‘पषु’ बनाम ‘मनुष्य’ मुखाकृति अध्ययन डाॅ. भगवान सहाय श्रीवास्तव पशु, पक्षी, मनुष्य तथा अन्य सभी जीव पांच तत्वों से बने हैं। संभव है इसलिए उनकी प्रकृति, स्वभाव, लक्षण आदि में समानता हो इस आधार पर पशु-पक्षी तथा मनुष्य के स्वभावों की तुलना करें तो दोनों में समानता दिखाई देगी। यहां कुछ पशु विशेष की आकृतियों की मनुष्य की आकृतियों से तुलना कर उनके स्वभाव पर विचार प्रस्तुत कर रहे हैं। 1. बंदर 2. घोड़ा 3. गधा 4. भैंस, 5 गाय 6. बैल 7 लोमड़ी 8. सिंह 9 श्वान 10. चील 11. उल्लू 12. चूहा 13. बिल्ली 14. वनमानुष आदि। बंदर: ऐसा व्यक्ति स्वभाव से चालाक व सतर्क होता है। उसे धोखा देना मुश्किल होता है। वह बिजली घर में हैल्पर तथा खान में कार्य करने वाला हो सकता है। यदि किसी स्त्री का चेहरा बंदर जैसा हो तो उसे संतान के प्रति विशेष स्नेह होता है। घोड़ा: घोड़े की मुखाकृति वाला व्यक्ति दबाव पड़ने पर ही कार्य करता है। नौकर जाति के लोगों में ऐसी विशेषता होती है किंतु वे कुलीन भी हो सकते हैं। ऐसे व्यक्ति के गुरु का शनि से या लग्नेश का शनि से संबंध होता है। या उसके लग्न पर पाप ग्रहों की दृष्टि होती है। ऊंट: जिस व्यक्ति की गर्दन लंबी और मुखाकृति ऊंट जैसी हो उसमें योग्यता की कमी होती है। उसका शुक्र पर्वत कमजोर होता है। यदि ऐसे व्यक्ति की कुंडली में छठे स्थान में पाप ग्रह हो तो वह अपनी शक्ति से खत्म कर सकता है। मेढ़ाकृति: ऐसे लोग बलवान तथा फुर्तीले होते हंै। उनका लग्नेश त्रिक स्थान में होता है व शनि से भी युक्त होता है। गधा: इस आकृति वाले अधिकांश लोग मजदूर होते हंै। उनके दूसरे स्थान पर पाप ग्रह की दृष्टि होती है। उनकी वाणी कटु होती है। अजाकृति: ऐसी मुखाकृति वाले लोगों का मुंह आगे से पतला और पीछे से चैड़ा होता है। उनके होठ पतले होते हैं। वे स्थिरचित्त नहीं होते हैं। उनका चंद्र नीच का तथा पाप ग्रहों से दृष्ट होता है। वे नवीन फैशन पसंद करते हैं। उनका शुक्र मिथुन का होता है तथा शुक्र व मंगल युक्त होते हंै। शुक्र व मंगल की स्थिति अधिकतर 1, 4, 6, 8 या 12वें स्थान में होती है। वे प्रेम संबंध में चतुर होते हैं। भेड़ आकृति: इस आकृति के लोग कोई भी कार्य सोच समझ कर करते हैं। किंतु वे दूसरों की बातों को भी सुनते और मानते हैं। उनकी कुंडली में चैथे व दसवें स्थानों के स्वामी शुभ स्थानों में होते हैं तथा हथेली में मातृ-पितृ रेखाएं मिली होती हैं किंतु कटी फटी नहीं होतीं। तोते की आकृति: ऐसे लोगों की नाक नुकीली व लंबी होती है। जातक उनकी कुंडली में द्वितीय स्थान सुदृढ होता है और लग्न में बुध या शुक्र होता है। वे वाक्पटु होते हैं और नाटकीय ढंग से बात करते हैं। उनका शुक्र बलवान होता है तथा जन्मपत्रिका में उसकी स्थिति सुदृढ़ होती है। काक आकृति: ऐसे लोग चालाक व धूर्त होते हैं। वे संकुचित विचार वाले और स्वार्थी होते हैं। उनकी कुंडली में शनि की स्थिति सुदृढ़ होती है। यदि किसी के लग्न में शनि हो तो उसे काक आकृति वाला होना चाहिए। ऐसे लोग रिश्वतखोरी में माहिर होते हैं। उलूक आकृति: ऐसे लोगों की नाक नुकीली व नेत्र गोलाकार होते हैं। उनके पास धन बहुत होता है। उनकी कुंडली के दूसरे स्थान में अमृत योग या लक्ष्मी योग होता है। महिष आकृति: ऐसे लोग कुछ घमंडी होते हैं। उनके लग्न में मंगल या