प्रथम सेतुपति गुह एवं रामेश्वरम
प्रथम सेतुपति गुह एवं रामेश्वरम

प्रथम सेतुपति गुह एवं रामेश्वरम  

व्यूस : 5172 | फ़रवरी 2008
प्रथम सेतुपति गुह एवं रामेश्वरम गौतम पटेल वृ षभ-सूर्य, कन्या-चंद्रमा, ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष, दशमी तिथि, बुधवार, हस्त नक्षत्र, गर-करण, व्यतिपात योग तथा आनंद आनंदादि योग, इस प्रकार परम पुण्यमय दस योगों की संयुक्त उपस्थिति में यजमान सीताराम ने आचार्य और मुनियों के सान्निध्य में मंत्रोच्चरण के साथ सीता निर्मित बालू के शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा की, जो रामेश्वर के नाम से आज भी प्रसिद्ध है। युद्ध पूर्व अथवा युद्ध पश्चात् ही नहीं, अपितु आजीवन सीतारमण रामेश्वरम का अनुष्ठान करते रहे। श्री रामचंद्र जी ने गुह को रामनाथपुरम का प्रथम ‘सेतुपति’ बनाकर उनका राज्याभिषेक किया था। राज्याभिषेक के समय गुह जिस चट्टान पर बैठे थे वह रामनाथ पुरम के रामलिंग विलास महल में आज भी सुरक्षित है। समीपस्थ सभी राजाओं ने समुद्री तथा तटवर्ती सभी स्थलों पर संपूर्ण अधिकार उन सेतुपति को सौंप दिया था। श्री रामनाथ स्वामी ही इन सेतुपति के कुल देवता रहे हैं। राजा गुह स्वयं तथा उनके वंशज तब से अब तक रामेश्वरम से गहरा संपर्क रखते रहे हैं। आज भी रामनाथपुरम के सेतुपति अथवा राजा के वंशज (सन् 1970 में श्री एस रामनाथ सेतुपति) श्री रामेश्वरम देवस्थानम संचालक मंडल के अध्यक्ष रहे हैं। रामेश्वरम एक टापू का नाम है। इस टापू में सबसे मुख्य दर्शनीय स्थल है- रामेश्वर, रामलिंगेश्वर अथवा रामनाथस्वामी का मंदिर। रामेश्वर टापू के पूर्वी सागर तट पर स्थित यह मंदिर द्रविड़ वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है। मंदिर की शिल्पकला देखने लायक है। स्तंभों पर की गई बारीक कारीगरी भी दर्शनीय है। इस मंदिर की सबसे विख्यात संरचना है भारत का सबसे बड़ा परकोटा। यह पूर्व से पश्चिम 197 मीटर और उत्तर से दक्षिण 133 मीटर लंबा है। परकोटे की चैड़ाई 6 मीटर और ऊंचाई 9 मीटर है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर 38.4 मीटर ऊंचा टावर (गोपुरम) है। लगभग 6 हेक्टेयर में बने इस मंदिर में 22 कुएं हैं। मछुआरों को छोड़कर इस द्वीप के लगभग सभी निवासियों की जीविका दर्शनार्थियों पर ही निर्भर है। रामेश्वर मंदिर में विशालाक्षी जी की बगल में नौ ज्योतिर्लिंग हैं जो लंकापति विभीषण द्वारा स्थापित हैं। मूल लिंग वाले गर्भगृह तथा अंबा देवी के मंदिर का निर्माण बारहवीं शताब्दी में श्रीलंका के राजा पराक्रम बाहु ने किया था। पंद्रहवीं शताब्दी में रामनाथपुरम के राजा उडैयान सेतुपति और नागपट्टिम के निकटस्थ नागूर निवासी एक वैश्य ने संयुक्त रूप से 78 फुट गोपुर तथा परकोटों का निर्माण करवाया था। मदुरै के एक धनाढ्य भक्त ने देवी मंदिर की मरम्मत करवाई थी। 16वीं शताब्दी में मंदिर के दक्षिण भाग के द्वितीय परकोटे दीवार का निर्माण तिरुमलै सेतुपति नामक राजा ने करवाया था। देवी मंदिर के द्वार पर उनकी तथा उनके पुत्र रघुनाथ सेतुपति की मूर्तियां स्थापित हैं। आज भी प्रत्येक शुक्रवार की रात उन्हें माला पहनाकर सम्मानित किया जाता है। इसी शताब्दी में मदुरै के राजा विश्वनाथ नायक के अधीनस्थ एक राजा चिन्न उडैयान सेतुपति कट्टत्तेवर’ ने नंदी मंडप तथा कुछ अन्य निर्माण कार्य संपन्न किया था। इस नंदी मंडप का आकार 22 फुट लंबा, 12 फुट चैड़ा और 17 फुट ऊंचा है। 17वीं शताब्दी में दलवाय सेतुपति ने पूर्व दिशा के गोपुर का एक अंश बनवाया। अठारहवीं शताब्दी के प्रारंभ में रविविजय रघुनाथ सेतुपति नामक राजा ने देवी-देवता के शयनगृह तथा देवी के गर्भगृह के सामने एक मंडप का निर्माण कराया। इसी शताब्दी में मुत्तु रामलिंग सेतुपति ने बाहरी परकोटे का निर्माण कार्य पूर्ण कराया। उनकी तथा उनके दो मंत्रियों की शिलामूर्तियां पूर्वी परकोटे के उत्तरी द्वार पर आज भी देखी जा सकती हैं। सन् 1897 से 1904 के मध्य देवकोट्टै के ‘¬. अरु. वंश’ वालों ने अपने कुटुंब परिवार की धार्मिक निधि से धनराशि निकालकर पूर्व के नौ द्वार वाले 126 फुट ऊंचे गोपुर का निर्माण कराया। 1907 से 1925 के मध्य इन्हीं के कुटुंब परिवार वालों ने गर्भगृह की मरम्मत करवाई। साधारण पत्थरों के परकोटों को काले पत्थरों के परकोटों में परिवर्तित करवाया। सभी स्थलों पर शुद्ध वायु और प्रकाश की व्यवस्था भी की। इन सबके अतिरिक्त 27-2-1947 को संपूर्ण मंदिर का अष्टबंधन महाकुंभाभिषेक भी करवाया। इस प्रकार रामनाथ स्वामी का यह मंदिर रामायण काल से अब तक कई लोगों के द्वारा शनैः शनैः निर्मित होते हुए आज इस भव्यता तक पहुंचा है। लेकिन फिर भी रामनाथ पुरम रियासत के सेतुपतियों अथवा राजाओं की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। मंदिर के पश्चिमी परकोटे तथा पश्चिमी गोपुरद्वार से सेतुमाधव मंदिर जाने वाले मार्ग जहां मिलते हैं; वह स्थान शतरंज पट्टी के समान दिखाई देने के कारण चतुरंग मंडपम् अथवा शतरंजी मंडप’ कहलाता है। वसन्तोत्स के शुभ अवसर पर इसी मंडप में मंदिर की मूर्तियों को अलंकृत कर प्रदर्शनार्थ रखा जाता है। रामनाथपुरम के सेतुपतियों/राजाओं की ओर से आषाढ़ और माघ महीनों में छठे दिन का उत्सव आज भी यहीं पर कराया जाता है। रामनाथपुरम जिला मुख्यालय, तहसील मुख्यालय तथा विकास खंड मुख्यालय है।



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