श्वित्र (धवल रोग)
श्वित्र (धवल रोग)

श्वित्र (धवल रोग)  

व्यूस : 12849 | नवेम्बर 2009
श्वित्र (धवल रोग): हीन भावना प्रदायक सफेद दाग श्वित्र अर्थार्तर्तत् सफेदेदेद दाग आज कल कई लोगेगेगों ंे ं की समस्या है: वस्तुतुतुतः यह कोइेइेई भयंकंकंकर या जान-लेवेवेवा रोगेगेग नहीं है।ै।ै। फिर भी इससे पीड़ित़त रोगेगेगी के मन में ंे ं हीन भावनाएं उत्पन्न होतेतेती हैंै,ंै,ं, जिससे वे सार्वर्जर्जजनिक रूप से सामने आने में ंे ं कतराते रहते हंैं।ैं।ै। आयुर्वेद में त्वचा पर आने वाले सफेद दाग-धब्बों को श्वित्र कहते हैं। आम भाषा में इसे फुलेरी भी कहते हैं। लेकिन आधुनिक विज्ञान इसे ‘‘ल्युकोडर्मा‘‘ कहता है। हमारी त्वचा की दो परतें होती हैं- बाह्य और भीतरी। भीतरी परत के नीचे के भाग में मेलानोफोर कोशिका में एक तत्व होता है, जिसका नाम मेलेनिन है। इस तत्व का मुख्य कार्य त्वचा को प्राकृतिक वर्ण प्रदान करना होता है। जब यह तत्व विकृत होता है, तो श्वित्र रोग होता है। मेलेनिन तत्व के कण त्वचा के भीतर, नीचे की सतह में उत्पन्न होते हैं और वे ही ऊपर की ओर आ कर त्वचा को प्राकृतिक वर्ण प्रदान करते हैं। त्वचा के जिन भागों में इन कणों का अभाव होता है, वहां सफेद दाग दिखाई देते हैं। अगर पूरे शरीर की त्वचा में ही मेलेनिन का अभाव हो, तो पूरा शरीर सफेद दिखाई देता है; यहां तक कि आंखों का काला भाग भी सफेद लगता है। रोग के कारण आयुर्वेद में पाप कर्मों को रोग का कारण बतलाया गया है। साथ ही दूध-दही, दूध-मछली जैसी विभिन्न गुणयुक्त चीजों को आपस में मिला कर खाने से भी यह रोग हो सकता है। पेट में कृमि, आंव, टाइफाइड, पीलिया, तपेदिक आदि रोगों के बाद भी इस रोग की उत्पत्ति हो सकती है। श्वित्र की उत्पत्ति आनुवंशिक भी होती है। अगर माता-पिता में से एक या दोनों श्वित्र से पीड़ित हों, तो उनकी संतानों में भी रोग उत्पन्न होने की आश्ंाका रहती है। आयुर्वेद के अनुसार श्वित्र रोग में कफ की प्रधानता होती है। त्वचा की छोटी-छोटी शिराओं में अवरोध के कारण मेलेनिन तत्व उत्पन्न नहीं हो पाता है, जिससे श्वित्र रोग उत्पन्न हो जाता है। घरेलू उपचार श्वित्र रोग के उपचार में बाकुची नामक औषधि प्रमुख है। इसका सेवन खाने और बाहरी लेप दोनों तरह से किया जा सकता है जो लाभकारी है। बाकुची तेल का लेप कर सुबह या शाम को सूर्य की किरणों को त्वचा पर 10 मिनट तक पड़ने दें। इसके फलस्वरूप त्वचा पर फोडे़ हो जाते हैं। उन फोड़ों को कांटे से भेद कर सफेद त्वचा निकाल देनी चाहिए। घाव पर नीम का तेल लगाने से त्वचा का प्राकृतिक वर्ण उभर आता है। यह उपचार चिकित्सक की देख रेख में करें। गूलर से बना ‘उदंबर अवलेह‘ एक चम्मच की मात्रा मे प्रातः एक बार रोगी को खिलाना चाहिए। इससे भी श्वित्र रोग में सुधार होता है और सफेद दाग धीरे-धीरे मिट जाते हैं। अंजीर के पत्तों का रस या दूध लगाने से भी शरीर के सफेद दाग दूर हो जाते हैं। नीम के पत्ते और हरा या सूखा आंवला प्रातः सूर्य उदय के पूर्व, जल में पीस कर पीने से सफेद दाग दूर हो जात े हं।ै खैरसार और आंवले के साथ बाकुची के बीजों का चूर्ण मिला कर सेवन करने से सफेद दाग मिट जाते हैं। करंज के बीज, हल्दी, हरड़ और राई को बराबर मात्रा में पीस कर लेप करें। सफेद दाग दूर होंगे। कमेर, अडूसे की पत्ती, करंज, नीम और क्षतिवन की छाल बराबर मात्रा में तथा दस ग्राम कत्था पांच किलो पानी में उबालें। इस पानी को छान कर दिन में एक गिलास पीने से सफेद दाग दूर होते हैं। मिलावा त्वचा रोगों की एक बहु उपयोगी औषधि है, जिसके सेवन से श्वित्र रोग और कफ-वात से उत्पन्न सभी रोगों में आराम मिलता है। इस औषधि का उपयोग अच्छे चिकित्सक की देख रेख में करना उचित होगा। तंबाकू के बीजों का तेल लगाने से सफेद दाग दूर होते हंै। 