शुभ्ुभ्ुभ व अशुभ्ुभ्ुभ योगेगेग नागेंद्र भारद्वाज मुहूर्त किसी कार्य के लिए शुभ व अशुभ समय की अवधि को कहा जाता है। मुहूर्त शास्त्र के अनुसार तिथि, वार, नक्षत्र, योग आदि के संयोग से शुभ या अशुभ योगों का निर्माण होता है। यदि शुभ मुहूर्तों में शुभ कार्य किए जाएं तो वे सफल होते हैं। इसके विपरीत अशुभ योगों में किए गए कार्य असफल होते हैं और उनका फल भी अशुभ होता है। इन शुभ व अशुभ योगों का निर्माण किन तिथियों, वारों व नक्षत्रों के संयोग से होता है इसका विवरण यहां प्रस्तुत उक्त वारों और नक्षत्रों के योग से सर्वार्थ सिद्धि योग बनता है। इस योग में होने वाला कार्य सफल होता है। उक्त तिथियों व वारों के संयोग से सिद्धि योग का निर्माण होता है। इस योग में आरंभ किए गए कार्य की सफलता की संभावना प्रबल होती है। अमृत योग रविवार को हस्त नक्षत्र में, सोमवार को मृगशिरा, मंगलवार को अश्विनी, बुधवार को अनुराधा, गुरुवार को पुष्य, शुक्रवार को रेवती और शनिवार को रोहिणी नक्षत्र में अमृत योग का निर्माण होता है। यह एक सर्वांगीण सिद्धि कारक योग है। रवि पुष्य योग: रविवार को पुष्य नक्षत्र होने पर यह योग बनता है। यह योग विवाह को छोड़कर अन्य सभी कार्यों में शुभ कारक होता है। गुरु पुष्य योग: गुरुवार को पुष्य नक्षत्र हो तो गुरु पुष्य योग बनता है। यह योग व्यापार आदि कार्यों में अधिक फलदायी होता है। राज्यप्रद योग दिन तिथियां मंगलवार 4, 9, 14 शनिवार 4, 9, 14 यह योग नाम के अनुसार फल देता है। जिस प्रकार इन शुभ योगों का निर्माण होता है उसी प्रकार अशुभ योग भी बनते हैं, जिनका उल्लेख नीचे किया जा रहा है। अन्य अशुभ योगों की भांति यमघंट योग भी शुभ कार्यों हेतु सर्वथा त्याज्य है। यात्रा के लिए तो यह योग विशेष रूप से अशुभ है, इसीलिए इस योग में यात्रा नहीं करनी चाहिए। इस तरह भारतीय ज्योतिष में एक तरफ कार्यारंभ के लिए अनेक शुभ योगों का विधान किया गया है, तो वहीं दूसरी तरफ अनेक अशुभ योगों का उल्लेख है, जिनमें कोई भी शुभ कार्य नहीं करने का निर्देश दिया गया है। कार्यों की सफलता के लिए उक्त शुभ योगों का पालन करना चाहिए।