कैसे निकालें यात्रा मुहूर्त? विनय गर्ग यात्रा तो सभी करते हैं, कभी सफलता तो कभी असफलता हाथ लगती है। यात्रा कभी इतनी सुखद होती है कि दौड़-धूप भरी जिंदगी की सभी थकान दूर हो जाती है। कभी यात्रियों को दुर्घटना के कारण जान भी गंवानी पड़ जाती है। आखिर क्या है इसका रहस्य? शायद सही मुहूर्त का चुनाव। समय का अभाव होने के कारण लोग प्रायः मुहूर्त के महत्व को भूल जाते हैं। मुहूर्त की तब याद आती है जब यात्रा निरर्थक, निष्फल एवं नुकसान दायक साबित होती है। तब व्यक्ति इस बात को सोचने को मजबूर हो जाता है कि काश मैंने अपनी यात्रा शुभ मुहूर्त में प्रारंभ की होती तो होने वाली हानि, मानसिक या शारीरिक कष्ट यात्रा में न सहने पड़ते। यदि हम यात्रा प्रारंभ करने से पूर्व मुहूर्त का विचार करते हुए अपनी योजना को बनाएं तो बहुत मुमकिन है कि यात्रा एवं प्रवास के दौरान मानसिक तथा शारीरिक कष्ट से मुक्ति मिल जाए तथा हमारी यात्रा के उद्देश्य में सफलता प्राप्त हो। यात्रा मुहूर्त के लिए दिषाशूल, नक्षत्रशूल, योगिनी, भद्रा, चंद्रबल, ताराबल, नक्षत्रशुद्धि आदि का विचार किया जाता है। किसी भी यात्रा मुहूर्त को निकालने के लिए सर्वप्रथम तिथिशुद्धि का विचार किया जाता है। तिथिशुद्धि: यात्रा के लिए निम्न तिथियां शुभ मानी जाती हैं। किसी भी पक्ष की द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, त्रयोदशी एवं केवल कृष्णपक्ष की प्रतिपदा तिथियां। यहां यह बात ध्यान रखने योग्य है कि इन तिथियों में भद्रादोष नहीं होना चाहिए। अर्थात इन तिथियों में यदि विष्टि करण होगा तो वह समय यात्रा के लिए शुभ नहीं होगा। नक्षत्र शुद्धि: तिथि शुद्धि करने के पश्चात ली गई तिथियों का नक्षत्र विचार किया जाता है। यात्रा के लिए शुभ नक्षत्र निम्नलिखित हैं: अश्विनी, मृगशिरा, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त, अनुराधा, श्रवण, धनिष्ठा एवं रेवती नक्षत्र उत्तम माने गए हैं। इनके अतिरिक्त कुछ नक्षत्रों में सभी दिशाओं में यात्रा की जाती है। अर्थात सभी दिशाओं में यात्रा करना जिन नक्षत्रों में शुभ होता है, वे निम्नलिखित हैं - अश्विनी, पुष्य, अनुराधा और हस्त। अंत में कुछ नक्षत्र ऐसे हैं जो यात्रा के लिए मध्यम श्रेणी के माने जाते हैं। वे निम्नलिखित हैं: रोहिणी, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, उत्ताराषाढ़ा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद, ज्येष्ठा, मूल एवं शतभिषा। चैघड़िया विचार: नक्षत्र शुद्धि करने के उपरांत शुद्ध तिथियों के दिन चैघड़िया विचार किया जाता है। एक चैघड़िया का समय चार घटी होता है अर्थात डेढ़ घंटे का समय होता है। इस शुभ चैघड़िया के दौरान यात्रा करना शुभ फलदायक एवं यात्रा सुखद होती है। कुल आठ चैघड़ियों में से चार चैघड़ियां शुभ होती हैं जिनके नाम हैं- अमृत, चर, लाभ एवं शुभ। होरा विचार: शुभ चैघड़िया के उपरांत शुभ ग्रह की होरा का विचार भी किया जाता है। जैसा कि हम जानते हैं, शुभ ग्रह चार होते हैं- चंद्र, बुध, गुरु और शुक्र। इन ग्रहों की होरा में यात्रा करना श्रेष्ठ माना जाता है। चंद्रबल विचार: यात्रा के दिन चंद्रमा का शुभ राशि में होना भी आवश्यक है। अर्थात जिस व्यक्ति को यात्रा करनी है उसकी जन्म राशि ज्ञात होनी चाहिए। जातक की जन्म राशि से यात्रा करने वाले दिन चंद्रमा की राशि 4, 8, 12 नहीं होनी चाहिए। दूसरे शब्दों में गोचर का चंद्रमा जातक की जन्म राशि से चैथे, आठवें, बारहवें भाव में नहीं होना चाहिए। ताराबल विचार: उपर्युक्त प्रकार से शुद्ध तिथि के दिन के नक्षत्र की संख्या जातक के जन्म नक्षत्र से गिनें । इस संख्या को 9 से भाग दें तथा