मुहूर्त में बाधक योगों का निवारण डाॅ. टीपू सुलतान ‘फैज’ भारतीय ज्योतिष में कुछ ऐसे योगों का उल्लेख है जो मुहूर्त निर्धारण में बाधा पहुंचाते हैं। इन्हें बाधक योग की संज्ञा दी गई है। यहां कुछ प्रमुख बाधक योगों के निवारण के उपायों का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत है जिन्हें अपना कर इन योगों के प्रभाव को कम या निर्मूल किया जा सकता है। द्विपुष्कर एवं त्रिपुष्कर योग बाधक हैं। इन योगों के दोषों की निवृत्ति हेतु क्रमशः दो और तीन गायों या उनके मूल्यों की राशियों का दान करें। यदि इस योग में किसी कन्या का जन्म हुआ हो, तो द्विपुष्कर दोष के अनुसार मिट्टी के दो व त्रिपुष्कर दोष के अनुसार तीन पुतले बनाकर उन्हें 9 दिनों तक कन्या के साथ झूले में झुलाएं और दसवें दिन प्रातः ब्राह्म मुहूर्त में उन पुतलों को बहते जल में प्रवाहित कर दें। यदि बाधक योग या किसी भी प्रकार का शूल हो और कार्य करना अति अनिवार्य हो, तो उस कार्य का संपादन सूर्यास्त से सोलह मिनट पूर्व व चैबीस मिनट बाद के गोधूलि काल में करें। इस काल में नक्षत्र, तिथि, करण, लग्न आदि दोषों का प्रभाव नहीं रहता है। वर या कन्या मंगली हो, तो कदली विवाह संस्कार के अनुसार पहले प्रभावित कन्या या वर का केले के तने के साथ विवाह करें, फिर दोनों का विवाह करें। इसके अतिरिक्त शास्त्रों में इस योग की निवृत्ति हेतु घट-विवाह की व्यवस्था भी है। रविवार को पान खाकर, सोमवार को आईने में मुंह देखकर, मंगलवार को गुड़, बुधवार को साबुत धनिया, गुरुवार को जीरा, शुक्रवार को दही और शनिवार को काली मिर्च खाकर घर से प्रस्थान करें, अशुभ प्रभावों से रक्षा होगी तथा कार्य सफल होंगे।