कुंडली में सूर्य पूर्ण बली हो कर शुभ फलदायी होता है। सूर्य को विश्व का पिता भी कहा जाता हैं इसलिए उसे जातक के पिता का कारक भी माना जाता है। सूर्य बीजों का उत्पादन कर्ता, व्यापार कर्ता और विकास कर्ता भी है। सूर्य ब्रह्मांड की आत्मा है। रोगों से बचने की शक्ति देता है। सिर, पेट, हड्डियों, दिल, धमनियों, नेत्रों, मस्तिष्क, कंठ, तिल्ली, कोशिकाएं और उदर शरीर के सभी भाग सूर्य से ही शासित और प्रभावित हैं। खुले स्थान, पर्वत, पहाड़ियां, वन, प्रमुख शहर, पूजा स्थान, समुद्र, न्यायालय, वन समूह, किला आदि। रक्तचाप, तेज ज्वर, नेत्र, कंठ, रक्त और नाक संबंधी रोग सूर्य के कमजोर व अशुभ होने के कारण होते हैं। जब सूर्य प्रतिकूल भावों में पाप ग्रहों से पीड़ित जलीय राशियों में होता है तब क्षय रोग और पेचिश का कारण बनता है। सूर्य क्षत्रिय वर्ण और पूर्व दिशा का स्वामी है। सूर्य सिंह राशि में स्वगृही, मेष में उच्च और तुला में नीच का होता है। इसका रत्न माणिक्य है। जिन जातकों का सूर्य कमजोर हो उन्हें माणिक्य धारण कर सूर्य की उपासना करनी चाहिए।