तंत्र-मंत्र-यंत्र का सिद्ध स्थल गया का श्री भैरव स्थान डाॅ. राकेश कुमार सिन्हा ‘रवि’ भारत तीर्थों का देश है। यहां पूर्व से पश्चिम और उŸार से दक्षिण असंख्य तीर्थ हैं। हर तीर्थ की अपनी महिमा है, अपना महत्व है। इन्हीं तीर्थों में विश्वप्रसिद्ध मोक्ष कारी पितृतीर्थ गया के श्री भैरव स्थान का नाम आता है जो देश भर के अष्ट प्रधान भैरव स्थलों में षष्ठ स्थान पर विराजमान कपाल भैरव (रुद्र कपाल) का शास्त्रोक्त स्थल है। वैष्णव परायण राक्षस गया की दायीं भुजा पर विराजमान गया तीर्थ के 14 तीर्थ खंडों में से एक श्री काशी खंड के नाभि क्षेत्र में विराजमान यह भैरव स्थल गयासुर के कुल गुरु का दिव्य स्थल है। गया में गया-बोधगया पुराने मार्ग पर स्थित संक्रामक रोग जिला अस्पताल के ठीक सामने पर्वतीय तलहटी में विराजमान इस स्थल के प्रथम दर्शन से ही इसकी प्राचीनता का स्पष्ट ज्ञान हो जाता है। गुप्तकालीन शिल्पकला का यह बेजोड़ नमूना उŸार गुप्त कालीन व पाल कालीन मूर्Ÿा शिल्पों से समृद्ध है, जो यहां के सांस्कृतिक वैभव के मूक गवाह हैं। मंदिरों की नगरी गया के शताधिक मंदिरों के मध्य तीन मंदिर ऐसे हैं, जहां पुराकाल से प्रतीक पूजन की सुदीर्घ परंपरा रही है। श्री विष्णुपद मंदिरों म चराचर नाथ विष्णु जी के चरण, शक्तिपीठ मंगलागौरी में मां का पंच पयोधन पीठ और यहां भैरव जी का मस्तक। आज भी उन प्राचीन तांत्रिक पूजन पद्धतियों व साधनामय संस्कृति को अपने अंक में समेटे गया का भैरव स्थान एक जाग्रत सिद्ध स्थल के रूप में विख्यात है। श्री भैरव जी का यह मंदिर वास्तु शास्त्र के अनुरूप बना है जो एक ऊंचे प्लेटफाॅर्म पर उसके मध्य भाग में निर्मित है। दो द्वारों से युक्त यहां के प्रधान मंदिर के गर्भगृह में मध्य भाग के चैकोर पिंड में कपाल का स्पष्ट दर्शन किया जा सकता है। इस मंदिर के गर्भगृह में दोनों द्वारों के किनारे आनंद भैरव व आकाश भैरव स्थित हैं। अंदर में श्री उमा शंकर, काल भैरव, बटुक भैरव, स्वर्णाकर्षण भैरव आदि विराजमान हैं। भैरव मंदिर की चैखट में गंगा और यमुना का और ऊपर नव ग्रह का सुंदर चित्रांकन है। मंदिर के चारों तरफ देवी-देवताओं का स्थान है। इसका प्रधान प्रवेश द्वार अलंकृत पत्थर से निर्मित है, जिसकी नक्काशी उŸार गुप्त कालीन है। इन मंदिरों में काल भैरव, बटुक भैरव, उमाशंकर, शिव जी, वृक्ष देवता, ब्रह्म देवता आदि के स्थान हैं। मंदिर के बाहरी भाग में तीन प्रधान मंदिर हैं, जिनमें एक में श्री काल भैरव जी, दूसरे में हनुमान लला और तीसरे में मां भैरवी (प्लेगनी मां) का पूजन स्थान है। इनके अतिरिक्त यहां सूर्य, विष्णु, गणेश, उमाशंकर, रेवंत, पंचदेव, नवग्रह, भैरव-यंत्र, त्रिदेव, काल भैरव, अश्वधारी भैरव, आसितांग भैरव व भूत भैरव के विशिष्ट विग्रह दर्शनीय हैं। मध्यकाल में श्री भैरव स्थान मंदिर में गोरखपुर के संत महात्माओं का आगमन हुआ और उन्हीं के दिशा निर्देशों में यहां के क्रिया-कलाप आगे बढ़ते गए। मंदिर के चारों तरफ उन संत महात्माओं की समाधि आज भी देखी जा सकती है जिनमें अधिकांश की स्थिति आवश्यक देखरेख के अभाव में खराब हो चली है। भैरवी चक्र पर अवस्थित गया नगर का यह भैरव स्थान भैरव पूजन के प्राचीन स्थलों में एक है। यहां श्रद्धालुओं की हर कामना पूरी होती है। गया के तीर्थों में तंत्र साधना सहज संभव है। यहां पूरे साल दूर देश के साधकों का आगमन होता रहता है। यहां के प्रधान वार्षिक उत्सव श्री भैरव अष्टमी के दिन न सिर्फ नगर की जनता बल्कि देश-विदेश के श्रद्धालु यहां आकर शक्तिपुंज भैरव जी के चरणांे में श्रद्धा निवेदित करते हैं। कहते हैं कामाख्या सिद्धि को गया विश्राम में यहां रात्रि निवास का गुरु आदेश हुआ करता है, जिसका साधक आज भी श्रद्धा भक्ति के साथ पालन करते हैं। तात्पर्य यह कि पूर्व भारत के भैरव मंदिरों में गया का भैरव स्थान अति प्राचीन और ऐतिहासिक है जिसकी अपनी विशेष महिमा है। जिस प्रकार काशी के कोतवाल काल भैरव हैं, उसी प्रकार गया के क्षेत्रपाल काल भैरव ‘कपाल भैरव’ के रूप में प्रकारांतर से पूजित हैं।