25 ग्राम महातिक्त सुबह-शाम इस्तेमाल करने से श्वित्र रोग दूर होता है। उपर्युक्त सभी उपचारों में परहेज की आवश्यकता है। भोजन में तेज मसाले और तामसिक आहार न लें और हरी सब्जियों का प्रयोग करंे। तली तथा जली हुई चीजें न खाएं। उबला और सादा भोजन लाभकारी होता है। ज्योतिषीय दृष्टिकोण ज्योतिषीय दृष्टि से त्वचा का कारक चंद्र और बुध ग्रह हैं। शुक्र ग्रह त्वचा को निखारता है। मंगल ग्रह शरीर में उन तत्वों की उत्पत्ति करता है, जो त्वचा को प्राकृतिक वर्ण (रंग) बनाए रखने में सहायक होता है। अगर जन्मकुंडली पाप ग्रहों से प्रभावित हो रहा हो और लग्नेश कमजोर हो, बुध और शुक्र दुष्प्रभाव में हों और चंद्र राहु-केतु के प्रभाव में हो, तो श्वित्र रोग होने की संभावना रहती है। विभिन्न लग्नों में श्वित्र रोग के कारण मेष लग्न: मेष लग्न की कुंडली में लग्नेश द्वादश भाव में शनि से युति बनाए, बुध व शुक्र षष्ठ भाव में हों, चंद्र राहु-केतु से पीड़ित हो और लग्न पर राहु-केतु की दृष्टि हो, तो श्वित्र रोग होता है। वृष लग्न: बुध केतु के साथ तृतीय भाव में हो, शुक्र सूर्य से अस्त हो, चंद्र व मंगल लग्न में हों, तो रोग का कारण बनता है। मिथुन लग्न: सूर्य लग्न में बुध द्वादश भाव में, गुरु व शुक्र चतुर्थ भाव में, मंगल दशम भाव में और राहु षष्ठ में हो, तो श्वित्र रोग होता है। कर्क लग्न: बुध लग्न में राहु के साथ, सूर्य द्वादश भाव में, शुक्र एकादश में तथा मंगल अष्टम भाव में शनि से दृष्ट या युक्त हो और लग्नेश सप्तम भाव में हो तो श्वित्र रोग होता है। सिंह लग्न: बुध और शुक्र सप्तम भाव में, शनि चतुर्थ भाव में और मंगल सूर्य से अस्त हो कर षष्ठ भाव में हो, तो श्वित्र रोग होता है। कन्या लग्न: मंगल दशम भाव में, बुध व शुक्र षष्ठ में, सूर्य और चंद्र सप्तम में तथा राहु तृतीय में हो, तो श्वित्र रोग होने की संभावना रहती है। तुला लग्न: लग्नेश शुक्र षष्ठ भाव में गुरु से दृष्ट हो, बुध अस्त हो, मंगल नीच का हो कर राहु-केतु से दृष्ट हो और चंद्र शनि से दृष्ट या युक्त हो, तो श्वित्र रोग होता है। वृश्चिक लग्न: लग्नेश शनि से युक्त तथा दृष्ट हो, बुध व चंद्र लग्न में केतु से दृष्ट एवं युक्त हों और शुक्र अस्त हो, तो श्वित्र रोग होता है। धनु लग्न: लग्नेश अष्टम भाव में शनि से दृष्ट हो, चंद्र और शुक्र द्वितीय में, बुध लग्न में तथा मंगल व शनि षष्ठ में हांे, तो श्वित्र रोग होता है। मकर लग्न: बुध, शुक्र और लग्नेश गुरु से दृष्ट हों, मंगल राहु-केतु के प्रभाव में केंद्र में स्थित हो, चंद्र त्रिक भावों में हो, तो श्वित्र रोग होता है। कुंभ लग्न: मंगल और लग्नेश लग्न में राहु-केतु के प्रभाव में हों, चंद्र षष्ठ में गुरु से दृष्ट हो, शुक्र व बुध केतु से दृष्ट हों, तो श्वित्र रोग होता है। मीन लग्न: अष्टमेश और षष्ठेश लग्न में हो कर लग्नेश पर दृष्टि रखें, बुध व शनि द्वादश भाव में और मंगल शत्रु भाव में दृष्टिहीन हो, तो श्वित्र रोग होता है। उपर्युक्त योग अपनी दशा-अंतर्दशा और गोचर के अनुसार स्थायी या अस्थायी रूप में रोग देते हैं।



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