ज्योतिष और बुद्धि क्षमता डाॅ. कुरसीजा एस. सी. आ ज का युग प्रतिस्पद्र्धा का युग है। शिक्षा के आरंभ के वर्षों में माता-पिता को चाहिये कि बालक की अभिरुचि, मनोवृत्ति और बौद्धिक योग्यता को जानने की कोशिश करें। इस क्षेत्र में ज्योतिष माता-पिता की सहायता कर सकता है। ज्योतिषीय नियमों के द्वारा यह जाना जा सकता है। कि जातक में बौद्धिक योग्यता कितनी है और उसकी मनोवृत्ति किस ओर है। एक योग्य ज्योतिषी माता-पिता को होने वाली घटनाओं का पहले से ही अनुमान लगाकर उनका मार्गदर्शन कर सकता है। स्वस्थ शरीर में स्वस्थ बुद्धि और मन रहता है। इसलिए शरीर का स्वस्थ रहना पहली शर्त है। यदि लग्नेश पाप ग्रहों से युक्त दृष्ट होकर 6, 8, 12 भावों में स्थित हो तो जातक रोगी रहता है या लग्न में पाप ग्रह हो और लग्नेश निर्बल हो तो जातक रोगी रहता है। इससे जातक की योग्यता पर प्रभाव पड़ता है। लग्न से उपचय भाव 3, 6, 10 और 11 भाव जातक को उत्साह, आगे बढ़ने की शक्ति हिम्मत, शत्रुओं से लड़ने की शक्ति, प्रतिस्पद्र्धा को शक्ति देते है। उपाचय भाव में अशुभ ग्रह, मंगल, शनि, सूर्य आदि ग्रह जातक को प्रतिस्पद्र्धा को शक्ति प्रदान करते हैं। द्वितीय भाव से हम हीरे, मोती, सोना, चांदी आदि धातुओं का क्रय-विक्रय, आदि कोई भावेश द्वितीय भाव में स्थित है। उस भावेश की वस्तु का क्रय-विक्रय द्वारा धन कमाना, सत्य झूठ या बहु भाषण (वकील, नेता आदि) आदि का अनुमान हम द्वितीय भाव से लगाते हैं। द्वितीय भाव से स्मरण शक्ति का भी अनुमान लगाया जाता है। जैसे- धनेश चतुर्थेश से युक्त या दृष्ट हो तो जातक को माता की संपत्ति प्राप्त होती है। धनेश, चतुर्थेश से युक्त या दृष्ट नवांश और दशमांश में भी हो तो जातक को किसी बंधु या कृषि कर्म से धन लाभ होता है। यदि धनेश बलवान होकर पंचमेश या पंचम कारक ग्रह बृहस्पति से युति या दृष्टि संबंध हो तो जातक को पुत्र से धन लाभ होता है। यदि चतुर्थेश धन भाव में पाप ग्रहों से युक्त होकर नीच राशि, या शत्रु राशि में स्थित हो तो जातक भूमि का क्रय-विक्रय करने वाला होता है। यदि द्वितीयेश कोई पाप ग्रह हो और नीच राशि या शत्रु राशि में स्थित होकर बलवान चतुर्थेश से दृष्टि या युति से संबंध करे तो जातक भूमि का क्रय-विक्रय करने वाला होता है। इत्यादि योगों से स्पष्ट होता है कि जातक को धन की प्राप्ति कैसे होगी। द्वितीय भाव और द्वितीयेश से जाना जा सकता है। इससे जातक के माता-पिता का मार्ग दर्शन किया जा सकता है। चतुर्थ भाव से हम केवल जातक शिक्षा के बारे में ही नहीं जानते अपितु किस विषय की शिक्षा होगा। किस प्रकार की शिक्षा जातक ग्रहण करेगा। भी जाना जा सकता है। ज्योतिष के कई ग्रंथों में स्पष्ट लिखा है कि कौन सा ग्रह किस प्रकार कि शिक्षा के लिये जातक को प्रेरित करेगा। यदि उसका प्रभाव चतुर्थ भाव पर हो। जैसे शुक्र संगीत की शिक्षा, बुध-शिक्षा, सूर्य और चंद्र। राजनैतिक विज्ञान, मनोविज्ञान और पराविद्या की शिक्षा गोचर का ध्यान भी आवश्यक हो जाता है। क्योंकि बिना दशा और अंतर्दशा तथा गोचर के फलित नेत्र नहीं लिया जा सकता। योग: योग फलित ज्योतिष का एक आवश्यक अंग है। ग्रहों की भावों में विशेष स्थिति जातक को प्रभावित करती है। इसलिये ज्योतिष ग्रंथों में योगों का विशेष महत्व है। शिक्षा से संबंधित कुछ योग इस प्रकार है। बुध-आदित्य योग: बुध और सूर्य की युति को बुध-आदित्य योग कहते हैं। यह सर्वविदित है कि ग्रह सूर्य के निकट आ जाता है और अस्त हो जाता है। अस्त का अर्थ है कि वह ग्रह अपना प्रभाव देने में असमर्थ हो जाता है। इसलिए बुध भी सूर्य के निकट हो तो अस्त हो जाता है। इसलिये बुध भी सूर्य से 14 अंश तक दूर रहना