शेष संख्या यदि 3, 5, 7 हो तो वह दिन यात्रा के लिए अशुभ माना जाता है, क्योंकि इन दिनों जातक के लिए ताराबल क्षीण होगा। लग्न विचार: उपरोक्त शुद्धियों के पश्चात जबकि यात्रा का दिन निश्चित किया जा चुका है, उसके उपरांत किस शुभ लग्न में यात्रा करनी चाहिए यह जानना अत्यंत आवश्यक हो जाता है। इसके लिए हमें यह बात हमेशा ध्यान रखनी चाहिए कि कभी भी कुंभ लग्न में या कुंभ के नवांश में यात्रा नहीं करनी है। लग्न शुद्धि इस प्रकार करनी चाहिए कि 1, 4, 5, 7, 10वें भावों में शुभ ग्रह हों तथा लग्न से 3, 6, 10 एवं 11वें भाव में पाप ग्रह स्थित हों। यदि चंद्रमा लग्न से 1, 6, 8 या 12वें भाव में स्थित होगा तो वह लग्न अशुभ होगा। यह चंद्रमा पापग्रह से युक्त होगा तो भी अशुभ माना जाएगा। लग्न शुद्धि इस प्रकार करनी चाहिए कि शनि 10वें, शुक्र 7वें, गुरु 8वें, और बुध 12वें भाव में स्थित हो सकें। दकिसी विशेष वार को विशेष दिशा में यात्रा करने से माना जाता है। वार एवं दिशा के अनुसार दिशाशूल संलग्न सारणी से देखा जा सकता है। राहुकाल का वास विचार: दिशा शूल के समान राहु काल के वास का विचार किया जाता है। विशेष वार को विशेष दिशा में राहु काल का वास माना जाता है। यह निम्न प्रकार है: जिस दिशा में राहुकाल का वास होता है, उस दिशा में यात्रा करना अशुभ माना जाता है अर्थात यात्रा के समय राहुकाल सम्मुख नहीं होना चाहिए। नक्षत्रशूल विचार: दिशाशूल के समान नक्षत्रशूल का भी विचार किया जाता है। दिशाशूल में विशेष दिशा के लिए विशेष वार का होना अशुभ माना जाता है जबकि नक्षत्रशूल में विशेष दिशा के लिए विशिष्ट नक्षत्रों का होना अशुभ माना जाता है। नक्षत्र शूल का विचार निम्न सारणी से जाना जा सकता है। जिस दिशा में यात्रा करनी हो उस दिशा में नक्षत्रशूल विचार भी कर लेना आवश्यक है। योगिनी वास का विचार: यात्रा करते समय योगिनी का वास किस दिशा में है, उसका ज्ञान होना भी आवश्यक है। यात्रा के समय योगिनी का सम्मुख या दाहिने होना अशुभ माना जाता है। योगिनीवास का विचार तिथि एवं दिशा के अनुसार निर्धारित किया जाता है, जिसको हम निम्न सारणी के अनुसार ज्ञात कर सकते हैं। चंद्रदिशा विचार: दिल्ली से चेन्नई यात्रा करते समय सम्मुख दक्षिण दिशा होती है एवं दाहिने पश्चिम दिशा होती है। चंद्र दिशा विचार के अनुसार यात्रा के समय चंद्रमा सम्मुख या दाहिने होना चाहिए। अतः उपरोक्त तारीखों में से हम उन तारीखों को ही ग्रहण करेंगे जब चंद्रमा दक्षिण या पश्चिम में होगा। दक्षिण दिशा में चंद्रमा तब होता है जब वह वृष, कन्या या मकर राशि में और पश्चिम में चंद्रमा तब होता है जब वह मिथुन, तुला और कुंभ राशि में हो। इस प्रकार चंद्र दिशा विचार के अनुसार हम देखेंगे कि यात्रा के समय चंद्रमा उपरोक्त राशियों में स्थित हो। पंचांग देखने पर ज्ञात होता है दिनांक के अनुसार चंद्रमा की राशियां निम्नलिखित हैं: 9 नवंबर (कर्क), 18 नवंबर (वृश्चिक), 21 नवंबर (मकर, 20.32 के बाद), 24 नवंबर (मकर, 9.32 प्रातः तक), 27 नवंबर (मीन), 28 नवंबर (मीन)। चंद्र दिशा विचार विश्लेषण के उपरांत शुद्ध तारीखें निम्न होंगी- 21 नवंबर (मकर, 20.32 के बाद), 24 नवंबर (मकर, 9.32 प्रातः तक)। शुभ चंद्र विचार: जातक की जन्म राशि कर्क है, अतः कर्क राशि से चैथे, आठवें एवं बारहवें भाव में क्रमशः तुला, धनु एवं मिथुन राशि होंगी। अतः यात्रा के दिन चंद्रमा इन राशियों में नहीं होना चाहिए। उपरोक्त विवरण देखने से ज्ञात होता है कि शुद्ध तिथियांे के दिन इन राशियों में चंद्रमा स्थित नहीं है। इस प्रकार 21 नवंबर को 20ः32 के बाद एवं 24 नवंबर को प्रातः 9.32 बजे तक शुद्ध यात्रा मुहूर्त होगा।