शनि हो सकता है अथवा दोनों का संबंध भी हो सकता है। क्रोध की अवस्था में वे कभी-कभी आक्रमण भी करते हैं। ऐसे लोग प्रायः सैनिक सिपाही होते हैं। किंतु वे पेशेवर अपराधी भी हो सकते हैं। गाय या बैल: ऐसे लोग मानसिक स्तर पर कमजोर होते हैं। लेकिन वे परोपकारी होते हैं। उनकी नाक कुछ फूली हुई तथा मस्तक उठा हुआ होता है। यदि किसी स्त्री की मुखाकृति गाय या बैल जैसी हो तो उसकी संतान निरोग होती है। ऐसे लोगों का गुरु बहुत ही बलवान होता है लेकिन चतुर्थ स्थान पाप ग्रहों से ग्रस्त होता है। लोमड़ी की आकृति: ऐसे लोगों की बुद्धि तीव्र होती है। वे धैर्यवान होते हैं। इस आकृति के किसी व्यक्ति के चेहरे में यदि स्पष्टता हो तो वह धूर्त होता है। ऐसे लोगों में कुछ चुगलखोरी की आदत भी होती है। उनके मंगल व बुध में परस्पर दृष्टि संबंध होता है। बुध बलवान होकर नवम स्थान में स्थित होता है या मेष राशि का होता है। शनि, मंगल या राहु चैथे स्थान में होता है। ये सभी योग जन्मपत्री में मिलेंगे। सिंहाकृति: ऐसा व्यक्ति स्वभाव से बहुत कठोर होता है। उसकी आंख बड़ी-बड़ी, चेहरा भरा हुआ तथा होंठ बड़े होते हैं। उसमें पर्याप्त आत्मबल व तेज होता है। ऐसे लोग युद्ध व संघर्ष में पीछे नहीं हटते हैं। उनका लग्न सिंह तथा राशि सिंह होती है। लग्नेश के लग्न में होने से उनमें सिंह के सभीे गुण विद्यमान होते हैं। ऐसे लोग जिम्मेदार व सेना में उच्च पदस्थ होते हैं। यदि मजदूर हों, तो नेता होते हंै। किंतु उनका दाम्पत्य जीवन तनावपूर्ण हो सकता है। विछोह की संभावना भी रहती है। चील की आकृति: ऐसे लोगों का दूसरा व बारहवां स्थान बहुत ही बलवान होता है। दूसरे स्थान में चंद्रमा व शुक्र नहीं हों तो उनके नेत्र तेज होते हैं। वे कार्य करने में पीछे नहीं रहते। ऐसे लोगों का स्वभाव हर काम में झगड़ालू होता है। वे छोटी-छोटी बातों पर भी लड़ने पर उतारू हो जाते हैं। किंतु वे राष्ट्रभक्त, प्रेमी व फौजी होते हैं। श्वानाकृति: ऐसे लोग वफादार होते हैं। वे धोखा नहीं देते। उनमें ईमानदारी कूट-कूट कर भरी होती है। उनके चैथे स्थान का स्वामी स्वराशिस्थ या उच्चस्थ होता है। चतुर्थांश गौपुरांश में या लग्नेश या चैथा स्थान शुभ ग्रहों से युक्त हो सकता है। ऐसे लोग क्लर्क, मुंशी, निरीक्षक आदि होते हैं। यदि स्त्री हो तो अपने अधिकारी को खुश रखती है। मूषकाकृति: इस मुखाकृति के लोगों की नाक नुकीली व छोटी होती है। उनका कद छोटा होता है और वे उछलते कूदते रहते हंै। ऐसे लोग कार्य शीघ्र निबटाते हैं। किंतु वे डरपोक होते हैं। उन्हें अपनी चिंता ज्यादा रहती है। वे धन संचय भी खूब करते हैं। बिड़ालाकृति: ऐसे लोगों की आंखंे चमकदार होती हैं। उनकी ध्राण शक्ति तीव्र होती है। वे अपनी रक्षा का विशेष ध्यान रखते हैं। उनका शनि लग्नेश में या लग्नेश पाप ग्रह से युक्त होता है। वे झूठ बोलते हैं। वे अपना सम्मान ज्यादा चाहते हैं किंतु दूसरों का सम्मान कम करते हैं। वनमानुष: वनमानुष जैसी मुखाकृति वाला व्यक्ति परिश्रमी होता है। विद्याध्ययन में उसकी कोई रुचि नहीं होती। उसके बुध व पंचमेश कमजोर होते हैं। अर्थात् उसके पंचम स्थान पर पाप ग्रह की दृष्टि होती है। किंतु मंगल व सूर्य प्रबल होते हैं। मंगल सप्तम स्थान में होता है। कारकांश कुंडली में तीसरे स्थान में पाप ग्रह होते हैं।