चाहिये यदि बुध वक्री है तो 12 अंश दूर होना चाहिए। इसलिए बुध आदित्य योग में बुध और सूर्य का कम से कम 140 का अंतर आवश्यक होता है। सांख्य योग: यदि पंचमेश और षष्ठेश एक दूसरे से केंद्र में स्थित हों और लग्नेश बलवान हो तो जातक अच्छी शिक्षा प्राप्त करता है। सरस्वती योग: यदि शुभ ग्रह (बृहस्पति, शुक्र, बुध और चंद्रमा) केंद्र (1, 4, 7, 10) त्रिकोण (5, 9) और दूसरे भाव में इक्टठे या अलग-अलग स्थित हो तो जातक उच्च शिक्षा प्राप्त करता है। बुद्ध योग: गुरु लग्न में, चंद्रमा केंद्र में, राहु चंद्रमा से द्वितीय भाव में सूर्य और मंगल राहु से तृतीय भाव में, स्थित हो तो जातक बौद्धिक सक्षम होता है। ऊपर के योग में बृहस्पति लग्न में और चंद्रमा, सूर्य, मंगल (मित्र ग्रह) एक दूसरे से केंद्र में होने के कारण एक दूसरे को प्रभावित कर रहे हैं। राहु चंद्रमा से द्वितीय में स्थित है जो शुभ है। ऊपर लिखित कुछ योगों से स्पष्ट है कि कारक ग्रह गुरु बुध और चंद्रमा यदि केंद्र या त्रिकोण में स्थित हो तो जातक बुद्धिमान होता है। उनका बौद्धिक लब्धी कोष्ठक उच्च होता है। इसलिए शिक्षा का निर्णय लेते हुए बुद्धिकारक ग्रहों की भाव स्थिति राशि, तत्व, दशांतर्दशा और गोचर का ध्यान रख कर ही निर्णय लिया जाए तो माता-पिता जातक में छिपे गुणों का पूर्ण विकास कर जातक को जीवन में सफल व्यक्ति बना सकते हैं। कुंडली में यह अत्यंत कठिन कार्य होता है जब किसी ग्रह पर किसी अन्य ग्रह का दृष्टि, युति, राशि परितर्वन का अन्यतर स्थान दृष्टि संबंध नहीं है। इसी से योग बनते हैं। और जातक के जीवन को प्रभावित करते हैं। कुछ योग संक्षिप्त में इस प्रकार हैं। सूर्य $ चंद्रमा: शत्रु को पराजित करने वाला, शस्त्र धारण करने वाला सैनिक। सूर्य $ मंगल: शस्त्र धारण करने वाला दंडाधिकारी। सूर्य$बुध: विज्ञान संबंधी ज्ञान। सूर्य $ गुरु: पुरोहित (प्रवचन करने वाला) सूर्य $ शुक्र: वाहन सूर्य $ शनि: दुःख परदेश में नौकरी सूर्य $ राहु: पिता को भय, अपराधिकीय, आध्यात्मिक ज्ञान, कृषि या वनस्पति ज्ञाता, वैद्य। चंद्र $ मंगल: व्यापार से धन, अपने परिश्रम से आजीविका। चंद्र $ बुध: सलाहकार, मंत्री चंद्र $ गुरु: ज्योतिषी, विद्वान चंद्र $ शुक्र: कवि चंद्र $ शनि: पुस्तक मुद्रण या विक्रेता। मंगल $ बुध: इंजीनियर इत्यादि। पृथ्वी तत्व राशियां (2, 6, 10) यथार्थवादी, व्यवहारिक बनाती है। ऐसा व्यक्ति, कृषि, बागवानी भवन निर्माण सड़क निर्माण मकान या प्लाट का क्रय-विक्रय इमारती लकड़ी का व्यापार या फर्नीचर आदि का कार्य या शिक्षा प्राप्त करता है। ऐसा जातक एक सफल प्रबंधक का कार्य भी करता है। कन्या राशि का सूर्य और बुध का संबंध दशम या चतुर्थ भाव से हो तो जातक लेखा परीक्षक या कर अधिकारी बनता है। वायु तत्व राशियां (3, 7, 11) जातक के बौद्धिक स्तर को बहुत उठाती है। ऐसे जातक बुद्धिमान, चिंतन मनन करने वाला दार्शनिक, लेखक, जर्नलिस्ट, विचारक या वैज्ञानिक शोधकर्ता होता है। इसके सोच की शक्ति बहुत विकसित होती है। ऐसा जातक वकील, साहित्यकार और एक अच्छा सलाहकार होता है। जल तत्व राशियां (4, 8, 12) ऐसे जातक का बौद्धिक स्तर ज्यादा अच्छा नहीं होता। दूध, घी, पेय पदार्थ या रासायनिक पदार्थों में रूची लेता है। कपड़ों की धुलाई, समुद्री उत्पादन, जहाजरानी के कार्यों में रूची लेता है। जल भंडारण बोध, नहर, सिचाई आदि कार्य रूचिकर होते हैं। इस प्रकार हम पाते हैं कि लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम एवं दशम भाव और भावेश पर पड़ने वाले तत्वों का जातक के जीवन पर बहुत प्रभाव होता है। इसलिए भावों के तत्वों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।