आदि अनादि काल से महिमामयी भारत देश की सभ्यता-संस्कृति में महत्वपूर्ण भूमिका निर्वहन करने वाला भारत का फ्लोरिज के नाम से विख्यात प्राचीन कलिंग व बाद के समय में उत्कल के नाम से प्रसिद्ध आज का ओडिशा प्रदेश अपने कई ख्यातनाम धरोहरों व प्राचीन देवी तीर्थों के लिए विश्वश्रुत रहा है उनमें मां तारिणी की गणना प्रदेश के प्राचीनतम् आस्थावान देवी तीर्थ व अधिष्ठात्री शक्ति के रूप में की जाती है। मां तारिणी की महिमा देखें कि मां का मूल तीर्थ घटगा में रहने के बावजूद संपूर्ण ओडिशा, बंगाल, झारखंड व छत्तीसगढ़ क्षेत्र में मां के कितने ही देवालय हैं। मंदिर से जुड़े तथ्यों का अध्ययन-अनुशीलन, जानकारों से ली गई जानकारी व मंदिर के विस्तृत निरीक्षण, दर्शन से स्पष्ट होता है कि ओड़िशा की सभ्यता संस्कृति में मां का वैशिष्ट्य अति प्राचीन काल से कायम है। ओडिशा में देवी मां के द्वादश स्थलों का खूब मान है जो काकटपुर में मंगला, कोणार्क में समचण्डी, झंकडे में सरला, पुरूषोत्तम क्षेत्र में बिमला, बांकी में चचीकाई, संबलपुर में समलाई (संभलेश्वरी), आजपुर में विरजा, पश्चिम में हेंगुलाई, भुवनेश्वर में गौरी, वाणपुर में भगवती, उत्तर में चंडी व घटगाँ में तारिणी के नाम से पूजित हैं। मां अपने हरेक भक्तों का तरणतारन करती हैं इस कारण यहां माता जी को तारिणी कहा जाता है जिनकी रूप-स्वरूप व प्रकृति कई अर्थों में मां काली व मां तारा के समान है। ओडिशा प्रदेश का एक जिला नगर क्योंझर से 45 किमी. दूरी तय करके सड़क मार्ग से मां के इस स्थान तक आना सहज है जो इस्पात नगरी राउरकेला से 289 कि.मी. की दूरी पर है।